शादी से पहले या शादी के बाद
एक चबूतरे पर एक पतली सकरी सी किंतु लंबाई में गहरी दर्जी की दुकान थी जिसके बीच में शुरू में ही एक काउंटर कुछ इस तरह अड़ा के रखा था जिसके एक ओर और दर्जी खड़ा होकर उस काउंटर पर कपड़े रखकर कटिंग कर सकता था तथा काउंटर के दूसरी तरफ एक पतली सी जगह छूटी हुई थी जिसमें से बमुश्किल एक ग्राहक दुकान के अंदर प्रवेश कर सकता था । जब मैंने उस दर्जी की दुकान में प्रवेश करना चाहा तो वहां पहले से ही एक मरगिल्ला चिमरखी जैसा लंबा दुबला पतला सींकिया सा आदमी खड़ा था जिसका चेहरा किसी चुसे हुए आम की तरह था उसके आंखों के कोटर में धंसी आंखों में एक पसन्नता से भरी सन्तुष्टि की चमक थी । मुझे देखकर शिष्टाचार वश मुझे दुकान के अंदर आने के लिए जगह बनाने हेतु उसने अपने आप को अपनी सांस बाहर निकालकर पेट अंदर को खींचकर और अधिक पतला करके मेरे अंदर आने के लिए जगह बना दी इस प्रयास में वह उस दर्जी की दुकान के उस हिस्से पर एक छिपकली की तरह चिपक कर खड़ा हो गया और मैं उसे पार करते हुए दुकान के अंदर आ गया । क्योंकि मैं हमेशा की तरह जल्दी में था अतः मैंने उन दोनों के बीच चल रहे वार्तालाप को बाधित करते हुए कुछ अपनी बात कहना चाही पर मुझे अनसुना कर वे दोनों एक दूसरे की ओर देख रहे थे और खामोश थे । वह लड़का बीच-बीच में सर झुका कर अपने सूट के साथ के पैंट की ज़िप चढ़ाकर उसके बेल्ट के हुक को लगाने का प्रयास करते हुए दर्जी को दिखा रहा था पर उसकी पेंट के बेल्ट के दोनों सिरों के बीच करीब 3 इंच का फासला था वह अपने दोनों हाथों की मुठिया बांधकर और चुटकी से अपनी पैंट की बेल्ट वाले कमर के सिरों को पकड़ कर पूरी ताकत से उन्हें खींचकर हुक को लगाना चाहता था पर फिर भी वह पैंट उसकी कमर से लगभग तीन इंच छोटी पड़ रही थी । वह दर्जी भी उसके इस प्रयास को बड़े ध्यान से देख रहा था । अब मुझे भी उसके इस क्रियाकलाप से कौतूहल उत्पन्न होने लगा और उसे उत्सुकता से देखने लगा । कुछ देर जब बार-बार प्रयास करने के बाद भी वह अपनी उस पेंट की बेल्ट को जब नहीं बंद कर पाया तो उसके चेहरे पर एक संतुष्टि का भाव आ गया और वह कभी दर्जी को तो कभी दुकान के बाहर प्रसन्नता से शून्य में निहारने लगा । अब मैं खामोश रहकर उन दोनों दर्जी एवं उस लड़के को देख रहा था कि अब कब इन दोनों का मौन टूटेगा और उसके बाद मुझे अपनी बात कहने का अवसर मिलेगा । अपनी उस सींकिया हुई कमर पर गोलाई में करीब तीन इंच छोटी हो गई पैंट को पुनः बांधने का एक असफल प्रयास करते हुए और दर्जी को नज़रअंदाज़ करते हुए वह लड़का मुझे देखकर मुस्कुराया और सगर्व मुँह उठाकर , अपनी गर्दन ऐंठते हुए बोला
‘ मैं कभी सोचता नहीं था कि शादी के एक साल बाद ही मैं इतना मोटा हो जाऊंगा ,अभी साल भर पहले अपनी शादी पर इसे इन टेलर मास्साब से सिलवाया था ! ‘
यह सुन कर दर्जी ने कहा क्या बाबू शादी के बाद घर जमाई बन गए हो ? तभी ससुराल का खाना लग रहा है?
प्रत्युत्तर में उसने खुशी खुशी सहमति में सर हिला दिया ।
मैंने सोचा कि अगर अब इसके दुबले पतलेपन का यह हाल है तो शादी से पहले क्या रहा हो गा ?
मैं उसको उसके सारे कपड़े उतरवाकर उसका परीक्षण करना चाहता था और कहना चाहता था कि भाई यदि आपको कोई तकलीफ नहीं है और आप लक्षणरहित हैं और अगर बेरोजगार हैं और आपको कोई काम चाहिए तो आप किसी मेडिकल कॉलेज के शरीर रचना विज्ञान के विद्यार्थियों के लिये सतह पर से शरीरिक रचना समझने के लिये उत्तम विषय साबित हो सकते हैं ।
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कुछ दिनों बाद एक दिन वही सींकिया दामाद जी मुझे मेडिकल कॉलेज के गेट के दाहिनी ओर जो पुरानी पुलिया के बराबर में नया ढाबा कम चाय की दुकान कम मिठाई की दुकान खुली थी उस पुलिया पर बैठा मिला । उसके बराबर में एक करीब 115 किलो का गोलमटोल मोटा आदमी बैठा था जो बाद में उनकी बातों से लगा कि रिश्ते में उसका ससुर था ।उस आदमी के एक हाथ में एक खाली लोटा था व दूसरे हाथ में एक पत्तल का बना दोना था जिसमें उसने करीब आधा किलो पेड़े उसने खरीद के लिए थे , उसने अपने दाहिने कान पर यज्ञोपवीत लपेट रखा था व उसके चेहरे पर दिव्य तृप्ति के भाव थे जो उसके हल्के हो कर आने से उतपन्न हुए हों गे ।
उसने अपनी मोटी मोटी घनी छप्पर जैसी मूछों को हाथ से सहलाते हुए अपने बराबर में बैठे 28 किलो के दमाद की ओर पेड़ों से भरा दोना आगे बढ़ाते हुए कहा कि लो खा लो । दमाद जी ने उन पेड़ों को नीरस भाव से देखा और खाने से इंकार की मुद्रा में अपने सर को झटक दिया ।तब उन ससुर जी ने उसे एक लम्बा उपदेश दिया जिसके अनुसार दिव्य निपटान के बाद कुछ खाना जरूरी होता है तुम भी कुछ खाया करो तभी ना सेहत बनेगी और यह कहकर उसने अपने फुटबॉल जैसे गोल चेहरे में स्थित अपने मुँह को एक डिब्बे की तरह खोला और उसमें एक बार में एक साथ चार चार पेड़े ढूंस ठूंस कर निर्विकार भाव से खाने लगा ।
लगता है हमारे मस्तिष्क में हमारे वज़न को स्थापित करने के लिए कोई केंद्र होता है जो हमारे खान – पान , रहन – सहन ,आलस्य , सोच – विचार और आनुवांशिक गुणों जैसे अनेक कारकों के आधारपर हमारे शारीरिक दुबलेपन अथवा मोटापे के भार को नियंत्रित कर उनसे जनित रोगों का कारक है ।