शायद लिटरेचर के स्टूडेंट्स ऐसे ही होते हैं
शायद शर्ट का रँग असल में उतना अच्छा नहीं था जितना की कबीर ने सोचा था। मगर जैसे बड़ी ख़बरों के वजन तले छोटी ख़बरें दब जाती हैं, ठीक उसी तरह अमायरा से मिलने की ख़ुशी उसे शर्ट के रँग को भूल जाने पर मजबूर कर रही थी। मोबाइल की स्क्रीन पर मैसेज फ़्लैश होता है ‘ हमेशा की तरह देर मत करना। कम सून।’ कमरे से फ़टाफ़ट निकलते हुए कबीर गाड़ी की पार्किंग पे पहुँचता है। हल्की-फ़ुल्की बारिश हो रही है। लेकिन ये बात उसे बुरी नहीं लगती। अमायरा को बारिश अच्छी लगती है। कॉलेज के दिनों में भी उसे क्लासेज अटेंड करने से ज़्यादा बारिश में भीगना अच्छा लगता था। ‘शायद लिटरेचर के स्टूडेंट्स ऐसे ही होते हैं’ , कबीर ने हमेशा की तरह खुदसे कहा। वो फ़ोन का ब्लूटूथ ऑन करके पहला काम अमायरा को कॉल करता है। मगर उसे मालूम है कि वो कॉल रिसीव नहीं करेगी। क्योंकि अमायरा का मानना था कि जिस दिन मिलना होता है उस दिन फ़ोन पे बातें करके बातें ख़र्च नहीं करनी चाहिए, क्योंकि मुलाक़ात के वक़्त बात करने के लिए कुछ बचता ही नहीं। कबीर गाड़ी स्टार्ट करता है। वक़्त सुबह के 9.45।
ट्रैफिक अच्छा ख़ासा था। 10 बज रहे थे। वैसे सोमवार को ऐसा होना लाज़मी भी था। कबीर को अपने आप पर गुस्सा आता है। उसे और ज़्यादा जल्दी निकलना था। मगर उसकी आदत ही लेट हो जाना। कॉलेज के दिनों में भी वो लेट ही रहता था। ख़ासकर उन दिनों जब उसे अमायरा से मिलना होता था। गाडी ज़रा दूर चली ही थी कि रेड लाईट फिर से ऑन हो गई। दिल्ली और इसका ट्रैफिक जैम। कबीर मन ही मन सोच रहा था कि अगर ज़्यादा देर हो गई तो वो क्या करेगा। हमेशा की तरह कान पकड़ लेगा और चॉकलेट्स तो हैं ही। वो मान जाएगी। वो मान ही जाती है हर बार। बस पिछली बार का झगड़ा थोड़ा लंबा चल गया था। उसे यक़ीन ही नहीं हो रहा था कि वो 1 महीने के बाद अमायरा से मिलने वाला था। ‘अबे चलेगा भी’ रेड लाइट कब ग्रीन हुई कबीर को पता ही नहीं चला था। पीछे वाली गाड़ी के ड्राइवर पर आज उसे गुस्सा नहीं आया। मन खुश होता है तो छोटी मोटी बातों पर कोई ध्यान नहीं देता। ठीक वैसे ही जैसे अमायरा से मिलने की ख़ुशी इतनी थी कि वो भी अपने शर्ट के कलर पे ज़्यादा ध्यान नहीं दे रहा था। वक़्त 10.30 हो चूका था।
हमेशा की तरह कबीर बड़े आराम से ड्राइव कर रहा था कि तभी नज़र फ़ोन की स्क्रीन पर जाती है ‘मैं लेट हो जाऊँगी, ट्रैफिक जैम है।’ मैसेज लगभग 20 मिनिट पुराना था। कबीर मन ही मन खुश होने लगा। आज वो नहीं बल्कि अमायरा लेट होगी। वो भी पहली बार। वो ख़ुशी से फूले नहीं समा रहा था कि अचानक उसकी बगल से एक गाड़ी तेज़ निकलती है और सड़क के किनारे रुकी हुई ऑटो पे टक्कर मार देती है। टक्कर ज़्यादा ज़ोर का नहीं था मगर उसके बाद गाड़ी की हॉर्न का शोर ज़ोरदार था। और वो हॉर्न बंद होने का नाम ही नहीं ले रहा था। कबीर मन ही मन सोचने लगता कि जरूर कोई शराब पीकर चला रहा होगा। सामने भीड़ जमा होती है और भीड़ इतनी ज्यादा हो जाती है कि उसे अपनी गाड़ी रोकनी पड़ती है। बाहर निकलके कबीर गाड़ी के पास जाता है और देखता है कि गाड़ी में एक औरत है और कोई नहीं। बाहर जमा भीड़ में से कुछ लोग सेल्फी तो कुछ और विडिओ बनाने लगते हैं। कबीर वापस अपनी गाड़ी में बैठ जाता है। वो गाड़ी स्टार्ट करता ही है कि उसे अचानक एक वाक़या याद आता है। कॉलेज के दिनों की बात थी जब एक बार उसका और अमायरा का एक्सीडेंट हुआ था। बाइक तेज़ी से आती है और पीछे से उनकी स्कूटी को टक्कर मारकर चली जाती है। उसे याद आती है अमायरा की बात ‘कबीर ऐसा तो कोई जानवर भी नहीं करता। मदद करना तो इंसान का फ़र्ज़ होता है।’ कबीर फिर से सोचता है ‘शायद लिटरेचर के स्टूडेंट्स ऐसे ही होते हैं’ । कबीर अमायरा को मैसेज करता है क्योंकि वो जानता है कि फ़ोन रिसीव नहीं करेगी। ‘ थोड़ा लेट हो जाऊँगा, किसीको मदद की जरुरत है।’
अपनी गाड़ी से निकलकर कबीर उस गाड़ी के पास पहुँचता है जहाँ वो औरत थी। देखने से लगता है काफ़ी खून बह चुका था। वो आसपास के जमा लोगों से मदद माँगता है और उस औरत को अपनी गाड़ी में बिठा लेता है। भीड़ में से एक बुज़ुर्ग सज्जन उस औरत की गाड़ी से उसका साइड बैग लेकर कबीर की गाड़ी में बैठते है। कबीर गाड़ी का नम्बर नोट करने के लिए गाड़ी के सामने जाता है। देखते ही उसे पता चल जाता है कि गाड़ी का पहले भी कोई एक्सीडेंट हो चुका था। क्योंकि अभी जो टक्कर ऑटो पे मारी थी वो बहुत धीरे से था। तो फिर उसके सिर से खून कैसे निकल रहा था। कबीर सोचते सोचते गाड़ी के पीछे पहुँचता है और नंबर नोट कर लेता है। बुज़ुर्ग और कबीर अब हॉस्पिटल की ओर निकलते है। वो उस बुज़ुर्ग से औरत के बैग चेक करने को बोलता है। साइड बेग में एक फ़ोन, एक ए.टी.एम. , कुछ पैसे और एक ड्राइविंग लाइसेंस मिलता है। औरत का नाम मीरा सिन्हा था। कबीर उस बुज़ुर्ग से बोलता है ‘ अंकल इनका फ़ोन चेक कीजिए न।’ बुज़ुर्ग फ़ोन निकालते ही है उसमें एक कॉल आने लगता है। ‘माँ कॉलिंग’ । वो झट से फ़ोन उठाते है और बताते है कि उनका एक्सीडेंट हो गया है। वो मीरा की माँ को हॉस्पिटल का नाम बताते है और वहाँ आने के लिए कहते है। बात पूरी होने से पहले ही मीरा की माँ रोने लगती है। बुज़ुर्ग फ़ोन काट देते है। फिर वो बुज़ुर्ग पुलिस को फ़ोन लगाते है। वो कबीर को बताते है कि ‘आनन-फानन में हम दोनों इन्हें ले तो आए मगर पुलिस को इत्तला करना जरुरी है।’ 100 नम्बर पे कोई फ़ोन उठाता है। बुज़ुर्ग बताते है कि DL 06 AQ 7854 नंबर वाली गाड़ी का एक ख़ाली ऑटो के साथ एक्सीडेंट हो गया था। ड्राइवर की हालत ख़राब थी तो हम पास वाले हॉस्पिटल ले जा रहे हैं।’ क़रीब 10.45 मिनट पर गाड़ी हॉस्पिटल पहुँचती है। कबीर और वो बुज़ुर्ग मीरा को फ़टाफ़ट एमरजेंसी में ले जाते हैं। किस्मत अच्छी थी कि एक डॉक्टर वही मौज़ूद थे। कबीर फ़ोन देखता है, कोई मेसेज नहीं है। वो सोचता है कि बस मीरा की माँ आ जाए और वो निकले। क़रीब आधे घंटे में उसकी माँ वहाँ पहुँचती है। वो बताती है कि पिछले 3 महीनों से मीरा की ये हालत है। जबसे उसे अपने पति के अफ्फेर के बारे में पता चला है वो बात बात पे गुस्सा हो जाती है।
‘ मीरा का ब्लड ग्रुप क्या है? खून की जरुरत पड़ेगी।’ एक नर्स पूछती है। ‘ए बी नेगेटिव’ उसकी माँ बताती है। यानी एक रेयर ब्लड ग्रुप। ‘मेरा ए बी नेगेटिव है।’ कबीर न चाहते हुए भी बोलता है। ‘लेकिन ज़्यादा देर तो नहीं लगेगी न।’ नर्स उसे ब्लड डोनेशन वार्ड में ले जाती है और बताती है तकरीबन 1 घंटे में सारे टेस्ट और ब्लड डोनेशन हो जाएगा। पुलिस भी आकर सारा मामला समझ लेती है। कबीर और उस बुज़ुर्ग की डीटेल्स ले लेते है। बुज़ुर्ग को पुलिस वाले पहचान लेते हैं। क्योंकि वे ख़ुद एक रिटायर्ड पुलिस अफ़सर थे। एक कांस्टेबल को छोड़ पुलिस वहाँ से निकलती हैं। कबीर बुज़ुर्ग को धन्यवाद देकर निकलता है। वक़्त 12 बजे।
‘गुड नून सर’ वेटर बोलता है,’ आप क्या लेंगे।’ ‘किसीका वेट कर रहा हूँ , जस्ट गिव में सम टाइम।’ वेटर ओके सर बोलकर चला जाता है । ज़िन्दगी में पहली बार कबीर डेट पे पहले पहुँच गया था । वो खुश था क्योंकि उसने एक अच्छा काम किया , अमायरा के लिए चॉकलेट्स भी ख़रीदे और टाइम पे भी पहुँच गया। तकरीबन आधे घंटे इंतज़ार करने के बाद जब उससे रहा नहीं गया तो उसने फ़ोन लगाया। ‘सर आप ऑर्डर करना चाहेंगे’ वेटर फिरसे पूछता है। ‘ जस्ट अ मोमेंट’ कबीर वेटर को थोड़ा और इंतज़ार करने को बोलता है।
स्विच ऑफ़। ऐसा करना अमायरा की आदत नहीं थी। वो फ़ोन पे घण्टों तक लड़ लेगी मगर फ़ोन ऑफ नहीं करेगी। कबीर खयालों में गोते लगा ही रहा था कि अमायरा की बहन का फ़ोन आता है।’हेल्लो, दिशा । यार क्या है ये। मैं कबसे वेट कर रहा हूँ। कहाँ है अमायरा?’ दिशा ज़रा सी ख़ामोशी के बाद रोते हुए बताती है ‘आज सुबह 10 से 10.30 के बीच एक एक्सीडेंट में उसकी मौत हो गई। गाड़ी ने उसकी स्कूटी पे टक्कर मार दिया। ड्राइवर रुका तक नहीं। भाग गया। पास ही के कुछ लोगों ने नम्बर नोट कर लिया था। DL 06 AQ 7854। फ़ोन कट जाता है। ‘सर क्या आप अभी आर्डर करेंगे’। वेटर कबीर से बोलता है।