शापित है यह जीवन अपना।
शापित है यह जीवन अपना।
और नींद में झूठा सपना।।
इच्छाओं से बँधे सभी जन।
पाप पले है सबके ही मन।
कुंठाओं के सब हैं मारे।
अपने से ही सब हैं हारे ।।
लाशों का बाज़ार लगा है।
जग में किसका कौन सगा है।।
✍️अरविन्द त्रिवेदी
शापित है यह जीवन अपना।
और नींद में झूठा सपना।।
इच्छाओं से बँधे सभी जन।
पाप पले है सबके ही मन।
कुंठाओं के सब हैं मारे।
अपने से ही सब हैं हारे ।।
लाशों का बाज़ार लगा है।
जग में किसका कौन सगा है।।
✍️अरविन्द त्रिवेदी