शायद और काश
” शायद ” और ” काश” हैं तो बस लफ़्ज़ ही ,
मगर दिल में एक हलचल सी मचा देते है ।
कशमकश और उम्मीदों के मझधार में फंसे हम ,
तकदीर के हाथ की कठपुतली बन जाते है ।
” शायद ” और ” काश” हैं तो बस लफ़्ज़ ही ,
मगर दिल में एक हलचल सी मचा देते है ।
कशमकश और उम्मीदों के मझधार में फंसे हम ,
तकदीर के हाथ की कठपुतली बन जाते है ।