Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
17 Aug 2021 · 3 min read

शहीद परिवारों के प्रति दायित्व

लेख
शहीदों का परिवारों के प्रति दायित्व
*****************************
बहुत ही गंभीर और चिंतन का विषय है कि शहीद परिवारों के प्रति हम, हमारा समाज और हमारी सरकारें कितना दायित्व बोध महसूस करती हैं या महज औपचारिकता की कर्तव्यश्री भर निभाकर पल्ला झाड़कर सूकून का अहसास करते हैं। इस गंभीर और संवेदनशील विषय पर जरूरत है राष्ट्र, समाज और नागरिक स्तर पर स्वयं की वैचारिकी को विस्तृत करने,मन के पटों को पूरी तरह खोलने की। तभी हम शहीद परिवारों की वास्तविक वस्तु स्थिति का आँकलन कर पायेंगे,शायद तब ही हमें अपने वास्तविक कर्तव्य की गँभीरता का अहसास हो।
सर्वविदित है कि आजादी पाने में अनगिनत रणबांकुरों ने अपनी आहुतियां दे डाली,जिनमें बहुत से ऐसे भी हैं जो आज भी अज्ञात बने हैं,मगर उनके वंशजों के लिए पीढ़ी दर पीढ़ी गर्व का कारण भी बने हुए हैं।
आज उसी आजादी को अक्षुण्य रखने का गुरुतर दायित्व हमारे जाँबाज वीर सैनिक निभा रहे हैं। देश की सुरक्षा के साथ अन्य गँभीर और असामान्य परिस्थितियों में भी हर पल अपनी जान की बाजी लगाए रहते हैं। जिसमें बहुत से हमारे वीर जाँबाज सैनिक शहीद भी होते रहते हैं। उन शहीद परिवारों की वास्तव में जिम्मेदारी देश के हर नागरिक, शासन प्रशासन, तंत्र पर होना चाहिए ।
लेकिन अफसोस यह है कि आज भी बहुत से शहीद परिवार उपेक्षा और अभावों का दंश झेलने के अलावा घोषित सुविधाओं को भी न पाने अथवा कानूनी दाँवपेंच में उलझाकर हताश, निराश कर उपेक्षापूर्ण बर्ताव, गुमनामी, पारिवारिक, राजनैतिक, आपसी विवाद और निजी दुश्मनी का शिकार भी होते आ रहे हैं।
आज भी बहुत से शहीद परिवार मुफलिसी का शिकार हैं। तमाम घोषणाएं महज घोषणा बन लालफीताशाही की भेंट चढ़ उनकी लाचारी पर नमक मिर्च लगाकर अट्टहास कर रही हैं। अथवा राजनीतिक वाहवाही का सबब बनी मुँह चिढ़ा रही हैं। अब इसे विडंबना नहीं तो और क्या कहेंगे कि जाने कितने ऐसे मामले भी आये दिन अखबारी सुर्खियां बने,जब सैनिकों को सेवानिवृत्ति के बाद/शहीद परिवार को अपने देयकों को पाने में सरकारी कार्य संस्कृति ने उन्हें खून के आँसू रुला दिए हैं, भ्रष्ट तंत्र ने उनके परिजनों का भविष्य चौपट कर दिया।
समय के साथ काफी कुछ बदलाव जरूर आया है/ आ रहा है,मगर अभी भी बहुत बहुत ही कुछ किया जाना शेष है। यह विडंबना ही है कि बहुत बार हमारे सैनिक पुलिसिया उत्पीड़न का शिकार विद्वेष वश अथवा प्रतिद्वंद्वी के रसूखवश भी होते हैं, तो बहुत बार उनके परिवारों को उनकी अनुपस्थिति में उपेक्षित, अपमानित और विभिन्न स्तरों पर अन्याय भी सहना पड़ता है।
जो सैनिक देश, राष्ट्र, समाज की सेवा सुरक्षा में अपनी जान गँवाकर शहीद हो जाता है,उसके परिवार के प्रति हम सबकी, समाज, राष्ट्र और शासन, प्रशासन का नैतिक और मानवीय दायित्व है कि शहीद परिवारों को हर स्तर पर सहयोग, संरक्षण और सुरक्षा प्रदान की जाय। उसके लिए ऐसा तंत्र विकसित किया जाना चाहिए, जहां वे अपनी बात आसानी से पहुंचा सके और उनका जिस भी स्तर पर जल्द से जल्द समाधान हो सके, उस तंत्र की जिम्मेदारी तय होनी चाहिए, न कि शहीद परिवार को बेवजह भागदौड़ कराने,उपेक्षित और असहाय महसूस कराकर मायूस होकर अपना दुर्भाग्य मानने के लिए छोड़ देना चाहिए। शहीदों की कुर्बानियों को जीवंत रखने की व्यवस्था हो,ताकि नयी पीढ़ी प्रेरणा ले सके और राष्ट्र के प्रति समर्पित जज्बा विकसित करने के प्रति जागृति की मशाल प्रज्जवलित कर गौरव महसूस कर सके ,साथ ही शहीद परिवार का सर्वोच्च सम्मान, सुविधाएं, सुरक्षा और स्वीकार्य संस्कृति का प्रभावी तंत्र मजबूत किया जाना चाहिए।प्रत्येक नागरिक के लिए शहीद परिवारों के प्रति सम्मान, सदभाव और राष्ट्र के प्रति उनकी शहादत के लिए अनिवार्य आचरण की संस्कृति की नींव को मजबूत किया जाय। यही शहीदों के प्रति सच्ची श्रद्धांजलि होगी और राष्ट्र के प्रति हमारा नैतिक दायित्व भी यही है।क्योंकि जब एक सैनिक शहीद होता है तब देश जहां अपना एक जाँबाज सैनिक खोता तो वहीं एक बाप अपना बेटा, एक बेटा बेटी अपना पिता, एक पत्नी अपना सुहाग और एक परिवार अपना सहारा भी खोता है।
अब हम सबको यह सोचना है कि एक सैनिक ने माँ भारती की आन बान शान की खातिर अपनी आहुति दे दी,मगर क्या हम एक नागरिक, समाज और शासन/प्रशासन के रुप में अपने दायित्व का वास्तव में निर्वहन कर रहे हैं ? विचार करने की हम सबको ही बहुत जरूरत है।
? सुधीर श्रीवास्तव
गोण्डा, उ.प्र.
8115285921
©मौलिक, स्वरचित

Language: Hindi
Tag: लेख
1 Like · 530 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
You may also like:
रात  जागती  है रात  भर।
रात जागती है रात भर।
रामनाथ साहू 'ननकी' (छ.ग.)
ग़म है,पर उतना ग़म थोड़ी है
ग़म है,पर उतना ग़म थोड़ी है
Keshav kishor Kumar
यदि आप नंगे है ,
यदि आप नंगे है ,
शेखर सिंह
#गम ही मेरा साया
#गम ही मेरा साया
Radheshyam Khatik
खोटा सिक्का....!?!
खोटा सिक्का....!?!
singh kunwar sarvendra vikram
कभी-कभी डर लगता है इस दुनिया से यहां कहने को तो सब अपने हैं
कभी-कभी डर लगता है इस दुनिया से यहां कहने को तो सब अपने हैं
Annu Gurjar
" हुनर "
Dr. Kishan tandon kranti
ख़ुद की खोज
ख़ुद की खोज
Surinder blackpen
Life is beautiful when you accept your mistakes and make eve
Life is beautiful when you accept your mistakes and make eve
पूर्वार्थ
🌹हार कर भी जीत 🌹
🌹हार कर भी जीत 🌹
Dr .Shweta sood 'Madhu'
सोने का हिरण
सोने का हिरण
Shweta Soni
😢कड़वा सत्य😢
😢कड़वा सत्य😢
*प्रणय*
दोहा त्रयी. . . . शृंगार
दोहा त्रयी. . . . शृंगार
sushil sarna
*
*"सिद्धिदात्री माँ"*
Shashi kala vyas
*कुकर्मी पुजारी*
*कुकर्मी पुजारी*
Dushyant Kumar
हम जंग में कुछ ऐसा उतरे
हम जंग में कुछ ऐसा उतरे
Ankita Patel
तुझे भूलना इतना आसां नही है
तुझे भूलना इतना आसां नही है
Bhupendra Rawat
"" *भारत* ""
सुनीलानंद महंत
वो कौन थी जो बारिश में भींग रही थी
वो कौन थी जो बारिश में भींग रही थी
Sonam Puneet Dubey
मंजिलें
मंजिलें
Mukesh Kumar Sonkar
सनातन
सनातन
देवेंद्र प्रताप वर्मा 'विनीत'
*दर्शन करना है तो ठहरो, पथ में ठहराव जरूरी है (राधेश्यामी छं
*दर्शन करना है तो ठहरो, पथ में ठहराव जरूरी है (राधेश्यामी छं
Ravi Prakash
ছায়া যুদ্ধ
ছায়া যুদ্ধ
Otteri Selvakumar
4819.*पूर्णिका*
4819.*पूर्णिका*
Dr.Khedu Bharti
दिल के कागज़ पर हमेशा ध्यान से लिखिए।
दिल के कागज़ पर हमेशा ध्यान से लिखिए।
राजीव नामदेव 'राना लिधौरी'
कितनी बेचैनियां
कितनी बेचैनियां
Dr fauzia Naseem shad
हर ज़ुबां पर यही ख़बर क्यों है
हर ज़ुबां पर यही ख़बर क्यों है
Dr Archana Gupta
संस्कृति
संस्कृति
Abhijeet
पंचायती राज दिवस
पंचायती राज दिवस
Bodhisatva kastooriya
हद
हद
Ajay Mishra
Loading...