Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
27 Sep 2020 · 6 min read

जसवन्त सिंह से मुलाक़ात और शा’इरी का इम्तेहान

बीजेपी के वरिष्ठ नेता और अटल सरकार में विदेश, रक्षा औऱ वित्त जैसे मंत्रालयों को संभालने वाले जसवंत सिंह (Jaswant Singh) का निधन हो गया है। अनेक विवादों और उपलब्धियों भरा रहा था जसवन्त सिंह जी का सियासी सफ़र। मैंने उन्हें सिर्फ़ एक बार ही देखा था। वो भी लफ़्ज़ पत्रिका के सम्पादक तुफ़ैल चतुर्वेदी जी के साथ, जब मैं उनके दिल्ली स्थित सरकारी बंगले में गया था। तुफ़ैल साहब के ही शब्दों में, “साहित्यिक संदर्भ में शायरी के अलावा मेरी पगड़ी में अगर कुछ तुर्रा-ए-इम्तियाज़ हैं तो वो कुछ अनुवाद हैं। पाकिस्तानी लेखक मुश्ताक़ अहमद यूसुफ़ी साहब के व्यंग्य के अद्भुत उपन्यासों ‘खोया पानी’, ‘धन यात्रा’, ‘मेरे मुंह में ख़ाक’ के अतिरिक्त जसवंत सिंह जी की किताब ‘जिन्ना भारत विभाजन के आईने में’ का अंग्रेज़ी से हिंदी तथा उर्दू अनुवाद भी करने का अवसर मुझे मिला है। इस किताब का अनुवाद करते समय स्वाभाविक रूप से मुझे जसवंत सिंह जी की आत्मीयता का अवसर मिला।”

ख़ैर, उस रोज़ हुआ यूँ था सन 2009 में जब मेरा प्रथम ग़ज़ल संग्रह “आग का दरिया” प्रकाशित हुआ तो मैं तुफ़ैल चतुर्वेदी जी को किताब भेंट करने उनके नोएडा स्थित निवास पर गया था। जहाँ से वह अपनी त्रैमासिक पत्रिका भी निकलते हैं। एक दिन पूर्व ही मैंने उन्हें फोन पर यह बताया था। तो वो बोले, “ठीक है बरखुरदार आप आओ, हम आपकी किताब भी लेंगे और आपकी शा’इरी का इम्तेहान भी लेंगे। तभी हम मानेंगे की आप शाइरी करने लगे हो।”

“मुझे मंज़ूर है।” मैंने भी कह दिया।

अगली सुबह मैं तुफ़ैल साहब के निवास पर पहुंचा तो उनके नौकर ने गेट खोला और प्रथम तल की छत पर बने लफ़्ज़ के छोटे से कक्ष में मुझे बिठाकर चला गया।

“साहब, कहाँ हैं?” मैंने नौकर से जाते वक़्त पूछा।

“वो नहा रहे हैं आपको यहाँ बैठने के लिए कहा गया है।” इतना कहकर नौकर चला गया।

जिस कक्ष में मैं बैठा था वहां बड़ी सी टेबल थी। जिस पर चिट्ठियों, किताबों, के ढ़ेर यत्र-तत्र लगे हुए थे। मुलाकातियों के लिए कुर्सियाँ थी। मेज़ के दूसरी तरफ़ तुफ़ैल साहब की आलिशान कुर्सी थी। बाई तरफ की दीवार पे किताबों से भरा अलमारी नुमां रैक था। जो नए पुराने शाइरों की किताबों से आबाद था। इसमें हिन्दी और उर्दू के अनेक किताबें क़ायदे से रखी हुईं थीं। एक कोने पर लुगदी उपन्यास भी रखे थे। जिनमें सुरेन्द्र मोहन पाठक और जेम्स हेडली आदि लेखकों के उपन्यास रखे हुए थे। मैं हैरान था कि हिन्दी साहित्य और उर्दू अदब का इतना बड़ा जानकार लुगदी साहित्य भी शौक़ से पढ़ता है। शायद उन लुगदी उपन्यासों से कुछ आइडिया उन्हें मिलता हो क्योंकि अनेक किताबों के अंग्रेज़ी-उर्दू से हिन्दी में तुफ़ैल साहब ने बखूबी अनुवाद किये हुए हैं। जिनमें मुश्ताक़ अहमद यूसुफ़ी के व्यंग्य उपन्यासों और जसवन्त सिंह की अंग्रेज़ी किताब जिन्ना का हिन्दी अनुवाद भी तुफैल साहब ने किया हुआ है।
ख़ैर, इस सबके बीच मुझे शाइरी के इम्तेहान की फ़िक्र सताने लगी। क्या मैं तुफ़ैल साहब की चुनौती से पार पा सकूँगा। मैं ये सोच ही रहा था कि उनका नौकर पानी की ट्रे लिए हाज़िर था। उसने मेरे सामने ट्रे रखी तो मैं काग़ज़ का पुर्ज़ा देख कर दंग रह गया।

“ये क्या है?” मैंने पूछा।

“साहब ने आपको देने के लिए दिया है। वो पाँच मिनट बाद आएंगे!” नौकर यह कहकर चला गया। साथ में एक काग़ज़ और पैन भी रखा हुआ था।

“काग़ज़ के पुर्ज़े में तीन मिसरे दिए हुए थे। उनमें से किसी एक मिसरे पर मुझे ग़ज़ल कहनी थी।” मैं जिस इम्तेहान से घबरा रहा था उसे देखकर मेरा चेहरा खिल उठा उसमें से एक मिसरा मेरी पसन्दीदा बहर—बहरे खफ़ीफ मुसद्दस मख़बून, यानि फ़ाइलातुन+मुफ़ाइलुन+फ़ेलुन, अर्थात—2122+1212+22 थी और मिसरा था—”आपने क्या कभी ख़याल किया”

माँ सरस्वती की कृपा से मैंने पाँच शेर तत्काल मौक़े पर कहे। वो भी तुफ़ैल साहब के आने से पहले। ठीक पाँच मिनट बाद जब तुफ़ैल साहब आये तो उनको जो ग़ज़ल दिखाई वो यूँ थी:—

“आपने क्या कभी ख़याल किया”
रोज़ मुझसे नया सवाल किया
ज़िन्दगी आपकी बदौलत थी
आपने कब मिरा ख़याल किया
राज़े-दिल कह न पाये हम लेकिन
दिल ने इसका बहुत मलाल किया
ज़ोर ग़ैरों पे जब चला न कोई
आपने मुझको ही हलाल किया
हैं “महावीर” शेर ख़ूब तिरे
लोग कहते हैं क्या कमाल किया

ग़ज़ल की उन्होंने तारीफ़ तो नहीं की मगर हैरान ज़रूर थे की पट्ठा बहर में कैसे ग़ज़ल कहने लगा? पहले उन्होंने समझा था कि, उस्ताद मंगल नसीम साहब ने मुझे सारी ग़ज़लें दीं हैं, मगर ऐसा नहीं होता जनाब, जब आपके भीतर कोई प्रतिभा नहीं, तो कोई दूसरा भी कितना मदद करेगा? शा’इरी के इम्तेहान के बाद उन्हें ये विश्वास हो गया कि, महावीर उत्तरांचली भी ग़ज़ल कहने लगा है।

उस वक़्त वो तैयार होकर बैठे थे कहीं जाने के लिए। मुझसे बोले, “चलो, मुझे भी कुछ काम है। मैं तुम्हें रास्ते में कहीं छोड़ दूँगा।” और इधर-उधर की कुछ बातचीत रास्ते भर में चलती रहीं।
“आप जब मुझ से ग़ज़ल सीख रहे थे तो उधर क्यों चले गए?” तुफ़ैल साहब का इशारा मंगल नसीम साहब से थे। तब मैंने बताया कि, लीलावती बंसल जी के यहाँ एक काव्य गोष्टी थी मैं सुरंजन जी के साथ वहाँ गया था। वहीँ डॉ. कुंवर बैचेन और मंगल नसीम साहब ने भी अपनी रचनाएँ पढ़ीं और मैं उन सबका प्रसंशक हो गया। उसी काव्य गोष्ठी में पता चला कि नसीम साहब ने 85 वर्ष की उम्र में लीला जी को ग़ज़ल कहनी सिखाई थी। नसीम साहब का अपना अमृत प्रकाशन भी है। अतः मैंने नसीम साहब से ग़ज़ल संग्रह छपवाने का निश्चय किया और उसी दौरान वो मेरे गुरू बन गए। कुछेक मिसरे उन्होंने कहन के हिसाब से दुरुस्त किये। बहर में तो ग़ज़ल कहना मैं पहले ही सीख चुका था।”

“एक जगह आपने क्या लिखा था, जब मैं ज़िन्दगी को…..” मेरा शेर अधूरा कहकर तुफ़ैल साहब ने प्रश्न किया। शायद वो जानना चाहते थे कि यही शेर मेरा है तो मुझे याद होगा।

“जब मैं ज़िन्दगी को न जी पाया, मौत ने क़हक़हे लगाए थे” मैंने शेर तुरन्त पढ़ा।

“नसीम साहब का कोई जानदार शेर है।” तुफ़ैल साहब बोले।

“जी, नसीम साहब का शेर है—हम तो हालात के पत्थराव को सह लेंगे नसीम, बात उनकी है जो शीशे का जिगर रखते हैं।” मैंने बताया ये शेर उन्होंने लीलावती बंसल जी के यहाँ काव्य गोष्ठी में पढ़ा था। तब से मुझे ज़ुबानी याद है। इसके बाद कुछ और बातें हुईं। बातों बातों में हम जसवन्त सिंह की कोठी के गेट पर पहुँच गए थे। जहाँ सुरक्षाकर्मियों को तुफ़ैल साहब ने अपना परिचयपत्र और मुलाक़ात का हवाला दिया।

ख़ैर, उन्होंने कार कोठी के प्रांगण में पार्क की और मुझे कार में ही बैठने का इशारा करके तुफ़ैल साहब बंगले के अन्दर गए और लगभग दस मिनट तक यह मुलाक़ात रही। जसवन्त सिंह खुद उन्हें गेट तक छोड़ने आये थे। तब मैंने बाजपाई सरकार में भूतपूर्व केन्द्रीय मन्त्री जसवन्त सिंह जी को साक्षात् देखा, लगभग 15 हाथ दूर से। ये मेरी जसवन्त सिंह के साथ पहली और आखिरी मुलाक़ात थी। मोदी युग में वे न जाने क्यों भाजपा के विरोधी हो गए थे? उन्होंने निर्दलीय चुनाव भी लड़ा था और वे हार गए थे। बाद में वह जीवन के लगभग अन्तिम साँस लेने तक कोमा में बने रहे। वे पाँच वर्ष पूर्व भी निकल जाते तो किसी को कोई दुःख या शोक नहीं होता। पता नहीं, मुझ जैसे फकीराना तबियत के आदमी को तुफ़ैल साहब, उस दिन जसवन्त सिंह जी की कोठी में क्यों ले गए थे? वे ये दर्शाना चाहते थे कि साहित्य और शाइरी के अलावा वे राजनीति में भी दख़ल रखते हैं। ख़ैर, शाइरी में पुरानी पीढ़ी का होने के नाते मैं तुफ़ैल साहब को पूरा सम्मान देता हूँ। उस रोज़ शाइरी का इम्तेहान लेकर वे भी हैरान थे कि, “आख़िर पाँच मिनट में महावीर उत्तरांचली ने इतनी सहजता से पाँच मिसरे कैसे लगा दिए?”

Language: Hindi
Tag: लेख
2 Likes · 219 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
Books from महावीर उत्तरांचली • Mahavir Uttranchali
View all
You may also like:
शिव स्वर्ग, शिव मोक्ष,
शिव स्वर्ग, शिव मोक्ष,
Atul "Krishn"
4711.*पूर्णिका*
4711.*पूर्णिका*
Dr.Khedu Bharti
कमल खिल चुका है ,
कमल खिल चुका है ,
ओनिका सेतिया 'अनु '
मिसाल रेशमा
मिसाल रेशमा
Dr. Kishan tandon kranti
शिक़ायत नहीं है
शिक़ायत नहीं है
Monika Arora
मुस्कुराते हुए चेहरे से ,
मुस्कुराते हुए चेहरे से ,
Yogendra Chaturwedi
क्या कहूँ ?
क्या कहूँ ?
Niharika Verma
...और फिर कदम दर कदम आगे बढ जाना है
...और फिर कदम दर कदम आगे बढ जाना है
'अशांत' शेखर
ये मौन है तेरा या दस्तक है तुफान से पहले का
ये मौन है तेरा या दस्तक है तुफान से पहले का
©️ दामिनी नारायण सिंह
सुन मेरे बच्चे
सुन मेरे बच्चे
Sangeeta Beniwal
मेरी पसंद तो बस पसंद बनके रह गई उनकी पसंद के आगे,
मेरी पसंद तो बस पसंद बनके रह गई उनकी पसंद के आगे,
जय लगन कुमार हैप्पी
*अपनी मस्ती में जो जीता, दुख उसे भला क्या तोड़ेगा (राधेश्याम
*अपनी मस्ती में जो जीता, दुख उसे भला क्या तोड़ेगा (राधेश्याम
Ravi Prakash
रज के हमको रुलाया
रज के हमको रुलाया
Neelam Sharma
छठ पूजा
छठ पूजा
Dr Archana Gupta
जीवन अप्रत्याशित
जीवन अप्रत्याशित
पूर्वार्थ
अर्थ के बिना
अर्थ के बिना
Sonam Puneet Dubey
ये बेपरवाही जंचती है मुझ पर,
ये बेपरवाही जंचती है मुझ पर,
डॉ. शशांक शर्मा "रईस"
भारत के लाल को भारत रत्न
भारत के लाल को भारत रत्न
सुरेश कुमार चतुर्वेदी
अच्छा नहीं होता बे मतलब का जीना।
अच्छा नहीं होता बे मतलब का जीना।
Taj Mohammad
हमनवा
हमनवा
Bodhisatva kastooriya
भीड़ से आप
भीड़ से आप
Dr fauzia Naseem shad
कुछ अजूबे गुण होते हैं इंसान में प्रकृति प्रदत्त,
कुछ अजूबे गुण होते हैं इंसान में प्रकृति प्रदत्त,
Ajit Kumar "Karn"
दोहा त्रयी. . . शीत
दोहा त्रयी. . . शीत
sushil sarna
शाकाहारी बने
शाकाहारी बने
Sanjay ' शून्य'
बाहर से लगा रखे ,दिलो पर हमने ताले है।
बाहर से लगा रखे ,दिलो पर हमने ताले है।
Surinder blackpen
डॉ भीमराव अम्बेडकर
डॉ भीमराव अम्बेडकर
नूरफातिमा खातून नूरी
विचार
विचार
अनिल कुमार गुप्ता 'अंजुम'
तारीफ किसकी करूं
तारीफ किसकी करूं
कवि दीपक बवेजा
महोब्बत के नशे मे उन्हें हमने खुदा कह डाला
महोब्बत के नशे मे उन्हें हमने खुदा कह डाला
शेखर सिंह
इम्तिहान
इम्तिहान
विनोद वर्मा ‘दुर्गेश’
Loading...