Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
20 Feb 2019 · 3 min read

शायर कोई और…

शायर कोई और!
(एक अनुभूति)

वह तभी आती है, जब मैं पूरी तरह नींद के आगोश में बेखौफ होकर इस दुनिया से बेख़बर ख्वाबों के दुनिया में निरंकुश विचरण करता रहता हूँ, शायद मेरा ख्वाब देखना उसे गवारा नही…

बारिश शाम से ही कहर बरपाने में मसरूफ था, काली अंधेरी, खौफनाक, निःशब्द रात अपने शबाब पर थी।

झींगुरों, मेढ़कों और कीट-पतंगों की आवाजें रात के खामोशी को छेड़ कर भयावह बना रहे थे और मैं अपने बिस्तर पर तकिये को बाहों में भर कर अलौकिकता के एहसास में डूबा हुआ था।

सहसा दरवाजे पर दस्तक हुई। पहले तो मैंने अनसुना किया किंतु बार-बार के दस्तक पर नींद टूट गई। अलसाई आँखों को मलते हुए मैंने दरवाजा खोला तो सामने “वही” थी। “इतनी रात गए बारिश में” मैने पूछा।

“हाँ!मैं वक़्त हूँ, और वक़्त परिस्थितियों का मोहताज नहीं उसका निर्माता होता है”

अदा से उसने अपनी भीगी हुई जुल्फों से पानी के कुछ बूंदों को मेरे चेहरे पर झटकते हुए कहा और कमरे के अंदर आकर बिस्तर पर बैठ गई।

आज वो और भी खुबसूरत लग रही थी। बारिश में भीगने की वजह से ही शायद, पर लालटेन की मद्धिम रोशनी में वो किसी अप्सरा से कम नहीं लग रही थी। अर्धपारदर्शिता लिए सफेद लिबास में लिपटा मांसल देह, माथे पर गहरे लाल रंग की बिंदी। कपोल, कंधों पर चिपकी हुई उसकी भीगी काली जुल्फें… यौवन जैसे पानी के बूँदों के साथ गुलाबी अधरों से टपक रहा था। यह कहना अतिशयोक्ति नहीं कि साक्षात रति मेरे समक्ष मौजूद थी।

यह पहली बार नहीं था फिर भी मैं उसे मंत्रमुग्ध सा देखता जा रहा था। “ ऐसे क्या देख रहे हो?” हयात के पिछे से झाँक कर, बिना पलक झपकाए शिद्दत से वो मुझे अपनी ओर देखते देख कर बोली।

जवाब मे मैंने अपनी आँखें, उसकी गहराई लिए बड़ी-बड़ी नशीली आँखों में डाल दिया। मैं उसके करीब जाना चाहता था, चेहरे पर बिखरी जुल्फ के लटों को संवारना चाहता था। टपक रहे मादक अधरों से मदिरापान करना चाहता था, आलिंगनबद्ध होकर ज़िस्म से रूह तक उतरना चाहता था, दरमियान जो दूरियां व्याप्त थी खत्म कर एकाकार हो जाना चाहता था, ख्वाबों से उतार कर मै उसे हकीक़त के धरा पर महसूस करना चाहता था। किंतु हर बार ऐसा कहां होता, जैसा इंसान का दिल चाहता है।

मैं उसे स्पर्श कर पाता, हर बार के तरह उसने मेरे मेज पर बिखरे कागज के एक टुकड़े को उठा कर मेरे हाथ में दिया और कहा चलो प्रारंभ करो। मैं उसके इरादे से वाकिफ था सो कलम उठाया और चल पड़ा, वो बोलती गई मैं लिखता गया…

जैसे ही उसका कार्य पूर्ण हुआ शुभरात्री बोलने के साथ जल रही लालटेन के रोशनी को मद्धिम करते हुए कमरे से निकल कर वह बरसते बादलो की गुर्राहट और तेज हवाओं के बीच कहीं गुम सी हो गई और मैं उसे जाते हुए देर तलक देखता रहा… पुनः मैं अधूरी ईच्छाओं की तरह बिस्तर पर करवटें बदलता रहा।

सुबह जब नींद से जागा तो जेहन में कुछ धुंधली यादें और मेज पर पड़े उस कागज के टुकड़े पर कुछ “शब्द” बिखरे पड़े थे, जो शब्द कभी राजीव की शायरी, कभी कहानी और कभी कविताएँ कहलाती हैं।

-के. के. राजीव

Language: Hindi
615 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
You may also like:
हमारे हौसले तब परास्त नहीं होते जब हम औरों की चुनौतियों से ह
हमारे हौसले तब परास्त नहीं होते जब हम औरों की चुनौतियों से ह
Sunil Maheshwari
कभी कहा न किसी से तिरे फ़साने को
कभी कहा न किसी से तिरे फ़साने को
Rituraj shivem verma
गणेश चतुर्थी के शुभ पावन अवसर पर सभी को हार्दिक मंगल कामनाओं के साथ...
गणेश चतुर्थी के शुभ पावन अवसर पर सभी को हार्दिक मंगल कामनाओं के साथ...
डॉ.सीमा अग्रवाल
প্রতিদিন আমরা নতুন কিছু না কিছু শিখি
প্রতিদিন আমরা নতুন কিছু না কিছু শিখি
Arghyadeep Chakraborty
कोंपलें फिर फूटेंगी
कोंपलें फिर फूटेंगी
Saraswati Bajpai
शुक्रिया-ए-ज़िंदगी तेरी चाहतों में,
शुक्रिया-ए-ज़िंदगी तेरी चाहतों में,
डॉ. शशांक शर्मा "रईस"
"सलाह" ग़ज़ल
Dr. Asha Kumar Rastogi M.D.(Medicine),DTCD
*झूठी शान चौगुनी जग को, दिखलाते हैं शादी में (हिंदी गजल/व्यं
*झूठी शान चौगुनी जग को, दिखलाते हैं शादी में (हिंदी गजल/व्यं
Ravi Prakash
प्यासा के कुंडलियां (pyasa ke kundalian) pyasa
प्यासा के कुंडलियां (pyasa ke kundalian) pyasa
Vijay kumar Pandey
शिक्षक सम्मान में क्या खेल चला
शिक्षक सम्मान में क्या खेल चला
gurudeenverma198
"ये अलग बात है, पानी गुज़र गया सिर से।
*प्रणय*
मौसम का कुदरत से नाता हैं।
मौसम का कुदरत से नाता हैं।
Neeraj Agarwal
जीवन एक संगीत है | इसे जीने की धुन जितनी मधुर होगी , जिन्दगी
जीवन एक संगीत है | इसे जीने की धुन जितनी मधुर होगी , जिन्दगी
अनिल कुमार गुप्ता 'अंजुम'
हां मैं ईश्वर हूँ ( मातृ दिवस )
हां मैं ईश्वर हूँ ( मातृ दिवस )
Raju Gajbhiye
बड़े महंगे महगे किरदार है मेरे जिन्दगी में l
बड़े महंगे महगे किरदार है मेरे जिन्दगी में l
Ranjeet kumar patre
मेरा नसीब मुझे जब भी आज़मायेगा,
मेरा नसीब मुझे जब भी आज़मायेगा,
Dr fauzia Naseem shad
बैठ सम्मुख शीशे के, सखी आज ऐसा श्रृंगार करो...
बैठ सम्मुख शीशे के, सखी आज ऐसा श्रृंगार करो...
Niharika Verma
नियम पुराना
नियम पुराना
हिमांशु बडोनी (दयानिधि)
एक ही रब की इबादत करना
एक ही रब की इबादत करना
अरशद रसूल बदायूंनी
मैं अपनी आँख का ऐसा कोई एक ख्वाब हो जाऊँ
मैं अपनी आँख का ऐसा कोई एक ख्वाब हो जाऊँ
Shweta Soni
ज़िंदगी में गीत खुशियों के ही गाना दोस्तो
ज़िंदगी में गीत खुशियों के ही गाना दोस्तो
Dr. Alpana Suhasini
लू गर्मी में चलना, आफ़त लगता है।
लू गर्मी में चलना, आफ़त लगता है।
सत्य कुमार प्रेमी
"अल्फ़ाज़"
Dr. Kishan tandon kranti
" क़ैदी विचाराधीन हूँ "
Chunnu Lal Gupta
यही मेरे दिल में ख्याल चल रहा है तुम मुझसे ख़फ़ा हो या मैं खुद
यही मेरे दिल में ख्याल चल रहा है तुम मुझसे ख़फ़ा हो या मैं खुद
Ravi Betulwala
उसकी सूरत में उलझे हैं नैना मेरे।
उसकी सूरत में उलझे हैं नैना मेरे।
Madhuri mahakash
समाज मे अविवाहित स्त्रियों को शिक्षा की आवश्यकता है ना कि उप
समाज मे अविवाहित स्त्रियों को शिक्षा की आवश्यकता है ना कि उप
शेखर सिंह
Value the person before they become a memory.
Value the person before they become a memory.
पूर्वार्थ
कहा हों मोहन, तुम दिखते नहीं हों !
कहा हों मोहन, तुम दिखते नहीं हों !
The_dk_poetry
3888.*पूर्णिका*
3888.*पूर्णिका*
Dr.Khedu Bharti
Loading...