शहर की बस्तियों में घोर सन्नाटा होता है,
शहर की बस्तियों में घोर सन्नाटा होता है,
सफर में अक्सर इंसान अकेला होता है,
मंजिल की चाह में रुकसत हो जाता है अपने घर से,
अंधेरी रात में मगर वो छिपकर रोता है।
अभिषेक सोनी “अभिमुख”
शहर की बस्तियों में घोर सन्नाटा होता है,
सफर में अक्सर इंसान अकेला होता है,
मंजिल की चाह में रुकसत हो जाता है अपने घर से,
अंधेरी रात में मगर वो छिपकर रोता है।
अभिषेक सोनी “अभिमुख”