शायरी
कभी नैन तरसते थे किसी के दीदार को,
अरसे बीत गए, लोग भी बदल गए,
मगर दिल आज भी खिल उठता है,
देखकर अपने प्यार को…|
तेरी एक इनकार से,
मेरी सारी हसरतें मर गए,
बेवफा तुझसे क्या,
हम तो अपनी चाहत से ही हार गए|
उसे ना पाकर आज,
हम खुद बेजान हो गए,
अब तो सिर्फ यही सोंचता हूँ,
आँखों से मोहब्बत पढ़कर भी,
वो क्यूँ अनजान हो गए|
मेरी सुबह की चैन,
रातों की आराम थी वो,
खामोश मैं था की,
बता नहीं सका किसी को,
मेरी तो जान थी वो…|
तुम भले खुश रह लो,
किसी और की बाँहों में,
मै आज भी जीना चाहता हूँ,
तेरी जुल्फों की छाँहों में…..||
चाहा तो कइयों को,
चाहत न बना सके,
सिर्फ तू बसी है दिल में मेरी,
किसी और को ये जगह न दे सके|
हर जख़्म वक़्त का गुलाम होता है,
कभी किसी को हरा कर जाता है
तो किसी को भर जाता है|
मेरी ख़ामोशियों को गुमान न समझना,
डर मुझे है, महफ़िल में तेरे बदनाम होने की,
अपने दिल में छुपी चाहत को एहसान मत समझना|
तेरे मिलने का कोई गम नहीं मुझे,
तेरी मुस्कुराहट से ही मेरी ज़िन्दगी गुजर जाएगी|
वेदप्रकाश रौशन