शायरी संग्रह
1
जिंदा है धर्म स्त्री से ही
आदमी ने तो
मंदिर जाना ही छोड़ दिया !
2
तुम चलते हो मस्कत अपनी जिंदगी का
चांद तो चंद दिनों में ही निकलता है !
3
मेरी रगो में लहू बनकर उतर चुकी हो तुम ,
अब देखना है रंग कितना निखर कर आता है
4
मेरी बर्बादी का यह आलम है बिष्ट
जो घर ढह गया
उसके पत्थर भी ना उठा पाया !!