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12 Apr 2024 · 1 min read

शामें दर शाम गुजरती जा रहीं हैं।

शामें दर शाम गुजरती जा रहीं हैं।
और ज़िन्दगी का पता नहीं कहां जा रही है।।
शिव प्रताप लोधी

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