~ शायद मुझमें भी रावण जिंदा है ।
कुछ पाने के लिए कुछ खोना पड़ता है यह जिंदगी का नियम है । ‘ और यह रावण के भी जीवन का सार था । ‘ चाहे वह लंकापति बनने की तपस्या हो , चाहे ब्रह्मण्ड का ज्ञानी पुरूष बनने का गुण ,चाहे परिवार के स्वभिमान के लिए स्त्री का हरण ही क्यो ना ,चाहे वह अपनी दृढ़ता सिद्धि के लिए अपने समक्ष अपनो को मरते देखने की दुख ही क्यो ना हो ।।
सब कुछ जीवन के ‘ सर्वाइवल ऑफ द फिटेस्ट पर निर्भर था ‘ चाहे कुछ पा लो ,या ना पाने का शोक पाल लो दोनों ही परिस्थितियों में मनुष्य कुछ न कुछ खोता है , हिन्दू समाज के नायकत्व ‘ श्री राम ‘ ने राम से ‘श्री राम ‘ के बनने के सफर में 14 वर्ष खुद को जला डाला ।
उंन्हे आखिर मिला क्या ‘ समाज का ताना , स्त्री वियोग , परिवार वियोग ‘ पर मिला तब जब वह राजा बने , अर्थात ‘ संघर्ष के समय तपने वाला इंसान एक राजा होता है ,जो अपने बुराइयों से लड़कर अच्छाइयों को साधता है ,वही दूसरी तरफ ” रावण ” जब तपस्या कर रहा था, ज्ञान अर्जन कर रहा था तब तक वह ” हीरो ” था , लेकिन स्त्री हरण ,अहंकार और स्वभिमान की विवशता ने उसे ‘विलेन ‘ बना दिया ।
यह है नियति ।।
लेकिन नियति ने अर्श से फर्श तक लाने में न संघर्ष देखा ,न ज्ञान देखा ,न तकलीफ देखी ,न ही परिस्थितिया देखी , देखी तो सिर्फ ‘ एक गलती ‘ जो कहने वाले अंहकार ,दम्भी , राक्षस तक कहते हैं लेकिन ‘ जब जब ‘श्री राम ‘ थे तब तब तक रावण था , यह दो पात्र अच्छाई और बुराई के दो गुण थे ,दोनों ने सर्वाइवल ऑफ द फिटेस्ट को अपनाया था ,लेकिन जीता वही जो अंतिम समय तक विनम्र, मृदुल , सौम्य, परोपकारी ,उदार, निष्पक्ष, सत्यनिष्ठ, और प्रजा हित कार्य करता रहा , याद उसे किया गया जो अक्सर पिक्चरो में होता है ” हीरो को ” ।
विलेन तो आज फिर मरेगा और लोग ‘ अट्टहास लेंगे की
” रावण ” मर गया । पर उनके अंदर का रावण अभी जिंदा हैं यानी
‘ टाइगर ( दशहरा ) अभी जिंदा ‘है ।
~Rohit ❤️✍🏻✍🏻