शायर:-“जैदि” की काफ़िर ग़ज़ले
#शायर_ :- “जैदि”
डॉ.एल.सी.जैदिया “जैदि”_ कि_ एक_ साथ_ पचपन_ बेहतरीन_ ग़ज़ले_ पढ़े_!!
रचना नंबर:-(1)
“”जरुरी नही मेरी हर बात को मान लिया जाऐ,,,,!!!
ग़ज़ल
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जरुरी नही मेरी हर बात को मान लिया जाऐ,
जहाँ जरुरत बोलने की,वहाँ बोल दिया जाऐ।
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मैं बादशाह तो नही हूँ चढ़ा दुँगा सूली पे तुम्हें,
बात कहने को हर बार क्यूँ जाम ही पिया जाऐ।
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क्यूँ रखा जाऐ दिल में दबा के हर बात अपनी,
ये अच्छा नही बे’वजह लब अपने सिया जाऐ।
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तुम इधर -उधर की जो किऐ जा रहे हो! सुनो,
यूँही वक्त जाया करते हो तो,क्या किया जाऐ।
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तुम जो करते हो करो, है ये अधिकार तुम्हारा,
जीना है तो यार क्यूँ न बिंदास ही जिया जाऐ।
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मैं बेबाक बदनाम सा शायर “जैदि” कहता हूँ,
गलत है मशवरा तो मेरा छोड़ साथ दिया जाऐ।
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शायर :-“जैदि”
डॉ.एल.सी.जैदिया “जैदि”
रचना नंबर:-(2)
तुम छीपा लेते अपना गुमान,तो अच्छा होता
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ग़ज़ल
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तुम छिपा लेते अपना गुमान, तो अच्छा होता,
तुम काबू में रख लेते जुबान, तो अच्छा होता।
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झुकी हुई ये आँख तुम्हारी यूँ कभी न शर्माती,
गर कर लेते सभी का सम्मान,तो अच्छा होता
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शर्मसार कर दिया जहाँ में सभी को तुमने यार
बचा लेते अगर बची हुई शान, तो अच्छा होता
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इक फैसले से तेरे,कितनी गई थी जाने राजन,
किऐ पर अपने होते पशेमान, तो अच्छा होता
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गरीब का छीन निवाला दे रसूखदार को दिया,
जरा सा उन्हे भी देते अनुदान,तो अच्छा होता
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मर गए जो देख ना पाऐ तेरा ये फ़रमान “जैदि”,
काश पहले देते उनको मुस्कान,तो अच्छा होता।
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मायनें:-
पशेमान:- शर्मिंदा
शायर:- “जैदि”
डॉ.एल.सी.जैदिया “जैदि”,
रचना नंबर:-(3)
ग़ज़ल
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सूखे शजर को छू कर हरा कर दिया,
बहार आऐगी ऐसा तुने,अवसर दिया।
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सोचा न कभी ज़हन में फिर खिलुंगा,
बेरंन खिंजाँ ने ऐसा मुझको डर दिया।
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झुकती शाखो में मेरी वो जान न थी,
तुमने जोश मृत शिराओं में भर दिया।
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मैं मयस्सर था मौत को मगर आ कर,
तुमने फिर खोल हयात का दर दिया।
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तन्हाँ राहो में अचनाक आहट ने तेरी,
मुश्किल सा,आसान सफर कर दिया।
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सुन अब कैसे करे इबादत तेरी “जैदि”,
जब चौखट पर रख अपना सर दिया।
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मायने:-
शजर:- दरख़त
खिंजां :-पतझड़
मयस्सर:-प्राप्त
हयात:- जिंदगी
दर:-द्वार
इबादत:- पूजा
शायर:- “जैदि”
डॉ.एल.सी.जैदिया “जैदि”
रचना नंबर (4)
ग़ज़ल
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बे’सबब करने लगे लोग अदावत हमसे,
कल तक सिखी,जिसने शराफत हमसे।
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कोई खास नही दरख्व़ास्त उनसे हमारी,
वो आज मगर क्यूँ करते बगावत हमसे।
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कदम चार हैसियत से कम जरुर थे हम,
दो कदम आगे हुऐ तो,हुऐ आहत हमसे।
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ये कैसी हो गई जलन जमाने को दोस्तो,
आज लगी होने उनको शिक़ायत हमसे।
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शबो-रोज जीते रहे, मौजो की मस्ती में,
झुके सर ऐसी न हुई कोई शरारत हमसे।
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हर पल हर हाल खामौश रहे सदा “जैदि”,
खुले न जुबाँ, रखते है लोग चाहत हमसे।
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मायने:-
बे’सबब:- बेवजह
अदावत:-शत्रुता
दरख्व़ास्त:-निवेदन
शराफत:-भद्रता
बगावत:-विद्रोह
आहत:- जख्मी
शबो-रोज:-रात और दिन
शरारत:-पाजीपन (दृष्टता)
चाहत :-इच्छा
शायर:-“जैदि”
डॉ.एल.सी.जैदिया “जैदि”
रचना नंबर (5)
ग़ज़ल
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है इंतिज़ार मुझे अब ऐसी शाम का,
लाऐगी जब पैगाम वो मेरे नाम का।
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होने का तनिक मुझे गम नही रहा ,
क्यूँ फिरता लेकर बोज नाकाम का।
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कल तलक जो गुजारी जिंदगी मैंने,
था उस पर हक मयखाने-जाम का।
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दरबदर भटकता रहा जमाने में यूँही,
न रहा जीवन मेरा, किसी काम का।
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थक गया हूँ मैं साहिल की तलाश में,
जाऊँ कहाँ मैं, पता नही मकाम का।
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ऐसी सजा काट रहा मैं शायर “जैदि”
मालुम न मुझको अपने इल्ज़ाम का।
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मायने:-
साहिल :- किनारा
मकाम:-स्थान
शायर:-“जैदि”
डॉ.एल.सी.जैदिया “जैदि”
बीकानेर (राजस्थान)
रचना नंबर:-(6)
ग़ज़ल
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देश प्रेम की खुशबू आज मुझको आ रही है
अब ना होगें गुलाम,गीत फिजाऐं गा रही है।
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भोर के पुष्प खिलेगें, कलियाँ भी मुस्काऐगी,
महकेगी बगियाँ, ये बेरन खिजाऐं जा रही है।
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मँद मँद मुस्काती दरिया, लहलहाती फसले
हिमालय हर्षित होगा,ऐसी घटाऐं छा रही है।
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रहेगा न अँधेरा, होगा उजालो का राज यहाँ,
होगा मुल्क खुशहाल,संदेश बहारे ला रही है।
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नफरत की बाते छोड़,मैं हर जुल्म मिटाऊंगा,
है यह डाकिन,वतन को मेरे खाऐ जा रही है।
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मैं शायर “जैदि”,वतन छोड़ कभी न जाऊंगा,
वतन की सोंधी सुगंध,अब मुझको भा रही है
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शायर:-“जैदि”
डॉ.एल.सी.जैदिया “जैदि”
रचना नंबर :-(7)
ग़ज़ल
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सारे जग की,,, मुस्कान है
बेटी बोझ नहीं,, सम्मान है।
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सुन लो रे ओ दुनिया वालो
हर घर की बेटी तो महान है।
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क्यूँ छीपाते तुम मुँह अपना
फक्र करो ये घर की शान है।
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चलो ऊठा कर सिर अपना,
समझो बेटी तो अभिमान है।
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है जब तक घर के आगन में
हम पे उसका बड़ा अहसान है।
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बेटी के बिन है बाप अधुरा,
बिन बेटी “जैदि”भी बेजान है।
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शायर:-“जैदि”
डॉ.एल.सी.जैदिया “जैदि”
बीकानेर (राज)
रचना नंबर:-(8)
ग़ज़ल
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कहीं खुशियां, कहीं मातम।
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जिधर देखे ऊधर सब थे परेशाँ बीते साल में,
किसी को फुर्सत नही, है कौन किस हाल में।
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कहीं खुशियां,कहीं मातम डरे डरे थे साल में,
कंधो पे अर्थियाँ ले,थे सब के सब मलाल में।
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बेरंन बनी वबा घर घर मे पाँव पसार लिऐ थे,
कब जाऐगी ये बला बुरे फसे थे सब जाल में।
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कहीं कमी नही थी कोई करे मदद गुहार की
जब आऐ थे मसीहा इंसानियत की खाल में।
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जिंदा रहे इंसानियत ये सोच के सब लगे रहे,
न थके,न डरे भूखे प्यासे लगे रहे हर हाल में।
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मुश्किल भरा ये दौर अब गुजर रहा है “जैदि”
भूली बिसरी छोड़ यादे फिर होंगे खुशहाल में।
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मायने:-
वबा:-महामारी
शायर:-“जैदि”
डॉ.एल.सी.जैदिया “जैदि”
बीकानेर (राजस्थान)
रचना नंबर :-(9)
ग़ज़ल
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मुझको आदत नही ठगने की जमाने को,
हर रोज निकलता कमर कस कमाने को।
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साफगोई ने दुश्मन बना लिऐ, चारो ओर,
जुबाँ जब बोले बचता न कुछ छुपाने को।
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तुम भी कभी कर के देखो मेरी तरहा से,
तुमको भी मजा आऐगा सच दिखाने को।
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माना कि मुश्किल है मगर पिछे न हठना,
बढ़ाऐं कदम जब कहे कोई आजमाने को।
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करते रहे यूँ ही गर हम हर बार नादानियाँ,
रहेगा न इक पल पास हमारे पछताने को।
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दौर-ऐ-गर्दिश आते जरुर सभी के “जैदि”
थोड़ा कहीं ज्यादा,छोड़ो न इस पैमाने को।
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मायने:-
साफगोई:-स्पष्ट वादिता
दौर-ऐ-गर्दिश:-बुरा समय
शायर:-“जैदि”
डॉ.एल.सी.जैदिया “जैदि”
रचना नंबर:-(10)
ग़ज़ल
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जिन्दगी का ऐसा,मैं कलाकार हूँ
कोई बेकार, कोई कहे फ़नकार हूँ।
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जिसने जैसा मुझको काम लिया
मै हर काम का वैसा ही प्रकार हूँ।
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कोई चतुर तो कोई चालक समझे,
फ़कत अस्थियों का मैं आकार हूँ।
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श़जर की तरहा मैं अडिग खड़ा हूँ
सफर से थके पथिक की पुकार हूँ।
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नज़र ऊठाऐ जो देखे मेरी जानिब,
उस सितमगर की बड़ी ललकार हूँ।
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दर्दे-जिगर पे जब कोई ग़ज़ल कहूँ,
लगू मैं “जैदि”लब़्जो का शिकार हूँ।
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मायने:-
फ़कत:-केवल
अस्थियां :-हड्डियां
श़जर:-वृक्ष
जानिब:-ओर
ललकार:-चुनौती
दर्दे-जिगर:-जिगर के दर्द
ग़ज़ल:-कविता
शायर:-“जैदि”
डॉ.एल.सी.जैदिया “जैदि”
रचना नंबर:-(11)
ग़ज़ल
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तेरा मेरा ये रिश्ता है प्यार का,
खूबसूरत रिश्ता है संसार का।
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भाई बहन का अटूट सा बंधन,
मोहताज न किसी त्यौहार का।
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महकी महकी बगिया रहे सदा,
ख़िज़ाँ रोके रस्ता न बहार का।
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खुशियों की हम झोली भर’ले,
हम रिश्ता रखे दिले-करार का।
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कदम-कदम बे’खौफ़ चले हम,
लाख जतन करे कोई दरार का।
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“जैदि”के संग तुम आओ बहना,
रुख मोड़े, ज़हरीली बयार का।
===================
मायने:-
खिंजा:-पतझड़
दिले-करार:-दिल के चैन
बयार :- हवा
शायर:-“जैदि”
डॉ.एल.सी.जैदिया “जैदि”
रचना नंबर:-(12)
ग़ज़ल
******
उल्फ़त की बस्ती
—————————
लहरो से डरोगे तो कश्ती डूब जाऐगी,
अहम करोगे है जो हस्ती डूब जाऐगी।।
=======================
करोगे सौदा तुम अपने ज़मीर का तो,
इक दिन ये मौक़ापरस्ती डूब जाऐगी।।
=======================
मत किजे इक दुजे से तुम धोखा यार
उल्फ़त की तुम्हारी बस्ती डूब जाऐगी।।
=======================
शानो शौक़त यूँ किसी को ना मिलती
मिली है शोहरत सस्ती तो डूब जाऐगी।।
=======================
दर्द दे है बनाई,गर दौलत-ऐ- मंज़िल,
तुम्हारी ये जोरज़बरदस्ती डूब जाऐगी।।
=======================
चलते रहो, हयात जैसे चलाऐ “जैदि”
वरना इक दिन मौजमस्ती डूब जाऐगी।।
=======================
मायने:-
हयात:- जिंदगी
शायर:- “जैदि”
डॉ.एल.सी.जैदिया”जैदि”
रचना नंबर:-(13)
ग़ज़ल
====
सुन रे मनवा जिन्दगी इक मेला है,
कोई संग नही तेरे बस तूं अकेला है।
=====================
हाथ को हाथ की यहाँ खबर नही,
अजीब दुनिया का, अजीब खेला है।
=====================
अपने हमाम में यहाँ हर कोई नंगा
वस्त्र है साफ,अन्दर से मन मैला है।
=====================
सियासत के है यहाँ सब बादशाह,
है सब गुरु ही गुरु, कोई न चेला है।
=====================
दुनिया की है यहाँ रीत बड़ी निराली,
दौलत वाला देव,गरीब इक ढ़ेला है।
=====================
इक आंख में आंसू, इक में खुशियाँ,
सुन “जैदि” जिंदगी का यही खेला है।
=====================
शायर:-“जैदि”
डॉ.एल.सी.जैदिया “जैदि”
रचना नंबर:-(14)
ग़ज़ल
******
उल्फ़त की बस्ती
—————————
लहरो से डरोगे तो कश्ती डूब जाऐगी,
अहम करोगे है जो हस्ती डूब जाऐगी।।
=======================
करोगे सौदा तुम अपने ज़मीर का तो,
इक दिन ये मौक़ापरस्ती डूब जाऐगी।।
=======================
मत किजे इक दुजे से तुम धोखा यार
उल्फ़त की तुम्हारी बस्ती डूब जाऐगी।।
=======================
शानो शौक़त यूँ किसी को ना मिलती
मिली है शोहरत सस्ती तो डूब जाऐगी।।
=======================
दर्द दे है बनाई,गर दौलत-ऐ- मंज़िल,
तुम्हारी ये जोरज़बरदस्ती डूब जाऐगी।।
=======================
चलते रहो, जैसे हयात चलाऐ “जैदि”
वरना इक दिन मौजमस्ती डूब जाऐगी।।
=======================
मायने:-
हयात:- जिंदगी
शायर:- “जैदि”
डॉ.एल.सी.जैदिया”जैदि”
रचना नंबर:-(15)
ग़ज़ल
=====
मत कर गुरुर तूं अपने होने का,
ये वक्त ना देगा, इक पल रोने का।
====================
रख संजो कर है जो अरमान तेरे,
ग़म ना हो जाऐ, कहीं खो’ने का।
====================
जुर्म की इंतहाँ, अब कर दे जरा,
है ये पल,बीज प्यार के बोने का।
====================
कब ये साँसे, साथ छोड़ दे तेरा,
तूम को ये मलाल रहेगा होने का।
====================
गलत फहमियाँ है जो पाल रखी,
तुझे तख़्त ताज मिलेगा सोने का।
====================
है ये भ्रम तेरा,इसे तूं छोड़ “जैदि”,
देह में दम नही अब भार ढ़ोने का।
====================
मायने:-
देह:- शरीर/काया
शायर:-“जैदि”
डॉ.एल.सी.जैदिया “जैदि”
रचना नंबर:-(16)
ग़ज़ल
*******
हवा के रुख से मैंने बगावत की है,
सागर की लहरो से अदावत की है।
***************************
कश्ती उस पार ले जाऊंगा देखना,
हौसलो संग खूब मैंने दावत की है।
***************************
संग-ओ-खार राह में, आऐ जितने
मंजिल पाने की, मैंने चाहत की है।
***************************
मयखानो से होकर मैं गुजरा नही,
पीने वालो से मगर शराफ़त की है।
***************************
सच-झूठ मे जब-जब तकरार हुई,
सच की सदा, मैंने वकालत की है।
***************************
तुफानो से डर जो भागा न “जैदि”
मैने सदा उसी की, इबादत की है।
**************************
मायने:-
अदावत:-दुश्मनी
संग-ओ-खार:-पत्थर और कांटे
शराफ़त:-भद्रता,शिष्टता
इबादत:-पूजा
शायर:-“जैदि”
डॉ.एल.सी.जैदिया “जैदि”
रचना नंबर:-(17)
ग़ज़ल
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लौटा दे कोई बिते कल को,
सुकून भरे, लौटा दे पल को।।
=================
हरा भरा था ये उपवन मेरा,
लगी आग, कैसे जंगल को।।
=================
तिनका तिनका जोड़ा जिसे,
ले गये लोग उसी असल को।।
==================
कड़कड़ाती रही, बिजलियाँ,
रात भर देखा रोते बादल को।।
=================
मैं टूट कर बिखर रहा था ऐसे
जैसे कोई लूट रहा फसल को।।
==================
बदनशीब सा मैं शायर “जैदि”,
देखूँ तड़फता मेरी ग़ज़ल को।।
==================
शायर:-“जैदि”
डॉ.एल.सी.जैदिया “जैदि”
रचना नंबर:-(18)
ग़ज़ल
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दिवारो के भी कान होते है
********************
दिवारो के भी कान होते है
ऐसे भी देखो इंसान होते है।
=================
शतरंज के ये माहिर मोहरे,
खिलाड़ी की ये जान होते है।
=================
दिन को चैन न रात को चैंन
जिंदा रह के ये बेजान होते है।
=================
ज़मीर बेच कर करना काम
इनके ऐसे ही, इमान होते है।
=================
कैसा नफ़ा है कैसा नुकसान
ये जालिम बड़े शैतान होते है।
=================
सियासत की चालो में “जैदि”
ऐसे हर घोड़े बड़े महान होते है।
=================
शायर :- “जैदि”
डॉ.एल.सी.जैदिया “जैदि”
रचना नंबर:-(19)
ग़ज़ल
=====
औरत की आबरु
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हैवानियत हावी है अब इंसानियत पर,
तरस खाता नही है कोई मासूमियत पर।
=======================
भूल से भरोसा मत करना इस जहाँ में,
बैठा हो जालिम चाहे जिस हैसियत पर।
========================
हालात अजीब है औरत की आबरु का,
शक होता है, हर किसी की नियत पर।
========================
खौफ से गुजरती है साँसे, देखो उसकी,
कोई आँसू बहाता नही है अहमियत पर।
========================
माँ-बहन, बहू- बेटी है कयी रुप इसके
आओ गर्व करे सब, ऐसी ख़ासियत पर।
========================
इल्तिजा है “जैदि” की,हे! बंदे बदल जा,
है वक्त अभी भी आ जा असलियत पर।
========================
शायर:- “जैदि”
डॉ.एल.सी.जैदिया “जैदि”
बीकानेर।
रचना नंबर:-(20)
गज़ल
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मैं जिंदा होकर भी मजार हूँ,
आज मै खुद से ही, बेजार हूँ।।
=================
जहाँ ज़मीर जो,अपना बेचता,
मैं वो बदनशीब सा बाजार हूँ।।
==================
जलते है लोग गम-ऐ-हाल में,
कैसे बुझाऊं,मै खुद आज़ार हूँ।।
==================
ना गिरे जो ओरों की नज़र से,
मैं करता उन्ही का, इंतजार हूँ।।
=================
जिनको भी कहा है सच मैंने,
लगा उन्ही को मैं बुरा हजार हूँ।।
=================
उजड़ा हुआ चमन था “जैदि”,
लो आज मैं फिर से गुलजार हूँ।।
==================
मायने:-
बेजार:-परेशाँ
आज़ार:-आग
गुलजार:-खिला हुआ बगीचा
शायर:-“जैदि”
डॉ.एल.सी.जैदिया “जैदि”
रचना नंबर:-(21)
ग़ज़ल
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कुचल न सकोगे इंकलाब हमारा, ये ऐलान है,
खेत छोड़ सड़कों पर, आया आज किसान है।
==========================
देखा था इक ख्व़ाब,गद्दी पे जब तुम बैठे थे,
इक पल सोचा हमने,बंदा यह बहुत महान है।
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थी संपत्ति देश की सारी धीरे-धीरे से बेच दी,
पता चला ये हमको,शहंशाह बड़ा बेईमान है।
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सदाऐ दब गई है सारी,हुकूमत तेरी आने से,
सत्ता मद में चूर तुम्हारा,ये कैसा अभिमान है।
==========================
हर तरफ मची है हाय तौबा,है सड़को पे शोर
इस खामोशी से राजन तेरी,हर कोई हैरान है।
==========================
जोर जुल्म सब छोड़ अब ‘जैदि’ की तूं सुन,
सता में तुमको जो लाऐ थे, ये वही इंसान है।
==========================
मायने:-
सदाऐ:- आवाजे
शायर:- “जैदि”
डॉ.एल.सी.जैदिया “जैदि”
रचना नंबर:-(22)
गज़ल
=====
आजादी की साँसे जरा हमे भी लेने दो ।
इन बहारो को हमारी जानीब बहने दो ।।
========================
है जुबां पर अल्फा़ज बहुत कई मुद्दत से
मौका है फिसल जाने से पहले कहने दो ।।
========================
जो भी है अहसास, खूली हवाओं का ।
सुकून से अब हमारी रगो में भी बहने दो ।।
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कुछ लम्हें ही सही देखे तो हम कैसी है ।
पल दो पल पास हमारे, इसको रहने दो ।।
========================
कहते है कि राहो में दीवारे जो खड़ी है ।
जर-जर होने को है अब उनको ढ़हने दो ।।
========================
ये आजादी कब तलक दूर रहेगी हमसे।
बहुत सहा है दर्द “जैदि”अब ना सहने दो ।।
========================
मायने:-
जानिब:- ओर से
शायर:- “जैदि”
डॉ.एल.सी.जैदिया “जैदि”
रचना नंबर:-(23)
गज़ल
*****
साहब, हुकूमत की ‘जी’ हजूरी जरुर करो ।
गिर के ज़मीर से इतना भी, ना गुरुर करो ।।
*******************************
मिल कर साथ, ना रहो तो ना सही, मगर ।
हत्था बन कुल्हाड़ी को मत, मशहूर करो ।।
******************************
मजाल है सितारे टूट के जमीं पे गिर जाऐ ।
तुम भी तो सितारो सा,खुद को,हुजूर करो ।।
*******************************
ये रात फ़कत एक रात की है, रोज आऐगी ।
डर है ज़हन में इसका, तो इसको दूर करो ।।
********************************
कोई मिटाऐं, रकीब तुमको इस तरहा यारो ।
तुम उसके मकसद मिटाने का, दस्तूर करो ।।
********************************
चुप रह के जुल्म सहना ठीक नही है “जैदि”।
चलो जा के दुश्मन का अभिमान,चूर करो ।।
********************************
मायने:-
फ़कत :- केवल
रकीब :-दुश्मन
शायर:-“जैदि”
डॉ.एल.सी.जैदिया “जैदि”
रचना नंबर:-(24)
कोरोना से अब तुम कभी डरोना
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कोरोना से जरा भी तुम मत डरो ना,
बहादूर हो ये तुम भरोसा मेरा करो ना।।
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हर वक्त मुख पे मास्क, लगा के रखो,
मिलो जब किसी से,गज दो दूर रहो ना।।
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कुछ पल मुश्किल का ये नाजुक दौर है,
घर में ही रहो, इधर-उधर मत जाओ ना।।
*******************************
स्कुल,कोलेज बंद ,बंद है सब बाजार,
घर में ही रहो मत जा के बाहर पढ़ो ना।।
******************************
मात-पिता, गुरु जन सब यही सिखाते,
खाओ-पीओ मगर हाथ मत मिलाओ ना।
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खेलो, कुदो,केवल तुम अपने ही घर में,
रोना-धोना छोड़, संग “जैदि” के हंसो ना।
*******************************
शायर:-“जैदि”
डॉ.एल.सी.जैदिया “जैदि”
रचना नंबर:-(25)
गज़ल
******
वादा किया जब तक रहे साथ हँसाते रहना
आँखो से हर अश्क हमारे तुम मिटाते रहना।
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रुठ कर न जाने यार फिर कहाँ चला गया
बहारो मिले खबर उसकी, तो बताते रहना ।
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सूनी-सूनी सी है बिन उसके,बगिया हमारी
गर वो आऐं तो खार, डगर से हटाते रहना ।
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तुम अडिग हो दोस्त, लौट कर न आओगे
आओ गर आने का अहसास, कराते रहना।
********************************
जहाँ भी रहो ऐ दोस्त, सुनो जरा बात मेरी
मुस्कुरा के सदा गुलशन को महकाते रहना।
********************************
गैरमोजुदगी मे तुम्हारी भटक जाऐ “जैदि”
रहबर की तरह राह उसको दिखाते रहना।
********************************
खार:- काँटे
रहबर:-मार्गदर्शक
तुम्हारा शायर:- “जैदि”
डॉ.एल.सी.जैदिया “जैदि”
रचना नंबर:-(26)
गज़ल
!*****!
तेरी हुकूमत में ये कैसा शोर है
क्या मानले ये तानाशाही दौर है /1
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दिन को चैन है ना रात को चैन
ये जिन्दगी जैसे,पंतग की डोर है /2
==================
खौफ से गुजरती शामे हमारी
सिसकिया भरती, ऐसी भौर है /3
==================
दरबदर भटक रहे है इस तरहा
अमन का नही यहाँ कोई ठौर है/4
==================
कहाँ जाऐ बताइये, ऐ हुजूर
तेरी सलतन मे ये कैसा जौर है/5
==================
मुसीबत का मारा कहता “जैदि”
यही है सर जमीं,ना कोई और है/6
==================
भौर:-सुबह
ठौर:-जगह
जौर:-अत्याचार
शायर:-“जैदि”
डॉ.एल.सी.जैदिया “जैदि”
रचना नंबर:-(27)
मेरी सर जमीं
************
मेरी सर जमीं पर मेरा ही हक नही क्यूँ आखिर कहता है।
इक कतरा लहू का बहाया नही ये बात, शातिर कहता है /1
=================================
कुर्बां हुऐ हम भी वतन की खातिर देखो इतिहास ऊठा के
वतनपरस्त आज भी है ये मुल्क का हर जाकिर कहता है /2
=============================
====
सरफरोशी की तमन्ना हम तो, आज भी दिलो में रखते है
हर बच्चा हमारा वतन की हिफाजत की खातिर कहता है /3
=================================
धरोहर बेच के आबाद किया अमीरो को ये सब जानते है
हमने क्या किया है आकर हमसे ये बात ताजिर कहता है /4
=================================
डूब मरो, लगा के आग नफरत की वतन पे राज करते हो
हम हितेषी है सितमगर आवाम मे होकर हाजिर कहता है /5
=================================
मजहब-मजहब में भेद करना, क्या यही तुम्हारी नीति है
सुना शायर”जैदि”ने ये बात राह का हर मुसाफिर कहता है /6
=================================
शातिर:-परम धूर्त, झूठा
जाकिर:-जिक्र करने वाला
ताज़िर:-सौदागर,व्यापारी
✍✍
शायर;-“जैदि”
डॉ.एल.सी.जैदिया “जैदि”
रचना नंबर:-(28)
———–गज़ल———-
*****
मैं दारु मेन मस्त हूँ, जूऐ में व्यस्त हूँ
मरना है,जीना है, इसी में आश्वस्त हूँ /1
======================
अपनी खबर है न,मुझको तेरी खबर
मैं तो बस अपनी, उलझन में ग्रस्त हूँ /2
======================
खुद के काबिल,ना ओरो के काबिल
किसको रोशन करु,मैं सूरज अस्त हूँ /3
======================
मुझे हार का गम है ना मेरी जीत का
अजीब खिलाड़ी मैं खुद से परास्त हूँ /4
=====================
मेरा होना,ना होना कोई मकसद नही
जिंदा रहूँ फ़कत, ऐसा मौकापरस्त हूँ /5
======================
सबक लो सब शागिर्द, मेरे जीवन से
हर नज़र से गिर के मैं “जैदि” पस्त हूँ /6
======================
शायर:- “जैदि”
डॉ.एल.सी.जैदिया “जैदि”
रचना नंबर:-(29)
**********गज़ल***********
————
खामोश रह के क्यूँ खुद को जलाते हो
ये दुनिया है दोस्त,क्यूँ इसको हंसाते हो /1
———————————————–
ये तुम पर भी हँसती है और मुझ पर भी
तुम ओरो का दिल फिर क्यों बहलाते हो /2
————————————————
कुछ तो बोलो हजूर हमसे क्या बेरुखी
क्यूँ इस तरह तुम गम अपने सहलाते हो /3
———————————————–
है अल्फाज बहुत तुम्हारे मासूम लबों पे
जिंदा होकर फिर मुर्दा क्यूँ कहलाते हो /4
———————————————–
अब छोड़ो भी जनाब इस,कशमकश को
तुम कायर हो, लोग ऐसा भ्रम फैलाते है /5
———————————————–
ख़ल्क तो मर चुकी है इस जहाँ में “जैदि”
क्यूँ अब अश्को से खुद को,नहलाते हो /6
————————————————
ख़ल्क:-मानवता,इंसानियत
शायर:- “जैदि”
डॉ.एल.सी.जैदिया “जैदि”
रचना नंबर:-(30)
हर जख्म मेरा जैसे हरा है
*******************
हर नज़र का मुझ पे पहरा है
दर्द-ए-जीग़र बहुत गहरा है // 1
———————————
खायी है चोट दिल पर ऐसे
हर जख्म जैसे,मेरा हरा है //2
———————————
गुजरता रहा वक्त इस तरहा
जिन्दगी जैसे कोई सेहरा है //3
———————————-
करता रहा चराग-ए-रोशन
आता नज़र मेरा ही चेहरा है //4
———————————-
मुन्तज़िर हूँ मैं राहे-वफ़ा की
ना जाने वक्त कहाँ ठहरा है //5
———————————-
देता है सदाऐ उसकोे “जैदि”
लगता है ये वक्त भी बहरा है //6
———————————-
दर्द-ए-ज़ीगर:-दिल का दर्द
सेहरा:-रेगिस्तान
चराग-ए-रोशन:- दीपक जलाना
मुन्तजिर:- प्रतीक्षा मे
राहे-वफ़ा:-वफा की राह
सदाऐ:-आवाजे
शायर:- “जैदि”
डॉ.एल.सी.जैदिया”जैदि”
रचना नंबर:-(31)
– ग़ज़ल-
======
किस मकसद से आऐ थे सरकार,उसका जवाब दीजिए
इधर-उधर की बाते ये सब छोड़ो इसका हिसाब दीजिए
******************************************
मन्दिर-मस्जिद का खेल सब फिजूल की बाते है साहेब
भूखे प्यासो की भूख मिटे,कुछ खाने को जनाब दीजिए।
******************************************
बहुत हो गया यह शौर-शराबा अब, बस कीजिए हजूर
जाति-धर्म में क्या रखा है इंसानियत का खिताब दीजिए
******************************************
मासूम जिस्म नौंच रहे है काफिर, कुछ तो ख्याल कीजिए
बुरे हाल से है शर्मिन्दा चेहरा छिपाऐ ऐसा हिजाब दीजिए।
*******************************************
शुक्र है सिखा दिया हुनर हमको जमाने से मिली ठोकरो ने
सुकून की निंद आती रहे हमे तो बस ऐसा ख्वाब दीजिए।
*******************************************
बड़ी मुद्दत से इल्तिजा करता है “जैदि” सरकार आप से
साया-ऐ-जुल्मत मिटाऐ मुल्क मे ऐसा आफताब दीजिए
********************************************
शायर:-“जैदि”
डॉ.एल.सी.जैदिया “जैदि”
रचना नंबर:-(32)
ग़ज़ल
=====
दौड़े जा तूं दौड़े जा
*****************
दौड़े जा तूं दौड़े जा
घोड़े सी तूं दौड़े जा।
————————
भारत धरा की धावक,
मुंह तुफानो का मोड़े जा।
————————–
गगन नापना बाकी है
पहचान तुम्हारी छोड़े जा।
—————————
है तुझमे साहस इतना
तूं धरती-पताल फोड़े जा।
—————————-
अभी-अभी तो फूटा अंकूर
पदक-पदक तूं जोड़े जा।
—————————–
रेस अभी सब बाकी है
सभी अभिलेख तोड़े जा।
——————————
अभिलेख:-रिकॉर्ड
शायर:-“जैदि”
डॉ.एल.सी.जैदिया “जैदि”
रचना नंबर:-(33)
ग़ज़ल
=====
लाचार हूँ मजबूरियो से, अपनी आदत से नही
●●●●●●●●●●●●■●●●●●●●●●●●●
जंग हौसलो से जीती जाती है ताकत से नही
मंजिल मेहनत से मिलती है, इबादत से नही..!
***********************************
पल में मिट जाती सदियो पुरानी, सब रंजिशे
करे कोई बात प्यार से, मगर अदावत से नही.!
***********************************
शान-ओ-शौकत ये सब दिखावा है मेरे दोस्त
उल्फत तो दिल से की जाती है दौलत से नही.!
***********************************
भटकता हूँ दरबदर बस,अमन-ओ-चैन के लिए
लाचार हूँ मजबूरियो से,अपनीे आदत से नही.!
***********************************
बेसक कोई मुलाजिम गीबत से शौहरत पाऐ
दिल जीते जरुर, पर छिपा के सदाकत से नही.!
***********************************
दुश्बार राहो से गुजरता है हर पल शायर “जैदि”
कोई ख़ार भी चुभाऐ प्यार से, हिमाकत से नही.!
इबादत:- पूजा
अदावत:-दुश्मनी
उल्फत:-मुहब्बत
गीबत:-बुराईया / चुगली
सदाकत:-सच्चाई
दुश्बार :-कठिन
हिमाकत:- दुःसाहस
ख़ार:-कांटा
शायर:- “जैदि”
डॉ.एल.सी.जैदिया “जैदि”
रचना नंबर:-(34)
ग़ज़ल
=====
!! शहीदो को नमन् !!
चिराग बुझ रहे है क्यूँ मेरे घर के
************************
चिराग बुझ रहे है क्यूँ मेरे घर के
देखा न उनको, अभी जी भर के।
*************************
अंगुली पकड़ के चलाया जिनको
उन्ही को चले हम, कंधे पर धर के।
**************************
धधक रही लहू से लिपटी अर्थियाँ
यह देख उदास है हर द्वार नगर के।
***************************
सन्नाटा पसरा है वतन में चारो ओर
न जाने कौन चला है खुशियाँ हर के।
***************************
लौटा दो कोई अमन, मेरे मुल्क का
भर दूंगा झोली खुद को मिटा कर के।
***************************
कोई जालिम सितमगर यह ना जाने
दुबक कर “जैदि” घर बैठा है डर के ।
****************************
शायर:- “जैदि”
डॉ.एल.सी.जैदिया “जैदि”
रचना नंबर:-(35)
*****गज़ल******
******
आ तुमको मैं, बाँहो में भर लूँ
साँसो को तेरी वश मे कर लूँ ।
************************
जुदा ना होना यूँ मुझसे तुम
आओ तुमको पलको पे धर लूँ।
************************
संग रहुंगी जब तक, शागिर्द
पल मे सारे, दुख-दर्द हर लूँ ।
************************
मंजिल है बस अब थोङी दूर
देख के थोङा और जी भर लूँ ।
************************
गजब है यह संगम तेरा-मेरा
छुटे जब साथ, पहले मैं मर लूँ ।
************************
जब-जब जन्म मिलेगा “जैदि”
हर जन्म में तुमको अपना कर लूँ।
************************
शायर::-“जैदि”
डॉ.एल.सी.जैदिया “जैदि”
रचना नंबर :-(36)
!! चला जाऊंगा ये आशियाना छोङकर !!
गजल
चला जाऊँगा ये आशियाना छोङकर इस जहाँ का।
किया वादा निभाऊँगा तुझसे मुहब्बत की जुबाँ का।
जलता रहा बेवफाई की आग में नजर न आया तुझे
विरानो मे कही खो गया हूँ, मंजर दिखा ना वहाँ का।
खंजर की चोट खा लेता, शायद जख्म भर भी जाता
मुसाफिर अनजान राहो का, फिर दोष क्या समाँ का।
फकत गुंजेगी सदा धङकने अब घायल मेरे दिल की
सन्नाटो की आहट मे अब क्या ? पता हम-जुबाँ का।
माल-ओ-असबाब थी मेरी, वो सब तेरी प्यारी यादे
दर-बदर काख छानती रहोगी तुम उल्फते-निशाँ का।
बेगानो की इस महफिल में आयेगा “जैदि” याद कभी
गरूरे-खुदी पुछेगी तुझे वजा क्या थी मेरी तन्हाँ का।
मायने:-
सदा:-आवाज
फकत:-केवल
माल-ओ-असबाब:-जमा पूंजी और सम्पती
गरूरे- खुदी:-खुद का घमण्ड
वजा:-कारण
शायर:-“जैदि”
डॉ.एल.सी.जैदिया “जैदि
रचना नंबर:-37
गज़ल
☆☆☆
कुछ कसर है बाकी रिश्ते बनाने में
कुछ कसूर है बस, रिश्ते निभाने में ।
→→→→→→→→→→→→
नाजुक से होते है धागे, मुहब्बत के
टूटे जब दर्द सा होता है, दिखाने में ।
→→→→→→→→→→→→
बदले मिजाज, बे’मौसम की तरहा
लगा हो जैसे बंजर जमीं, लुभाने में ।
→→→→→→→→→→→→
रिश्तो की कद्दर फरेब में कहाँ ढूढे
अब तो सुकूँ मिलता है मुँह छुपाने में ।
→→→→→→→→→→→→
कस्तिया डूब गई थी,जो साहिल पे
अकसर जख़्म छुपाती थी जमाने में ।
→→→→→→→→→→→→
रिश्तो की धुन्ध में लिप्टा हर कोई
खूशी ढूंढता “जैदि” धुन्ध मिटाने में ।
शायर::-“जैदि”
डॉ.एल.सी.जैदिया “जैदि”
रचना नंबर:-(38)
ग़ज़ल
====
तुम सपनो की उड़ान बन कर देखो,
फ़कत इक बार थोड़ा जी भर देखो।
======================
तुम ही जवाब हो तुम ही सवाल हो,
मुझसे दिल इक बार लगा कर देखो।
======================
रखुँगा तुझको पलको पर सजा कर
मुहब्बत का मेरी थोड़ा असर देखो।
======================
काबिल न रहूँ तुम्हारे लिऐ अगर मैं,
हक है तुम्हे काट देना मेरा सर देखो।
======================
रखेगा याद ये सारा जहाँ वफ़ा मेरी,
तुम आँखो में मेरी कही है डर देखो।
======================
तुम न मिली मुझे इस हयात में गर,
भटकता मिलेगा ‘जैदि’ दर-दर देखो।
======================
शायर:- “जैदि”
डॉ.एल.सी.जैदिया “जैदि”
रचना नंबर:-(39)
ग़ज़ल
====
तुम आओ मेरे दिल के गाँव में,
रखुँगा तुम्हें पलको की छाँव में।
===================
छू न ले हवा का इक कतरा भी
कोई काँटा ना चुभे, तेरे पाँव में।
===================
तेरी हर शर्त है मंजूर मुझे मगर,
चाहे हारना ही पड़े मुझे दाँव में।
===================
डूबना तो मुमकिन है समुन्द्र में,
जब हो जाऐ कोई छैद, नाँव में।
===================
सहरा में आ के तुम देखो सही
पाओगी तुम शज़र की छाँव में।
===================
तुम बिन तन्हा है, शायर “जैदि”
कभी रखो ना कदम मेरे ठाँव में।
===================
शायर:-“जैदि”
डॉ.एल.सी.जैदिया “जैदि”
रचना नंबर:-40
विधा:- ग़ज़ल
ग़ज़ल
====
पत्थर और पानी तेरी अजीब कहानी रे,
इक रोके है रस्ता तो दूजा दे जिंदगानी रे।
=========================
झर झर बहते झरने पत्थर के पहाड़ो से,
कल कल छल छल करे दरिया दिवानी रे।
=========================
हरे भरे उपवन,है खिल खिलाते पानी से
लहलहाती कलिया लगती बड़ी सुहानी रे।
=========================
इतना अडिग है पत्थर,पर्वतो-चट्टानो का
डरे न आँधी तुफाँ से ऐसी उसमे रवानी रे।
=========================
छल,कपट छोड़ सीख ले पत्थर पानी से,
पत्थर दिल इंसान, तूं भी बन जा पानी रे।
=========================
इतना क्या गिरना ‘जैदि’ तेरे इस ज़मीर से,
तूं शजर बन ऐसा तेरी छाँव लगे सुहानी रे।
==========================
शायर:-“जैदि”
डॉ.एल.सी.जैदिया “जैदि”
बीकानेर (राजस्थान)
रचना नंबर:-(41)
******गज़ल*******
दफन होते है रिश्ते यहाँ
*******************
ऐ जिन्दगी तूं मुझे, कहाँ ले आई
हर तरफ नफरत है वहाँ ले आई ।
दम घुटता है हर किसी का यहाँ
मुस्कुराते हुऐ मुझे, यहाँ ले आई ।
कुसूर बस इतना ही तो था मेरा
चाहा तुम्हे, तूम मुझे यहाँ ले आई ।
कोई किसी का नही सारे जहाँ में
हर कोई अजनबी है वहाँ ले आई ।
अपने ही अपनो की कब्र खोदता
दफन होते है रिश्ते” जहाँ ले आई ।
हर कोई सहमा-सहमा सा रहता
खमोशियो मे तूं मुझे कहाँ ले आई ।
खोमोशी भी बैचेन नजर आती है
तूं रहबर बन के मुझे यहाँ ले आई ।
मुर्दा बन कर करे क्या अब “जैदि”
जहाँ मुर्दा भी बिकता,वहाँ ले आई ।
शायर::-“जैदि” ✍
डॉ.एल.सी.जैदिया “जैदि”
रचना नंबर:-(42)
ग़ज़ल
=====
औरत की आबरु
============
हैवानियत हावी है अब इंसानियत पर,
तरस खाता नही है कोई मासूमियत पर।
=======================
भूल से भरोसा मत करना इस जहाँ में,
बैठा हो जालिम चाहे जिस हैसियत पर।
========================
हालात अजीब है औरत की आबरु का,
शक होता है, हर किसी की नियत पर।
========================
खौफ से गुजरती है साँसे, देखो उसकी,
कोई आँसू बहाता नही है अहमियत पर।
========================
माँ-बहन, बहू- बेटी है कयी रुप इसके
आओ गर्व करे सब, ऐसी ख़ासियत पर।
========================
इल्तिजा है “जैदि” की,हे! बंदे बदल जा,
है वक्त अभी भी आ जा असलियत पर।
========================
शायर:- “जैदि”
डॉ.एल.सी.जैदिया “जैदि”
बीकानेर।
रचना नंबर:-(43)
गज़ल
****
खौफ का यह, मंज़र है
कोई बाहर कोई अंदर है।
===============
मत निकलो तुम, घर से
बाहर मौत का, संमदर है।
===============
बात मान लो मेरी, यार
ये जिन्दगी बहुत सुन्दर है।
===============
कुछ पल की ही, बात है
फिर हर कोई, सिकंदर है।
===============
जीऐे गर, तो फिर मिलेगे
इतना बुरा, नही मुकद्दर है।
===============
मुश्किल का दौर है “जैदि”
ये दौर भी, दहर-ऐ-बदर है।
===============
दहर-ऐ-बदर:- दुनिया के बाहर
शायर :-“जैदि”
डॉ.एल.सी.जैदिया “जैदि”
रचना नंबर:-(44)
गजल
*****
दिल को चुभन दे वो काँटे तोङ जाना
******************************
जाते हुऐ कदमो के निशाँ छोङ जाना,
चन्द खुशियाँ हमारी ओर मोङ जाना।
*****************************
लम्हो को सजा के रखेगे हम आपके,
बस टुटे रिश्तो को, जरा जोङ जाना।
*****************************
ना जाने किस मोङ पर बिछङ जाऐ,
नफरत के वो आशियाने, तोङ जाना।
*****************************
माना की टुटे दिल नही मिलते, मगर,
कुछ अहसास तो जरूर छोङ जाना।
*****************************
बिखरे से घरोंदे,हम फिर से बनाऐंगे,
मिट्टी में महकती, महक छोङ जाना।
*****************************
बगियाँ में, गुल खिलेगें, जरूर “जैदि”,
दिल को चुभन दे वो काँटे तोङ जाना।
*****************************
शायर::-“जैदि”
डॉ.एल.सी.जैदिया “जैदि”
रचना नंबर :-(45)
***सता की बिसात*****
**************
भङक गई चिनगारी, टुटे हुऐ जज्बात से
जाग गया है शोषित, बिती उसी रात से।
*********************************
तोङ कर गुलाम समाजो की हर बेङियाँ
मरेगें तो शान से,पर जीऐ’गे ना खैरात से।
**********************************
कर लिया अपमान हमारा बस और नही
नज़र झुकेगी अब, उनकी हमारी बात से।
**********************************
जाग गया जमीर हमारा जो मर गया कभी
कोई गिला है ना शिकवा बिते दिन रात से।
**********************************
हो जाऐ संघर्ष हमारा,दुश्मन की तलवार से
आ गया जो होश हमे: गुजरे उन हालात से।
**********************************
जाऐगी ना जान कभी सताऐ हुऐ समाज से
मिलेगा अधिकार अब सता की बिसात से।
*********************************
शायर:-“जैदि”
डॉ.एल.सी. जैदिया “जैदि”
रचना नंबर:-(46)
ग़ज़ल
******
पल में खुशी का बदल, मंजर जाता है,
******************************
पल में खुशी का बदल, मंजर जाता है,
हाड-मांस का कफ़स गुमाँ,कर जाता है।
*******************************
थम जाती है हर किसी की साँसे, जब,
आदमी टूट के जमीं पर बिखर जाता है।
******************************
फ़लक पे बस वही चमकता है सितारा,
सूरज की तपन जो सहन कर जाता है।
******************************
मंजिल तक नही पहुंचता वो मुसाफीर,
देख कर जो संगो-ख़ार से डर जाता है।
******************************
कुछ जख्म ऐसे होते है जो दिखते नही,
इसाँ मगर लिए साथ उसे, मर जाता है।
*******************************
जुबानी खंजर ऐसा होता शायर “जैदि”
बिन लहू निकले ही आदमी मर जाता है।
******************************
शायर:-“जैदि
डॉ.एल.सी.जैदिया “जैदि”
रचना नंबर:-(47)
ग़ज़ल
*******
नज़र से उतर कर दिल में समा गये
बातो-बातो में हम को यूँ आजमा गये।
*****************************
बड़ी मुद्दत से ख्यालो में रखा उन्होंने
रुबरू हुऐ हम तो महफिल जमा गये।
*****************************
यूँ तो कभी दो चार हुऐ न हम, उनसे,
मिले उनसे पहली बार हम शर्मा गये।
****************************
दरबयाँ हमारे हुई शुरु चंद मुलाकात,
तन्हा थे जो लम्हें पल में ही गर्मा गये।
****************************
हसरतो को लिऐ बैठे थे हम कभी के,
वो चले इस तरहा,कि सांसे थमा गये।
*****************************
जहां से हुआ शुरु इश्के-सफर “जैदि”
पा कर तुम को सनम नाम कमा गये।
*****************************
शायर:-“जैदि”
डॉ.एल.सी.जैदिया “जैदि”
रचना नंबर:-(48)
ग़ज़ल
******
कतारे बढने लगी है खामोश नजारो की
लगी है सजने महफ़िल, देखो बाजारो की।
==========================
है औकात नही जिनकी, इक कौङी की
वे कफ़न बेच के लगाते बोली, हजारो की।
=========================
छीन के निवाला,मार गिराया गरीबो को,
जलादो को जरूरत पङी न, औजारो की।
=========================
आज सितमगर साहिबे-मसनद है देखो,
वो दशा देखे न मुफलिस-ओ-लाचारो की।
=========================
लाशो पर चलने की है आदत हो जिनकी,
देखना वही गिराऐंगे ईंट कभी मज़ारो की।
==========================
मैं सुखनवर “जैदि” इल्तिजा करुँ सभी से,
दुआ करो सब लोग दवा बनू आजारो की।
==========================
मायने:-
साहिबे-मसनद:-गोल तकिया
मुफलिसी-ओ-लाचारो :-गरीब और असमर्थ
मज़ार:- कब्र
सुखनवर:- शायर
इल्तिजा:-प्रार्थना
आजार:-कष्ट
शायर:-“जैदि”
डॉ.एल.सी जैदिया “जैदि”
रचना नंबर:-(49)
गज़ल
=====
इक तूं ही है फ़कत मेरी इस नज़र में
कोई ओर नही, तूं देख ज़रा नज़र में।
=======================
तूं बदल सकता है रास्ता,अपना मगर,
छोड़ू ना साथ मैं तेरा,किसी सफ़र में।
=======================
खाई कसमे,तुमने उल्फ़त निभाने की
क्यूं छोड़ चला मुझको तन्हा सफ़र में।
=======================
यादो संग गुजार लुंगी है जो वक्त बुरा
रहुंगी सदा खुश बस तेरी हर ख़बर में।
=======================
लगा दे लाख इल्ज़ाम वफ़ा पे तूं मेरी
सह लूंगी सज़ा प्यार की इस डगर में।
=======================
अफ़साना ग़ज़ल ना बन जाऐ “जैदि”
झांक के कोई देखे ज़रा टूटे जिगर में।
=======================
शायर:- “जैदि”
डॉ.एल.सी.जैदिया “जैदि”
रछना नंबर:-(50)
गज़ल
*******
शाम ढ़ल रही है कभी कबार मिलने आ जाया कीजिए
*****************************************
शाम ढ़ल रही है कभी कबार मिलने आ जाया कीजिए
ढ़ल जाऐ शाम तो फिर खांमखा वक्त ना जाया कीजिए।
******************************************
कुछ है खता हम से हजूर बताने में क्या हर्ज बता दीजिए
यूँ छिपा के दिल के छाले तुम खुद को ना हँसाया कीजिए।
*******************************************
कमजोरी जान के खंजर चलाने की आदत सी है जहाँ को
कितना भी है खाश कोई, राज दिल के ना बताया कीजिए।
*******************************************
लगा देता आग पानी में, सितमगर जब ठान लेता है कोई
कितनी है गहरी दरार दिलो में, कभी ना दिखाया कीजिए।
********************************************
दुनिया में है छिपे कई राज, कोई बताता है कोई छिपाता है
है राज अगर किसी का,जब तक हो उसको दबाया कीजिए।
********************************************
तन्हाइयों मे कटती है हर शाम ‘जैदि’ की दिवानो की तरहा
छोड़ दो उसको उसके हाल पर बेवजह ना सताया कीजिए।
********************************************
शायर:-“जैदि”
डॉ.एल.सी. जैदिया”जैदि”
रचना नंबर:- (51)
दिनांक- 20/2/22
विषय:- आज विरान अपना घर देखा।
शीर्षक:- रगो मे अजीब सा असर देखा।
ग़ज़ल
=====
आज विरान अपना घर देखा,
खिलता जिसे जीवन भर देखा।
===================
सन्नाटा बिखरा पड़ा चंऊ ओर,
किसे भरुँ बाँहे फैला कर देखा।
===================
सिकुड़ी हुई थी, उसकी दिवारे,
बंद उसके दहलीजो- दर देखा।
===================
आँखे रोती रही यादो मे जिनके,
रगो मे अजीब सा, असर देखा।
===================
जिस चौखट पे बिखरी थी खुशी,
आँखो ने करते जीवन बसर देखा।
====================
कभी कभी रंजो-ग़म होता “जैदि”,
बिखर ने का मैंने भी ये डर देखा।
====================
दहलीजो-दर:- दहलीज और दरवाजा
रंजो-ग़म:- कष्ट और दुख
शायर:-“जैदि”
डॉ.एल.सी.जैदिया “जैदि”
बीकानेर (राजस्थान)
रचना नंबर :-(52)
दोस्तो,
एक ताजा़ ग़ज़ल रुस और यूक्रेन के बीच चल रही जंग पर ,,,,,,
ग़गज़
====
तबाही का सारा मंजर, देख रहे हो ना,
तुम बिखरते हुऐ ये घर, देख रहे हो ना।
========================
कितने अरमाँ देखे होंगें यहां की जहाँ ने
बारुद का ऐसा होता डर,देख रहे हो ना।
========================
जिन्हें शौख नही है, चैन-ओ-अमन का,
उन्हे कहो युद्ध का असर,देख रहे हो ना।
========================
कैसे जिंदगी की भीख मांग रहे है लोग,
क्या हो रहा है ये खबर, देख रहे हो ना।
========================
यही होता है गुमां बढ़ती हुई ताकत का,
गुमां में दहर रही है मर,,,देख रहे हो ना।
========================
इंसानियत बची है कहीं तो कहो “जैदि”
मत करो जंग गिरे ये सर,देख रहे हो ना।
========================
मायने :-
दहर :- दुनिया
शायर:- “जैदि”
डॉ.एल.सी.जैदिया “जैदि”
रचना नंबर (53)
विषय:- क्या करुं !!
ग़ज़ल
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गुजरी हुई उन रातो का क्या करुँ,
रह गई अधुरी,बातो का क्या करुँ।
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परेशाँ करती है धुधंली मुलाकते,
अब उन मुलाकातों का क्या करुँ।
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जीता रहा फ़कत जिनके के लिऐ,
अब, टूटे उन नातो का क्या करुँ।
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सोचता रहूँ मैं रात भर ख्य़ालो में,
सुनो ऐसे ख्य़ालातो का क्या करूँ।
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क्यूँ खेलते रहे जज्बात से वो मेरे,
मैं उन टूटे जज्बातों का क्या करुँ।
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सुनहरे थे खुशी के लम्हात “जैदि”,
बिखरी हुई सौगातो का क्या करुँ।
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शायर:-“जैदि”
डॉ.एल.सी.जैदिया “जैदि”
ग़ज़ल :-(54)
दोस्तों,
एक ताजा ग़ज़ल आपकी मुहब्बतो के हवाले,,,,,,,!!!
ग़ज़ल
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दुःख है मुझे कि मैं मुर्दो की आवाज़ था
ज़मीर न था उन्ही का मैं रखता राज़ था।
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करते रहे सितमगर, मेरे कंधे की सवारी,
मुझे लगा, मैं गगन का शिकारी बाज़ था।
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मकसद में होते रहे,अकसर वो कामयाब
भ्रम में जीया जैसे मैं ही उनका आज़ था।
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जब हुआ जुदा कोई आँख, मायूस न थी
मुस्कुरा रहे थे लोग जिन पे मुझे नाज़ था।
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बढ़ता रहा बेखौफ,अंगारो की जानिब मैं
मेरा हर जो कदम, जैसे नया आगाज़ था।
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अपनी धून मे जीता गया मैं शायर “जैदि”
ख़्यालो में मेरे,कभी न तख्त-ओ-ताज़ था।
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शायर:-“जैदि”
डॉ.एल.सी.जैदिया “जैदि”
ग़ज़ल:-(55)
दोस्तों,
एक ग़ज़ आपकी मुहब्बतों की नज़र।
ग़ज़ल
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बे’सबब रिश्ते आज चटकने लगे है,
कदम बातो बातो मे बहकने लगे है।
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खातिर दौलत के हम से इस तरहा,
देखो लोग दूर -दूर खिसकने लगे है।
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कहे कैसे वो आज हमारे अजीज है,
नज़र में जब उनकी खटकने लगे है।
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चंद खुशियों से रोशन जब हुऐ हम,
बदन में अंगारे उनके दहकने लगे है।
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हिस्से की मुहब्बत वो पाकर हमारी,
हाथ हमारा ही अब झटकने लगे है।
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भूख से बिलकते सारे भेड़िये “जैदि”
दश्त-सहरा में आज भटकने लगे है।
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शायर:-“जैदि”
डॉ.एल.सी.जैदिया “जैदि”
बीकानेर (राजस्थान)