Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
14 Sep 2021 · 44 min read

शहरी घरोंदों का इश्क़

महेश सो कर उठा था और बिस्तर से खड़े होकर उसने अपने दोनों हाथ ऊपर तान दिए और दोनों पैरों के पंजों पर खड़े होकर “सुरसा राक्षसी” की तरह पूरा मुँह फाड़ते हुए जंभाई लेने लगा। उसे देखकर ड्राइंग रूम में अपने दोनो बच्चों “प्रतीक एवम प्रतिभा” के साथ बैठी उसकी पत्नि सीमा जल्दी से महेश के सामने जाकर दीवाल की तरह खड़ी हो गयी जिससे उसका शरीर बच्चों से ढंक गया। और फिर महेश से बोली “जल्दी टॉयलेट करने जाओ..”

महेश अभी नींद से उठा ही था इसलिए पूर्ण चेतन अवस्था में नही था बल्कि अलसाया हुआ था। इसलिए उसे सीमा की बात समझ नही आयी और फिर उसके चेहरे के भाव पढ़ते हुए धीमे से बोला “क्या हो गया..? आज शुबह-शुबह ही रोमांस करना है..” महेश ने भोर के सूरज जैसी लालिमा से भरी अपनी आखों से सीमा को छेड़ते हुए पूछा।

सीमा ने आगे के दांतों को मिलाकर खीझते हुए और आँखों को फुटबॉल के समान बड़ा करते हुए उसके कंधे को अपने सीधे हाथ से अपनी बांयी तरफ धक्का दिया और बोली-“बच्चे देख रहे हैं, जल्दी से बाथरूम जाओ..”

-महेश अब पहले से ज्यादा चेतन अवस्था मे आ गया था किंतु पूर्ण चेतन नही हुआ था। इसलिए अपने हाथ की उंगलियों को फैलाकर आस्चर्य के भाव से प्रश्नात्मक आँखों से पूछा-“अरे भाई क्या हो गया, क्यो शुबह-शुबह जिरह कर रही हो और धक्का दे रही हो..? बच्चों ने ऐसा क्या देख लिया..”

– सीमा समझ रही थी कि महेश की अभी पूरी नींद नही खुली है। इसलिए उसने अपने हाथ को छुपाते हुए उसकी निक्कर से ढंके हुए बोफ़र्स तोप जैसे खड़े लिंग को, जोर से दबा दिया और अपने दांतों को मिलाकर खीझते हुए बोली-“बच्चे इसे देख रहे हैं, इसलिए जल्दी से बाथरूम जाओ..”

– सीमा के इस इसारे से महेश उसकी हर बात को ऐसे समझ गया जैसे कम्प्यूटर का एंटीवायरस कंप्यूटर की फ़ाइलों को स्कैन करता है। फिर विस्मबोधक भाव से अपनी जीभ बाहर करते हुए महेश तुरंत टॉयलेट की तरफ मुड़ गया और टॉयलेट का गेट बंद करके अपनी नित्यक्रिया में सलंग्न हो गया।

” जब भी पुरुष को पिशाव का दवाव बनता है तो पुरुष के लिंग में स्वतः ही तनाव आ जाता है, और रात को सोने के बाद शुबह उठते समय यह दवाव कुछ ज्यादा होता है। इसलिए शुबह के समय लगभग प्रत्येक पुरुष की यही स्थिति होती है जो महेश की थी, फिर चाहे वह शादीशुदा हो या कुंवारा..”

महेश के टॉयलेट करने जाते ही सीमा बच्चों की तरफ पुनः घूम गयी और उसकी नजरें उसकी बड़ी बेटी प्रतिभा से जा मिली, जो होंठों ही होठों में ऐसे मुस्कुरा रही थी जैसे वह भी अपनी मम्मी की तरह पापा की उस फनी जोक को छिपाने की कोशिश कर रही हो । सीमा, प्रतिभा की मुस्कुराहट के पीछे छिपे कारण को समझ गयी थी कि उसने वह सब देख लिया है जो सीमा ने भी देखा है। किंतु वह प्रतिभा की मुस्कुराहट पर अपने चेहरे के किसी भी भाव से कोई प्रतिक्रिया नही देना चाहती थी, इसलिए उसने प्रतिभा की मुकुराहट को नजरअंदाज कर दिया। जबकि प्रतीक बिस्तर पर अलसाया हुआ बेख़बर होकर ऐसे लेटा हुआ था, जैसे सिर चढ़ा हुआ बच्चा लाड़ की ओवर वरडोस के साथ लेटता है। सीमा ने बच्चों के ध्यान से शुबह की इस घटना हटाने के लिए बच्चो से पूछा -“बाताओ बच्चों आपके लिए आज ब्रेकफास्ट में क्या बनाऊ..?”

ब्रेकफास्ट का नाम सुनते ही प्रतीक स्प्रिंग की तरह बिस्तर पर खड़ा हो गया और प्रतिभा से पहले चीखकर बोला- ” मम्मी पास्ता बनाना है..मैं पास्ता खाऊंगा..यमी पास्ता”

सीमा ने उसकी तरफ हाथ हिलाते हुए कहा “आराम से प्रतीक, आराम से, हाँ मैं तेरे लिए पास्ता ही बनाउंगी.. ओके..”

सीमा का अस्वाशन पाकर प्रतीक ये.. ये.. ये करता हुआ बिस्तर पर बंदरों की तरह कूदने लगा। फिर सीमा ने हल्की सी कड़क आवाज में प्रतिभा से भी पूछा “प्रतिभा तुम बताओ क्या खाओगी.?.जल्दी से बताओ में किचन में ब्रेकफास्ट बनाने जा रही हूँ, जो खाना है अभी बता दो, फिर मैं बार बार नही बनाउंगी ..”।

वास्तव में सीमा के दिमाग को प्रतिभा की वह मुस्कुराहट परेशान कर रही थी जो उसने अभी-अभी सीमा के होठों पर देखी थी। वह नही चाहती थी कि प्रतिभा अपने 12-13 वर्ष की उम्र में इसतरह की चीजें देखे। क्योकि उसकी उम्र अभी इतनी ज्यादा नही कि वह इन सभी बातों का आकलन सही दिशा में लगाए। इसके बदले इस उम्र के बच्चों के दिमाग में ऐसी घटनाओं को देखकर माँ-बाप के प्रति नकारात्मक छवि बनती है और उनके भविष्य का रास्ता भटक जाने का खतरा रहता है “! इसलिए वह प्रतिभा से थोड़ी नाराज हो गयी थी किन्तु उसे जाहिर नही कर पा रही थी।

-प्रतिभा ने सीमा की नाराजगी को ना समझते हुए प्रतीक की खुशी में अपनी खुशी मिलाते हुए कहा “हाँ मम्मी मैं भी पास्ता खाऊँगी, मियोनीज के साथ..”! सीमा ने प्रतिभा के जबाब पर पुनः ओके कहा और किचन के अंदर चली गयी। तभी प्रतिभा जोर से बोली “मम्मी पास्ता में सब्जियां मत डालना..”

सीमा ने किचन से ही जबाब दिया, “ओके नही डालूंगी..”

प्रतिभा के आदेश को सुनकर और उस पर मम्मी की सकारात्मक प्रतिक्रिया को देख प्रतीक ने भी एक नया आदेश जारी करते हुए कहा “मम्मी पास्ता स्पाइसी बनाना.. और कोल्ड्रिंक भी देना साथ में..” । उधर किचन से सीमा की भी ओके आ गयी थी।

“महेश राजस्थान के एक गांव के एक किसान परिवार में जन्मा इकलौती संतान था। उसकी शादी अठारह वर्ष की उम्र में अपने से दो साल छोटी सीमा से हो गयी थी। शादी के दो साल बाद उसके घर प्रतिभा का जन्म हुआ था और शादी के चार साल बाद दिल्ली महानगर के सरकारी विभाग में तीसरे दर्जे पर नौकरी लग गयी थी। नौकरी लगने के बाद दो सालों तक वह दिल्ली में अकेला ही एक कमरा किराए पर लेकर रहा और उसकी पत्नि सीमा और बेटी प्रतिभा गाँव मे उसके बुजुर्ग माँ-बाप के साथ रहती थी। किन्तु दो साल बाद उसे एहसास हुआ कि उन दोनों की जिंदगी एक दूसरे के बिना ऐसे है जैसे बिन पतवार के नाव। अतः उसने तय किया कि वह सीमा और प्रतिभा को दिल्ली में लाकर अपने साथ रखेगा, जिससे उनकी शादीशुदा जिंदगी पुनः नाव- पतवार की तरह भविष्य की धारा में किनारे के लिए बिना हिचकौले लिए बहती रहे और प्रतिभा के भविष्य को भी संवारा जा सके।

इसप्रकार मजबूरी वस अपने बूढ़े माँ-बाप की लाठी को झोड़कर महेश ने मधुमक्खी के छते की तरह इंसानों से भरे दिल्ली शहर में अपने परिवार के लिए एक छोटा सा घरौंदा तैयार कर लिया था। सरकारी विभाग में तीसरे दर्जे की नौकरी के अनुसार ही उसकी मासिक आय थी इसलिए वह अच्छी कॉलोनी में एक जरूरत के अनुसार घर नही ले सका। वैसे भी इंसानी महाकुंभ जैसी दिल्ली में एक कमरे का मकान मिलना, वो भी 6-7 हजार रुपये में एवरेस्ट चोटी फ़तेह करने जैसी बात थी। फिर भी महेश ने दिल्ली में अपनी जान पहचान से एक अति-अति सघन कॉलोनी में एक कमरा,एक ड्राइंग रूम, एक किचन-बाथरुम का घर 8हजार रुपये महीने में ले लिया था।

घर का कमरा इतना बढ़ा था कि एक डबल बैड रखने के बाद एक अन्य कुर्सी भी उसमें नही बिछ सकती थी और ड्राइंग रूम किचन से बड़ा जरूर था किन्तु कमरे से छोटा था। इसप्रकार महेश का घर रिफ्यूजी कैम्प से बेहतर किंतु ईंटो से बना टैंट जैसा था। जिसमे ड्राइंग रूम में बैठकर पूरे घर के एक-एक कौने को आसानी से देखा जा सकता था और “दीवारों के कानों” का प्रयोग किए बिना ही पूरे घर की हलचल को आसानी से सुना जा सकता था। जो भी हो यह नौकरी और यह घर उसकी मजबूरी थी क्योकि गाँव में खेती-किसानी में दाल-रोटी ही मिल सकती थी और वहाँ की जनसंख्या इतनी ज्यादा नही थी कि कोई व्यापार या दुकान करके एक अच्छी जिंदगी जी सके। भारतीय समाज में सरकारी नौकरी का सम्मान उतना है जितना बच्चों में शक्तिमान का। इन सभी कारणों से ही महेश ने गाँव में अपने मैदान जैसे घर को छोड़कर दिल्ली में चूहों जैसी बस्ती में वस जाना ही उचित समझा।

दिल्ली आने के एक साल बाद ही उसके इस छोटे से घरौंदे में प्रतीक का जन्म हुआ जो प्रतिभा से 6 साल छोटा था। प्रतिभा के चेहरे पर और उसके व्यवहार में अभी गाँव का वही भोलापन था, जो उसको दादा-दादी की परवरिश से मिला था, किंतु प्रतीक एंग्रीबर्ड वीडियो गेम की चिड़िया जैसा शैतान था। ”

प्रतिभा जब अपनी मम्मी के साथ दिल्ली में वसने के लिए आयी उस समय वह 6 वर्ष की थी। इसलिए उसके दैनिक क्रियाकलाप एवं नीद गाँव के आम बच्चों की तरह थी। अर्थात अंधेरा होते ही खाना-पीना खाकर सो जाना और मम्मी-पापा से ज्यादा चिपकना नही और अपने खेल में व्यस्त रहना। अतः इस समय महेश और सीमा कमरे में अकेले आराम से प्यार-मोहब्बत की बातें करते और भविष्य के भरे हुए कागज पर अपने सपनों की रूपरेखा खींचा करते । इसी रूपरेखा का ही परिणाम था कि गांव से आने के एक साल बाद ही प्रतीक का जन्म हो गया था। किंतु प्रतीक के जन्म के बाद प्रतीक की प्रारंभिक देखभाल के लिए सीमा अकेली पड़ गयी थी उसके पास घर का काम करबाने के लिए कोई सहायता नही थी और दूसरी तरफ प्रतिभा स्कूल जाने लगी थी जिससे उसकी भी जिम्मेवारी उसे ही उठानी पड़ रही थी। अतः सीमा के ऊपर घर का भार ऐसे आ पड़ा था जैसे भूस्खलन से पूरा पहाड़ गिर जाता है। इसी दैनिक भाग दौड़ में सीमा और महेश का प्रेम-आलिंगन और आपसी संवाद लंच पैक करने और साग-सब्जी लाने तक ही सिमट चुका था। मगर धीरे धीरे प्रतीक भी बड़ा हो गया और उसका भी सरकारी स्कूल में दाखिला करा दिया था और प्रतिभा भी 12 साल की हो गयी थी जिससे वह भी घर के काम में सीमा का थोड़ा-बहुत हाथ बटा देती थी। इससे सीमा को घर के बोझ से थोड़ी राहत जरूर मिली थी किन्तु महेश और सीमा के प्रेम पर और भी ज्यादा पहरा लग चुका था। क्योकि एकतरफ तो दोनों बच्चे बड़े हो रहे थे तो दूसरी तरफ प्रतीक हमेशा उनके साथ ही सोता था। अब प्रतिभा में भी अपने माँ-बाप की तरह शहरी आदत आ गयी थी इसलिए वो भी अब रात के बारह बजे सोती थी। जब कभी महेश एवं सीमा रात को मिलन संगीत बजाने की कोशिश करते तो प्रतीक उनके बीच में मोबाइल पर कस्टमर केयर के कॉल की तरह समय-वेसमय बज उठता जिससे उनके मन में उठ रही कामुक भावनाओं की सावन की घटाएं बिना बारिश किए बिजली कड़का कर शांत हो जाती। इसप्रकार जब से पुत्र रत्न हुआ तब उन दोनों के प्रेमालिंगन जीवन की रजाई में प्रतीक वक्त-वेवक्त शुशु कर उसकी गरमाहट कम करता रहता।

किन्तु महेश ने भी इसका उपाय खोज लिया था। जब दोनों बच्चे स्कूल चले जाते तब वह अपने ऑफिस से कभी आधी छुट्टी लेकर तो कभी अपने सीनियर से याचिका करके दोपहर में घर आ जाता और फिर घर में महेश एवं सीमा दोनों अकेले होकर अपनी शादी के सर्टिफिकेट का भरपूर लाभ लेते और नाग-नागिन नृत्य करते हुए सावन की बिन बरसी घटाओं को इतना बरसाते कि प्रेम की बाढ़ से हुई थकावट को 4-5 दिन तक आराम से उतारते रहते। उनका यह उपाय ठीक तरह से फलन्त हो रहा था। किन्तु जब से कोरोना वायरस आया तब से उनकी इस योजना के भी इन-95 मास्क चढ़ गया। अर्थात अब स्कूल बंद हो गए जिससे बच्चे सारा दिन घर ही रहते और प्रतीक अपनी माँ से ऐसा चिपका रहता जैसे पैन के अंदर रिफिल। जिसकी बजह से दोनों पति-पत्नी में कुंठा घर कर रही थी जिससे दोनों में आये दिन लड़ाई-झगड़े बढ़ने लगे थे। अब प्रतिभा की उम्र 12 वर्ष को पार कर गयी थी तो प्रतीक भी 6 वर्ष से ऊपर का हो गया था। इस उम्र तक मोबाइल और फिल्में बच्चों को इतना कुछ समझा और दिखा देते हैं जितना महेश अपनी सुहागरात को भी नही जानता और समझता था। आजकल के बच्चे अच्छे से समझते है कि सनी लियॉन की फिल्मों का रंग कैसा है और क्यों है..? इसी कारण महेश और सीमा बच्चों के सामने औपचारिक रूप से बातें करते और व्यवहार करते जिससे बच्चों पर कोई गलत प्रभाव ना पड़े और जैसे ही वो जब कभी स्वतः स्फूर्ति से थोड़ा पास आ भी जाते तो बच्चे उनदोनो को ऐसे देखते जैसे दिल्ली के किसी पार्क में प्रेम में अस्तव्यस्त जोड़े को लोग देखते हैं। इसप्रकार महेश और सीमा शादीशुदा होते हुए भी इंगेजमेंट की जिंदगी गुजार रहे थे, जिसमें उनके पास एक दूसरे को देखने का पूरा समय था किंतु एकदूसरे का आलिंगन करने एवम प्रेमभरी बातें करने के लिए बच्चो के उज्ज्वल भविष्य ने बंदिशें लगा रखी थी। अर्थात अब उनकी जिंदगी का समय एकदूसरे के जज्बातों को महसूस करने के अलावा सभी कामों के लिए था।”

एक दिन महेश अपनी ऑफिस गया और लटके हुए मुँह से जाकर काम करने लगा। उसके देखकर उसका सीनियर उदय सिंह बोला-“क्या हुआ महेश इतना परेशान क्यो लग रहै हो ,भाई..? कोई दिक्कत है क्या..?”

महेश ने उदय सिंग का प्रश्न सुन उसी निराश भाव से उत्तर दिया “नही सर सब ठीक है..”

उदय सिंह ने महेश से फिर से पूछा, “तो फिर आज शरीर सुस्त कैसे है और चेहरा भी उतरा हुआ है..? घरवाली से झगड़ा हो गया है क्या..?”

“एक शादीशुदा सामाजिक पुरुष के लिए उसकी सेक्स लाइफ बहुत जरूरी होती है, हाँ खाने की तरह नही होती किन्तु शारीरिक एवम मानसिक भूख से कम भी नही होती। अगर वैद-उपनिषद की बात छोड़ दी जाय तो एक भारतीय पुरुष को अपनी शादी करने की उत्सुकता घर वसाने से ज्यादा हरदिन सम्भोग का मजा प्राप्त करने के लिए ज्यादा होती। घर परिवार की जिम्मेवारी और चिंता तो उसे एक-दो बच्चे होने के बाद ही होती है। भारतीय समाज मे परस्त्री गमन ना तो कानूनी रूप से आसान है और ना ही सामाजिक रूप से मर्दाना जोश की पहचान। इसलिए भारतीय पुरुष अपनी सेक्स लाइफ के लिए पूर्ण रूप से अपनी पत्नि के ऊपर उसी प्रकार निर्भर है जैसे अमरबेल का जीवन अपने मेजबान पेड़ के ऊपर .”

इसप्रकार उदय के बार-बार पूछने पर भी महेश ने अपने दिल की गहराइयों में छिपी आग को बाहर नही फैलने दिया। किंतु करता भी क्या, क्योकि भारतीय संस्कृति में अपनी सेक्स लाइफ के बारे में किसी से बात करने का मतलब है खुद को हंसी का पात्र मिस्टर बीन बनाना और सामने वाले को मुँह फाड़कर हँसने वाले दर्शक। इसप्रकार उदय महेश के चेहरे पर बनी करेले जैसे गंभीर रेखाओं के पीछे का सच नही जान सका। और महेश अपने इसी चेहरे के भाव के साथ उदय सिंह के सामने अपना काम करता रहा किन्तु अब उदय उसके इस चेहरे से बेखबर हो गया था। दोपहर के 1 बज गए थे, अतः ऑफिस में सब लोग अपना अपना लंच करने लगे कन्तु महेश आज लंच नही लाया था, इसलिए वह अपनी कुर्सी पर ही बैठा रहा। लंच करने के लिए जाते हुए उदय ने महेश से पूछा, ” महेश आज लंच नही करना है ..?”

महेश ने अपने दिल की भावनाओं को चेहरे पर आने से रोकते हुए कहा, “नही सर आज मैं लंच नही लाया हूं, आप करिए..!”

उदय ने उसकी तरफ आस्चर्य से देखते हुए और व्यंगात्मक उंगली हिलाते हुए कहा, ” आज जरूर तुम्हारी अपनी पत्नि से झगड़ा हुआ है, तभी ना तो लंच आया है और ना ही चेहरे पर खुशी..”!

उदय की बात सुन महेश का चेहरा शर्म से लाल हो गया जिससे उसके चेहरे की चमक और भी ज्यादा निखर गयी और फिर उदय की कही सत्य बात को झुठलाते हुए महेश ने जबाब, “नही सर ऐसा कुछ नही है” और फिर हँसने लगा।

जिसे सुनकर उदय ने सामान्य सा भाव बनाते हुए, महेश के जबाब पर कोई प्रतिक्रिया नही की और फिर लंच करने चला गया। पूरे स्टाफ का लंच हो चुका था और सभी पुनः अपने अपने काम पर लौट आये थे। महेश भी लंच के समय आराम करके पुनः अपने काम में व्यस्त हो गया था। तभी रामू महेश के पास आया और जोर से बोला, “भाईसाहब आपकी पत्नि आयी है, आपसे मिलने”।

रामू की बात सुन महेश एक पल के लिए अचंभित हो गया और बोला “क्या मेरी पत्नि मतलब सीमा आयी है ऑफिस..? पर क्यो आयी है..?”

यह सोच एक बार को तो महेश के होश ही उड़ गए और उसका दिमाग भली- बुरी सभी दुर्घटनाओं को उसके दीमाग मे कंप्यूटर फ़ाइल की तरह खोलने बन्द करने लगा।

” सीमा क्यो आयी है..? सब कुछ ठीक तो है..? बच्चो को कुछ हो तो नही गया..? या फिर घर पर जो हल्का फुल्का झगड़ा हो रहा है आजकल उससे परेशान होकर तो नही आयी है..? कम्प्यूटर एंटी वायरस की तरह उसके दिमाग के विचार पुरानी फाइलों को लगातार खंगालने लगा और फिर इसी सोच से आगे बढ़ते हुए वह जल्दी से पहली मंजिल से उतर कर भूमितल पर आ गया। उसने देखा कि ऑफिस की लॉबी में रखी बेंच पर सीमा हाथ में लंच का टिफ़िन पकड़े हुए बैठी है। सीमा के हाथों में लंच देखकर महेश का प्यार सीमा पर उमड़ पड़ा और उसे सीमा एक पत्नि से ज्यादा साक्षात देवी अन्नपूर्णिमा नजर आने लगी।

” शुबह से कुछ ना खाएं महेश को भूख ने चाँद-तारे दिखा दिए थे और उन्ही चाँद-तारों के बीच में सीमा हाथ में तीन खाने का लंच का टिफ़िन पकड़े बैठी हुई थी। अतः यह तो सामान्य सी ही बात है कि जो व्यक्ति की समस्या को सुलझा दे वही देव समान है..”! अर्थात महेश अब सीमा के प्रति प्रेम ही नही बल्कि भक्तिमय भाव से भी देख रहा था । अब उसके पास आकर बोला ,” सीमा इसकी क्या जरूरत थी, मैं घर आकर खाना खा लेता.! बेकार में परेशान हुई हो और लोकडॉन के समय बच्चों को घर पर अकेला छोड़ कर आई हो..? ”

महेश की ऑफिस उसके घर से लगभग सौ मीटर की दूरी पर थी। इसलिए महेश जब कभी लंच लेकर नही जाता था उस दिन वह लंच समय मे घर आकर ही लंच करता और पुनः ऑफिस चला जाता। किंतु आज वह ना तो लंच साथ लेकर गया और ना ही घर पर लंच करने आया था और लोकडॉन कि बजह से बाजार में भी खाने-पीने की सभी दुकानें बंद थी। इसलिए सीमा को लगा कि महेश आज सायद शुबह-शुबह हुई छोटी-मोटी नौक झौंक से परेशान होकर नाराज है और खाना नही खा रहा है। इसलिए वह उसे लंच देने उसकी ऑफिस ही चली आयी। महेश के पास आते ही सीमा गर्दन झुका कर खड़ी हो गयी और उसकी बात सुनकर बोली –

“आज तुम लंच ना तो साथ लाये हो और ना ही घर पर लंच करने आये हो और ऑफिस की छुट्टी शाम को 5बजे होती है। सारा दिन भूखा रहकर आपके सिर में दर्द हो जाएगा। इसलिए मैं लंच देने चली आयी। और घर भी ज्यादा दूर नही है यही कोई मुश्किल से 90-100मीटर ही तो है। रास्ता में ना कोई पुलिस मिली और ना ही कोई दिखा। इसलिए कोई दिक्कत नही हुई । इसलिए फिकर करने की कोई जरूरत नही..”

इतना कहकर सीमा ने उसे अपने हाथों से टिफ़िन उसे देते हुए कहा, “ये लो खाना खा लेना और आराम से काम करो, मैं घर जाती हूँ..”। महेश ने उससे लंच का टिफ़िन लिया और कहा, “कहा ठीक है..तुम जाओ बच्चे वहाँ पर अकेले होंगे, पर तुम परेशान ना हुआ करो, वो भी ‘किसी ना काम के पति के लिए’..”! महेश ने हल्का सा हँसते हुए व्यंगात्मक रूप से सीमा को छेड़ते हुए कहा। सीमा ने महेश की बात को एकटक सुना और बड़ी बड़ी झील जैसी आखों को पूर्णिमा के चाँद की तरह चमकाते हुए प्यार भरे गुस्से से चेहरे को गुलाबी करते हुए महेश की तरफ देखा और बोली,” हाँ, हो नही हो क्या..” ! सीमा की इस प्रतिक्रिया को देखकर महेश सावन के बादलों की तरह प्रेम से लबालब भर गया और उसे शादी के समय बाली नकचढ़ी सीमा की मधुर क्षवि याद आ गयी..!

” वैसे भी हिरन शेर को डराने के लिए जितनी ऊंची छलांग मारता है, शेर उसकी इसी अदा पर उसे पाने के लिए और भी ज्यादा ब्याकुल होता जाता है..”

इसीप्रकार सीमा ने अपने गुलाबी गुस्से की उछाल से महेश के अंदर के शेर को जाग्रत कर दिया, और फिर सीमा जैसे ही चलने लगी उसने सीमा का हाथ पकड़कर उसे रोका और बोला,” चलो थोड़ी देर मेरी ऑफिस में बैठकर बात करते है, वैसे भी घर पर बच्चे बात नही करने देते..”! किन्तु महेश की आवाज़ की गहराई और कशिश से सीमा उसके दिमाग के छुपे रहस्य को समझ गयी, “वैसे भी कहते है किसी पुरुष को शादी से पहले उसकी माँ और शादी के बाद उसकी पत्नि जितना समझती है उतना कोई नही समझता..”

अतः सीमा महेश की बात सुन बोली, “अभी मुझे घर जाने दो, बच्चे घर पर अकेले होंगे। और जो भी बात करनी है घर पर ही करेंगे, यहाँ ऑफिस में सभी के सामने बात करना ठीक नही है। मेरा हाथ छोड़ो लोग देख रहे हैं..”!

महेश ने हाथ छोड़ सीमा को आस्वस्त करते हुए कहा, ” यहाँ हमैं कोई नही देख रहा क्योकि यहाँ मेरे और उदय सर के सिवाय कोई नही आता है। और तुम जो सोच रही हो ऐसा कुछ नही है..”। महेश ने पुनः गहरी सांस भरते हुए कहा, ” मैं सोच रहा था कि जब तुम आयी हो तो कुछ देर बैठ कर चली जाती क्योकि घर पर ना तो तुमको समय मिलता और ना ही बच्चे ठीला छोड़ते। हम दोनों की जिंदगी तो कोल्हू के बैल जैसी हो गयी है। जो बच्चों के चारो और ही घूमती रहती है गले में परिवार-परिवार की घण्टी बजाते हुए..”

महेश की बातों में सीमा को भी सच्चाई लगी और वह सोचने लगी कि बच्चे पैदा होने से पहले कितना मजा था जिंदगी में जैसे हंसों की तरह खुलकर उड़ा करते थे। जहाँ जाना है जाओ, जो खाना है खाओ, और जब दिल मचल जाए तब जा मिलो बाथरूम में नहाते समय, आंगन में, किचन में खाना बनाते समय, सीढ़ियों पर ,छत पर, और बाहर अपने खेत मे..। सारी रात अपनी, सारा दिन अपना दोपहर चांदी जैसी खिलती धूप अपनी, शुबह की सुहानवी भौर और शाम की भुरभुरी गुलाबी गौधूल अपनी..!” इसप्रकार महेश की बातों से सीमा अपने प्रेमालिंगन के अतीत में ऐसे खो गयी कि, महेश ने उसका पुनः हाथ पकड़ा और वह उसके पीछे पीछे सीढ़ियां चढ़ती हुई उसके रूम में उसके साथ जाकर बैठ गयी। यहाँ पर एक बड़ी टेबल के पास रखी कुर्सी पर उदय बैठा था और उससे कुछ दूर एक कौने में महेश की टेबल-कुर्सी रखी हुई थी। महेश के रूम में पहुंचकर सीमा ने पहले उदय को नमस्कार किया और फिर महेश ने सीमा का परिचय उदय से कराया। फिर अपनी टेबल के पास एक अन्य कुर्सी खींचकर सीमा को बिठा दिया और खुद उसी के पास अपनी कुर्सी पर बैठ गया।

तभी उदय ने महेश से कहा, “महेश तुमने बीबी को फालतू में परेशान कर दिया, मेरे साथ लंच कर लेना था..”!

उदय की बात सुन सीमा हल्के से औपचारिक रूप से मुस्कुराई और उधर महेश भी हंसते हुए बोला,”अरे नही सर मैंने परेशान नही किया, मैंने तो मना किया था किंतु इनका पति प्रेम इनको यहाँ तक खींच लाया”! महेश की बात से सीमा शर्मा गयी और नीचे जमीन की तरफ देखने लगी।

महेश की बात पर उदय बोला, “यार महेश हमको भी सिखाओ ये पति प्रेम कैसे पत्नि को पति की ओर खींचता है। हम भी किसी दिन अपनी मैडम को पति बन कर खींचना चाहते हैं..”!

उदय की बात से सीमा इसबार खुलकर हंस पड़ी,और महेश भी जोर जोर से हँसने लगा और बोला ” ठीक है सर, आप समय निकालो मैं जरूर सिखाउंगा..”। महेश की बात पर उदय बोला, “अरे भाई इस ज्ञान के लिए तो समय ही समय है, शादी के बाद अगर किसी को यह ज्ञान मिल जाय तो समझ लो भूलोक पर स्वर्गलोक मिल गया..”! इसप्रकार कुछ देर हँसी ठिठोली करने के बाद उदय अपने काम मे व्यस्त हो गया और उधर महेश टिफ़िन खोलकर सीमा के सामने खाना खाने लगा। फिर उसने बड़े प्यार से रोटी का एक कौर तोड़कर सीमा को खिलाने के लिए हाथ बढ़ाया, जिसे देखकर सीमा झिझक गयी और बोली, ” ये क्या कर रहे हो, आपके सर सामने बैठे हैं..”! महेश ने बेशर्म दीवाने की तरह तीखी मुस्कुराहट से मुस्कुराते हुए कहा, ” अरे तो क्या हो गया, सर भी तो शादीशुदा है और सब कुछ समझते और फिर मैं सिर्फ अपने हाथों से अपनी पत्नि को खाना ही तो खिला रहा हूँ, कोई पोर्न फिल्म थोड़ी बना रहा हूँ..”।

महेश की बात से सीमा थोड़ी सी सुलझ गयी और उसके हाथों से दिए कौर को साड़ी के पल्लू की ओट से धीरे से मुँह में लिया और चोर के दबे पांव की तरह बिना आवाज़ किए चबाने लगी।

महीनों से सुलग रहा धुँआ अब महेश और सीमा के अंदर आग बनने लगा था। महेश के दिल-दिमाग में कामदेव ने अपना नृत्य शुरू कर दिया था। रोटी का एक कौर खिलाते समय महेश की उंगलियों का सीमा के गुलाबी गीले होंठो से स्पर्श ने महेश के अंदर बिजली की भांति कम्पन ला दिया था। उसका शरीर सिहर हुठा था। कमरे की शांति और घूमते पंखे की फैलती हवा इस उत्तेजना मे उद्दीपन का काम कर रही थी। प्रेम की इस वासनामयी तरंगों ने सीमा और महेश की आखों के सामने सब धुंधला कर दिया था सिवाय एकदूसरे के छुपे तन को । किन्तु उदय उन दोनों के इस प्रेमांश को सीसीटीवी कैमरे की तरह देख रहा था।

किंतु 12 शाल से शादीशुदा पति-पत्नि के बीच हो रहे प्रेम के इस सम्मोहन से उदय के ऊपर आश्चर्य का भाव गहरा गया कि इनदोनो के अंदर अभी वो लड़कपन की दीवानगी कैसे बाकी है..? किंतु इस पति-पत्नि के इस प्रेम ने उदय के दिल के अंदर उनदोनो के प्रति एक सम्मान जाग्रत कर दिया था। इसलिए वह अपनी कुर्सी से खड़ा हो गया और बोला, ” महेश में नीचे बाली ऑफिस में जाकर काम देखता हूँ। तुम जब तक बैठो..ओके..” ! उदय की बात सुन महेश के अंदर तो प्रेम तरंगों का ज्वार सा उफनने लगा। समय का धन्यवाद करते हुए महेश ने सामान्य भाव में कहा, “ठीक है सर, आप जाइये मैं यहां पर हूँ..”!

किंतु महेश की औपचारिकता पूर्ण बातें सुन उदय को लगा कि मैं तो इसका साथ दे रहा हूँ और इसे लग रहा है कि मैं सच मे काम करने जा रहा हूँ। इसलिए महेश को एहसास कराने के लिए कि तुम दोनों के अंदर जो चल रहा है उस वह भली भांति समझ रहा है उदय बोला, ” तुम लोग आराम से अपना खाना खाओ-पीओ, दुख-सुख की बातें करो, क्योकि घर मे बच्चे कहाँ अकेला छोड़ते होंगे। और जब तुम खाना खा लो तो मुझे बुला लेना। तब तक के लिए मैं नीचे बाली ऑफिस में ही हूँ…ओके”! उदय की बात सुन महेश को अब समझ आ गया था कि यह समय देवयोग से नही बल्कि यह तो उदययोग से मिला है। इसलिए महेश ने उदय को तुरन्त हाथ जोड़ धन्यवाद कहा। उदय के जाने के बाद अब उस ऑफिस रूम में महेश और सीमा के सिवाय कोई नही था। इसप्रकार खाना खाते-खाते और एकदूसरे को देखते-देखते महेश की महीनों की दबी हुई वासना में पैक इक्षा बाहर आने लगी थी। घर की,बाहर की, सभी की बातें करते हुए महेश अब सीमा के कोमल अंगों को छूते हुए छेड़ने लगा था। जिसपर सीमा हल्के से मुस्कुरा जाती और महेश से कहती ,”ये क्या कर रहे हो, अभी किसी ने देख लिया तो..”,।महेश की इस छेड़खानी से सीमा के अंदर भी ज्वर से चढ़ने लगा था। उसकी आँखें,उसका चेहरा गुलाबी हो गए थे और उसकी आवाज़ में धीमेपन की सिसकियां फूट रही थी। इसलिए वह महेश की इस छेडख़ानी को टोक जरूर रही थी किन्तु रोक नही रही थी। फिर भी महेश उसे आस्वस्त करते हुए कहा कि ” यहाँ पर कोई नही आता क्योकि सीढ़ियां चढ़नी पड़ती है और किसी का यहाँ काम भी नह है..। इसलिए तुम निश्चिन्त रहो..”!

इस आस्वासन और महेश की छेड़छाड़ से सीमा के अंदर भी वासना के दबे धुएँ ने हल्की सी चिंगारी पकड़ ली थी। उसका चेहरा भी किसी गर्म होते अंगारे के तरह चमकने लगा था। तभी सीमा ने महेश से जिज्ञासा वस पूछा कि, “क्या तुमने उदय सर से नीचे जाने के लिए बोल दिया था”..?

“वास्तव में महिला अपने रति रूप के प्रति इतनी प्रतिबद्ध होती है कि एक छोटी सी असुरक्षा महसूस होते ही उसके अंदर उठ रही कामुक दावानल तुरन्त ऐसे बुझ जाती है जैसे उसके ऊपर समुंदर का सारा पानी उठेल दिया हो..”! इसलिए वह आगे बढ़ने से पहले अपने सम्मान की सुरक्षा के प्रति निश्चिन्त हो जाना चाहती थी। वह जानना चाहती थी कि मर्दों ने अपनी वासना को शांत करने के लिए कहीं उसकी इज्जत से समझौता तो नही कर लिया। अतः महेश ने उसके असुरक्षा के भाव को शांत करते हुए और किसी भी प्रकार के उसके प्रति षणयंत्र को खारिज करते हुए कहा, ” नही, मैने ऐसा कुछ नही बोला, हो सकता है उनको नीचे की ऑफिस में कोई काम हो, इसलिए वो नीचे चले गए हों..” इसप्रकार महेश ने उस संकेत को छुपा लिया जो उदय सिंह ने नीचे जाते समय उससे इशारे इशारे में कहा था।

– सीमा ने अपने गुलाबी धधकते हुए चेहरे और गुलाबी लिपिस्टिक लगे होठों से कहा, ” ठीक है..”

आपस की बातों में महेश को अब आंनद नही आ रहा था, उसकी साँसे शिकारी चीते की तरह तेज़ होती जा रही थी। उसके अंदर का शिकारी अब शिकार करने के लिए बिचलित हो रहा था, इसलिए वह कुर्सी से खड़ा हुआ और उसने रूम का दरवाजा बंद कर दिया और फिर एक दूसरे के ज़िस्म को ऐसे देखने लगे जैसे सुनार खोए हुए सोने को टटोलते हुए खोजता है।

भले ही उदय समझदारी दिखाते हुए नीचे चला गया हो किन्तु उसके बैचेन मन की आँखें उसी कुर्सी पर बैठी हुई थी जिससे वह उठ कर गया था। इसलिए जैसे ही महेश ने दरवाजा बंद किया उसने अपने सीनियर के कैबिन में बैठे-बैठे उस आवाज़ को सुन लिया जिसे वहाँ पर उपस्थित अन्य किसी ने नही सुना था। इसके अंदर के भी अपनी आँखों से उस प्रेम प्रसंग को देखने की चाहत जाग उठी। इसलिए दरवाजा बंद होने के कुछ समय बाद ही वह चोरों की भांति दबे पाँव सीढ़िया चढ़ कर बंद दरवाजे के सामने आकर खड़ा हो गया। दिख तो कुछ नही रहा था किंतु उन सिसकियों और चोट की आवाज़ को सुनने की कोशिश कर रहा था जिससे मर्दाना जोश सन्तुष्टि पाकर स्वयं को स्त्री चरणों मे समर्पित कर देता है। किंतु उसे ऐसा खड़ा देखकर नीचे से ऑफिस के स्टाफ का कोई व्यक्ति जोर से बोला, ” क्या हो गया, साहब..? कैसे बाहर खड़े हो..?”

उदय उसके इस प्रश्न से एकदम सकपका गया और जोर से बोला, ” कुछ नही यार ऐसे ही कुछ सोच रहा था..”

उदय की आवाज़ एकसाथ दोनों लोगों के कानों में गयी, एक और नीचे खडे व्यक्ति ने जबाब दिया, “ज्यादा न सोचा करो, दिमाग को शांति दो गर्मी बहुत पड़ रही है..” जिसे सुनकर उदय हँस गया और दूसरी तरफ यही आवाज़ आलिंगन में लिप्त महेश ने सुनी जिसे सुनकर वह तुरन्त ही ऐसे सचेत हो गया जैसे बॉर्डर पर दुश्मन के प्रत्येक प्रहार के लिए सैनिक सचेत होता है। इसलिए उसने अपने अधूरे मिलन को वहीं पर अधूरा छोड़ पुनः सामान्य अवस्था में जल्दी से आने के लिए तैयार होने लगा। अतः महेश और सीमा ने स्थिति पर जल्दी से काबू किया और चेहरे के भाव सामान्य करते हुए सम्भलकर महेश ने दरवाजा खोल दिया।

महेश के हाव-भाव देखकर उदय सिंह समझ गया था कि अंदर कुछ गरमा-गरमी थी। इसलिए उसने कमरे में घुसते ही हँसते हुए व्यंगात्मक शब्दों में कहा, ” महेश कमरे में गर्मी कुछ बढ़ गयी है..?

महेश ने सपकपाते हुए जबाब दिया- “नही-नही सर मुझे तो नही लग रही..क्या आपको गर्मी लग रही है..?

-उदय ने हल्का सा मुस्कुराते हुए और सीमा की तरफ देखते हुए हल्के से कहा, “गर्मी तो तुमने बड़ा दी है, तुमको क्यो लगेगी..?”

– महेश उदय के व्यंग से शरमा गया और लजाते हुए हल्का सा मुस्कुराया। तभी महेश की पत्नि सीमा, उदय से चेहरा बचाते हुए कुर्सी से खड़ी हुई और दरवाजे से निकलती हुई बोली ” मैं घर जा रही हूँ, तुम आ जाना और हाँ सब्जी जरूर लेते हुए आना..” हड़बडाहट और जल्दबाजी में सीमा भूल गयी कि लोकडौन में पूरा बाजार बंद ही है।

सीमा के जाने के बाद महेश सहमाहुआ अपनी कुर्सी पर बैठ गया और सोचने लगा कि उदय सर पता नही क्या सोच रहे होंगे। उसे ये सब नही करना चाहिए क्योंकि सीमा को भी यह बहुत बुरा लगा होगा। और हम शादीशुदा होकर भी कुबारे लड़के लड़कियों जैसी हरकत कर रहें है वो भी अपनी ऑफिस में..! महेश पहले जितना सकारात्मकता महसूस कर रहा था अब वही सब कुछ उसे नकारात्मक लगने लगा था। एकप्रकार से महेश की आखों से कामदेव का पर्दा उठ गया था और उसे अब सामाजिक सच्चाई दिखने लगी थी। अब उसे लग रहा था कि कहीं उदय सर हमारी बातों को ऑफिस में ना फैला दें। महेश इसी कशमकश में अपने आप को लगातार कोशे जा रहा था। तभी उदय ने गम्भीर स्वर में पूछा, ” क्या महाराज, ये तुम्हारी पत्नि ही थी ना..?

-उदय के प्रश्न से महेश लज्जित हो गया और लज्जा के भाव को छुपाते हुए जबाब दिया,” हाँ ,सर मेरी पत्नि ही थी..मैंने आपका परिचय कराया तो था..”!

– उदय ने फाइलों में रखे कागजों को पलटते हुए उसकी तरफ देखे बिना कहा, ” फिर क्या बात है, इतना क्यो बिलबिला रहे थे..कि रूम का दरवाजा ही बंद कर उलझने लगे..?”

“उदय ने बात घुमाकर उसे आपसी झगड़े का रूप देकर बोला। जिससे महेश शर्मिंदा ना हो और बात कह दी भी जाय..”

– अब महेश को पूरी तरह समझ आ गया था कि उसके रोमांस के अद्भुद पलों के बारे में उदय सर को पता लग गया है..! इसलिए महेश ने इस विषय पर कुछ जबाब ना देते हुए उसे वहीं पर खत्म करने की सोचा और बात को घुमाने के उद्देश्य से बोला,” सर हमने स्टोर को अच्छे से साफ करबा दिया है, आप देख लेना..”

किन्तु उदय अभी तक उसी प्रश्न पर ही अटका हुआ था, और उससे पूछने लगा कि, “वो सब तो ठीक है बाबू, पर आप हमसे कहे होते तो हम नही आते कुछ देर और नीचे खड़े रहते.. जब तक तुम अपने ज्वालामुखी के लाबा को शांत कर लेते..”

उदय की बात सुन महेश ने तुरंत पलटी मारी और कुर्सी से खड़ा होकर सीधे उदय के घुटने पकड़ कर खड़ा हो गया और गर्दन नीचे कर बोला, ” सर जी मजबूरी थी, क्या करें..? घर बहुत छोटा है, बेटी 13-14 साल की हो गयी है और बेटा 7-8 साल का। अब उनके सामने कुछ बनने का होता नही है!..बेटा रात को हमदोनों के साथ बीच मे सोता है और बेटी दूसरे कमरे में। स्कूल-पार्क-यार-दोस्त लोकडौन में सब बंद हो गया है..! क्या करें सर परेशान हो गए हैं, अपना भी तो जीवन है, शादीशुदा होते हुए भी बृहमचारी का जीवन जी रहे हैं। अपने मन की बात भी आपस में नही कर पाते, क्योकि जैसे ही पास बैठो बच्चों के नजरें बाज की तरह हमारे ऊपर गढ़ जाती है..”

– महेश की बात सुनते हुए उदय ने शांत भाव से पूछा, “अभी क्या उमर है तुम्हारी..?

– महेश ने बिना सोचे समझे एक होनहार छात्र की तरह मास्टर जी को जबाब देते हुए कहा.. ” सर यही 30 साल है..”

– उदय ने पुनः दूसरा सबाल कर दिया- तुम्हारी बेटी 13-14 साल की है तो क्या तुम्हारी शादी 15-16 साल की उमर में हो गयी थी..? ” उदय ने भी पुलिस की तरह महेश से सवाल-जवाब करना शुरू कर दिया था, क्योकि उसके सामने ऐसा वाकया पहली बार हुआ था कि कोई अपनी पत्नि के साथ अपनी ऑफिस में नाग-नागिन नृत्य करे। हाँ ऑफिस में जब कभी बैचलर पार्टी हुई तब उसने भी बाहरी महिलाओं के साथ नियंत्रित दायरे में खूब मजे किए, किन्तु ऐसा मामला उसने पहली बार देखा था जब पति-पत्नि वो भी शादी के 13-14 साल बाद इतनी उत्तेजना से लबालब हों।

– महेश ने उदय के प्रश्न का जबाब देते हुए कहा, ” हाँ सर, गाँव मे लगभग इसी उमर पर सभी की शादी हो जाती है..क्या करें…? और शहर में देखो तो 30 साल तो शादी-व्याह की उमर शुरू होती है..”।

इसप्रकार महेश उदय के सभी सबालों का जबाब झटाझट दिए रहा था बिना की लागलपेट के क्योकि वह नही चाहता था कि उदय सर मेरे बारे में जानने के लिए इस बात की चर्चा किसी अन्य व्यक्ति से करें। इसलिए वह सहज रूप से अपनी पूरी मजबूरी बताते हुए उदय के सामने पेशी कर रहा था। जिससे शायद उदय उसकी दुर्दशा पर तरस खा जाए और बात को यहीं पर कब्रिस्तान बना कर दफना दे..!

– महेश का जबाब सुन उदय बोला, “अच्छा तभी इतनी आग भरी पड़ी है दोनों के अंदर। तभी हम सोचे बंदा पता नही ऐसा क्या काम किए हैं कि घोड़े की तरह अब भी हिनहिना रहा है..”

-उदय के मुँह से अपनी मर्दाना तारीफ सुन महेश लजाते हुए हँस पड़ा। अब उसे ऐसा लगा कि मामला शांत हो रहा है और सर भी उसकी मजबूरी से बाकिफ हो रहे हैं..

-तभी उदय ने फाइलों का काम रोक कर उदय को सीधा खड़ा करते हुए कहा,” चलो ठीक है हम समझ रहे हैं तुम्हारी सब बात और तुम्हारे अंदर की आग को पर तुम ये सब माजरा पहले बताए होते तो तुम आराम से स्टोर में चले जाते और साफ स्टोर का खूब मजा उठाते.. और अब तो उधर मकड़ियां-छिपकलियां भी नही होंगी जिनसे तुमको लाज आती…”

-उदय की बात सुन महेश के भविष्य के लिए कान खड़े हो गए, और बोला “सर वो सब प्लानिंग-ब्लानिंग नही था ,ऊ सब तो बस हो ही गया, खुद ही, स्वतः स्फूर्त हो गया सर..”

– उदय ने व्यंगात्मक लहजे में बोला, ” हम सब समझ रहे हैं भाई, तुम्हारी स्वतः स्फूर्ति.. कोई टेंसन ना लो, जिंदगी को इनजोय करो चिल करो एक दम मस्त..और शादी जल्दी होने का मतलब यह नही होता कि बच्चे भी जल्दी से पैदा कर लो। अरे पहले 4-5 साल मन और शरीर की आग को जम के ठंडा करो, फिर कहीं जाकर गृहस्थी में पड़ो।..बच्चे हो जाने पर घर छोटा हो या बड़ा जीवन मे औपचारिकता आ ही जाती है। अब हम आपका समाज अंग्रेजी समाज तो नही है कि बच्चों को खुद से दूर करके अपने कमरे से दरवाजा बंद करके पैर में पैर डालकर सो जाएं और जो मन करे, जब मन करे शुरू हो जाय..! यहाँ पर तो भाई बच्चा माँ-बाप से तब तक चिपका रहता है जब तक उसकी शादी नही हो जाती..एकदम अमरबेल की तरह..। इसलिए कोई परेशानी नही है, पर ध्यान से ये सब सामान्य नही है, कानूनन नही है। किसी को पता चल गया तो बहुत गरबर हो जाएगी, महाराज.. उस सब पर भी ध्यान देना बहुत जरूरी है..”

– उदय की बात पर पूर्ण सहमति देते हुए महेश का मन पुनः बिचलित हो गया। और बोला “सर आपसे एक बिनती है अगर आपको बुरा ना लगे तो..”

– उदय बोला ” अरे अरे बताओ क्या बात है.. इसमें बिनती क्या.. तुम एकदम इतना निरीह क्यो हुए जा रहे हो..भाई?

-महेश ने सकुचाते हुए और खिंची सी मुस्कान चेहरे पर लेते हुए कहा,” सर अगर आपको कोई दिक्कत ना हो तो मैं कल सीमा को बुला लूँ..?”

-उदय ने पूछा, “किसलिए बुलाना है सीमा को..? कोई काम है ..”?

-महेश ने अपने शब्दों में चापलूसी का मक्खन लगाते हुए कहा, ” इसी काम के लिए, जो आज हो नही पाया..”

-उदय उसकी बात सुन चौंक गया और बोला ” तुम्हारा दिमाग खराब हो गया है ,ये सरकारी ऑफिस है कोई होटल नही । किसी ने देख लिया तो तुम तो मरोगे ही, मुझे भी अपने साथ ले मरोगे। और यहाँ पर हर कोई सिर पर पैर रखकर ऊपर उछलता है, इसलिए दूसरों को कोई मौका ना दो । और फिर सभी मुझ पर आक्षेप लगाएंगे कि इसका भी जरूर कोई लाभ होगा तभी इसके सामने यह सब चल रहा है, बरना नही होता । इसलिए अपने घर पर ही रहो भाई, जो करना है वहीं पर करो..”

-किन्तु महेश अब अपनी इक्षा जाहिर कर चुका था और झिझक भी निकल गयी थी इसलिए वह अपनी वही मजबूरी उदय के सामने पुनः जाहिर करने लगा कि, ” घर बहुत छोटा है, बच्चे बड़े बड़े हो गए हैं, बच्चों के बिगड़ने से डर लग रहता है, जीवन में नीरशता घर कर रही है जिससे जीवन मशीन की तरह लगता है..इत्यादि..इत्यादि..”

उदय महेश की ये सभी मजबूरी सुन कर पिघल गया और बोला, “चल कोई बात नही है तुम लंच समय के बाद बुला लिया करना खाना देने के बहाने, किन्तु ये बात किसी को पता नही चलनी चाहिए। और हाँ हर रोज नही हो पाएगा.. जिस दिन बुलाओ उस दिन मुझे जरूर बता देना और स्टोर की चाबी लेकर चुपचाप स्टोर में अपना काम करने के बहाने चले जाया करना..”

-उदय की स्वीकृति पाकर महेश खुशी से ऐसेे उछल पड़ा जैसे पड़ौस की आंटी ने किसी लड़के और उसकी गर्लफ्रैंड को अपने घर मे मिलने की जगह दे दी हो। उसने बार-बार उदय का धन्यवाद किया और यहाँ तक कि इसके चरणस्पर्श भी किए ।

– शाम को महेश घर समय से पहुंच गया था। सीमा उसके लिए पानी लेकर आयी, उसे देखकर महेश कटीली मुस्कान से मुस्कुराया ,जिसकी प्रतिक्रिया में सीमा भी थोड़ा मुस्कुरा गयी। उनदोनो की इस मुस्कुराहट बाली भाषा को देखकर प्रतीक बोला,”मम्मी आप क्यो हँस रही हो..?”

सीमा बोली,”नही मैं तो नही हँस रही, मैं तो पापा को पानी दे रही हूं..”

-प्रतीक फिर बोला,”नही आप हँस रही हो एयर पापा भी हँस रहे हैं..सच सच बताओ आप दोनों क्यो हँस रहे हो.?.”

-इस बार सीमा हंसते हुए बोली,” पापा कहाँ हँस रहे हैं और ना ही मैं हँस रही हूं..”

-किन्तु अब प्रतिभा ने भी प्रतीक का साथ देते हुए कहा “आप दोनों हँस रहे थे ,सच सच बताओ क्या बात है..?”

अब सीमा और प्रतीक बच्चों की बात को सुन कर हँसने लगे और फिर सीमा बोली” आप दोनों बच्चे क्या सारा दिन हमको ही देखा करते हो..? हम क्या कर रहें है क्या नही..? बताओ..?”

– प्रतिभा का समर्थन पाकर प्रतीक बिगड़ गया और महेश की पीठ पर चढ़कर बोला “आप बताओ क्यो हँस रहे हो, बरना मैं आपके ऊपर से नही उतरूंगा..”

-अब महेश और सीमा बच्चों को क्या बताते कि वो इसलिए हँस रहे है कि उन्होंने आज ऑफिस में वो सब किया जिसे तुम दोनों यहाँ पर नही करने देते हो। महेश ने बात घुमाते हुए प्रतिभा से पूछा,” प्रतिभा आज ऑनलाइन क्लास ली थी..?”

-प्रतिभा ने जबाब दिया,” हाँ पापा क्लास ली थी किन्तु मेरी आँखों में अब दर्द होता है, मेरी आई साइट कम हो गयी है, मुझे चश्मा लगबाना है..”

अक्सर बच्चों की यही आदत होती है कि माता-पिता उनसे पढ़ाई के बारे में कुछ पूंछे तो उनके सामने एक इमोशनल ड्रामा कर दो,जिससे उनका दिमाग पढ़ाई से हटकर बच्चे के स्वास्थ्य पर आ जाय। किन्तु प्रतिभा के साथ वास्तव में दिक्कत हो रही थी, और उसका चश्मा बनने भी डला था,किन्तु लोकडौन की बजह से दुकान बंद थी और मिल नही पा रहा था।

-महेश ने प्रतिभा के सामने मजबूरी जाहिर करते हुए कहा,” क्या करें बीटा अब तो लोकडौन जब खत्म होगा तब जाकर ही तुझको चश्मा मिल पाएगा, तब तक तो तुझे ऐसे ही काम चलाना पढ़ेगा..”

-प्रतिभा ने पापा के इस लाड़ को पा कर एक अजीब सी प्रतिक्रिया की..”उ..उ..उ..उ..उ..उ..” जैसे ऊँट ने डकार ली लो ! और महेश ने उसकी तरफ होठ चिपकाकर और पलकें नीचे उसकी तरफ झुककर ऐसे भाव बनाया जैसे ऊँट के करने के बाद उसका मुँह हो जाता है..

-इसप्रकार दोनों बाप-बेटी ने अपने अपने प्यार का आदान-प्रदान कर लिया। अब महेश और प्रतिभा की बात में प्रतीक जो बहुत जिद्दी लड़का था, माता-पिता की रहस्यमयी हंसी के बारे में पूछना भूल ही गया और फिर महेश ने उसे अपनी पीठ से उतारा और कपड़े उतारकर हाथ मुँह धोकर घर के कपड़े पहनकर किचन में खड़ा हो गया, जहाँ पर सीमा उसके लिए चाय बना रही थी। और किचन में घुसते ही उसने सबसे पहले सीमा की साड़ी से झांकती उसकी कमर पर हल्की सी चुटकी काट ली जिससे सीमा ने भी बड़ी प्यास भरी आवाज़ धीरे से निकाली..”आ उ.. क्या कर रहे हो,प्रतिभा बाहर ही बैठी है..”

महेश ने कटीली मुस्कान से कहा,” कल भी खाना देने आओगी ना..?”

-सीमा झटक कर बोली, ” हट, मैं नही आऊंगी कल। पता है कितनी शरम लगी थी जब आपके सर आ गए थे। मैं तो पानी-पानी हो गयी थी। ऐसा लग रहा था जैसे जमीन फट जाए और मैं उसमे समा जाऊं..”

-महेश संजीदगी से बोला, “वो सर को पता नही था, बरना वो आते नही..वो बहुत नेक दिल इंसान है। दिल्ली जैसे महानगर में ऐसा आदमी मिलना देवता मिलने के जैसा है..”। महेश उदय के बारे में मध्यकालीन भाट की तरह कुछ कसीदे गढ़ दिए..! महेश को बीच में रोकते हुए सीमा ने पूछा, “कुछ बोल रहे थे ,कि तुम दोनों ये क्या कर रहे हो..?”

-महेश ने सीमा के विचार से अस्वीकृति का मुँह बनाते हुए कहा, “अरे बिल्कुल भी नही। वो तो और यह बोल रहे थे कि महेश ऐसी बात थी तो मुझे बता देता और नही आता..”। महेश ने सीमा के विस्वास को और गाड़ा करते हुए कहा, “अरे भाई शुरू शुरू में शर के साथ भी यही दिक्कत थी, जो आज हमारे साथ है। फिर सर का साथ भी उनके सर ने दिया था..” ! इसलिए ही तो सर हमारी बात समझ रहे थे..

-सीमा चौंक कर बोली, “अच्छा वो भी ऐसा ही करते थे..?”

-महेश ने सीमा को आस्वस्त किया, “अरे क्यो नही, और करेगा भी क्या आदमी, तुम बताओ ,बच्चो के सामने थोड़े शुरू हो जाएगा। और यहाँ पर 5-6कमरों के मकान तो है नही या फिर बच्चों के दादा दादी भी नही है जो बच्चे उनके साथ खेल कूद करते रहें और माँ-बाप टेंसिन फ्री रहें। और ना ही आस पड़ौस या खेत बाग जिससे बच्चे घर से दूर सुरक्षित खेलते रहें.! अरे भाई शहर में तो बस मुश्किल ही मुश्किल है..और ज्यादातर लोग इन्ही मुश्किलों से निकल कर आये है..समझी..”

-इसप्रकार अपने तर्कों से महेश ने सीमा के अंदर का डर और झिझक दोनों निकाल दिए। और फिर इतने व्यख्यान के बाद सीमा के अंदर ज्ञान की कितनी ज्योति जली उसे देखने के लिए सीमा से बोला,”अच्छा कल तुम आज वाले समय ही लंच देने आना ,मैं तुमको नीचे ही मिलूंगा, ठीक है..”

-सीमा के अंदर महेश के व्याख्यान का ज्योतिप्रकाश तो जला किन्तु वह बिना हवा के ही बहुत झोखे खा रहा था,निससे सीमा का विस्वास इधर-उधर हो रहा था। सीमा ने महेश की बात सुन थोड़ी देर चुप रहने के बाद कहा,”रहने दो किसी को पता चल गई तो, परले हो जाएगी, सब किया धिया चौपट हो जाएगा, बड़नामी अलग से होगी..”

-इसप्रकार सीमा ने एक ही झटके में महेश के जाल को तारतार कर दिया। किंतु महेश को यह अवसर जीवन मे नए परिवर्तन की भांति दिख रहा था। इसलिए उसने सीमा को पुनः विस्वास दिलाते हुए कहा,” तुम तो सीमा कुछ ज्यादा ही डर रही हो। और सुनो ओफिस में दूसरी मंजिल पर एक स्टोर रूम है हमारा, जिसकी चाबी उदय सर के पास होती है, हम वहाँ पर बैठा करेंगे,और वहाँ पर कोई आता भी नही है। और तुम।ढोल पीटकर थोड़ी जाओगी कि में महेश से मिलने जा रही हूं। भाई तुम्हारा पति इस ऑफिस में काम करता है, उसे लंच देने जा रही हो, इसमें कोई बुरी बात तो है नही। और फिर देखो तुम्हारी मर्जी है, मैं जिद नही करूँगा। मेरे दिन तो वैसे भी आजकल हाथ भरोसे ही रह गए हैं..”! महेश ने अपने जाल में थोड़ा गुस्सा और थोड़ा दवाव बनाते हुए सीमा से कहा। और यह सच भी होता है जब पति अपनी पत्नि को नही समझा पाता तो अंत मे वह इसी तीर का प्रयोग करता है जिसमे ज्ञान के साथ गुस्सा,दवाव और भविष्य की कमक मिली रहती है। और यह तीर ज्यादातर कामयाब हो जाता है, इसलिए नही कि पत्नि दवाव में आ जाती है बल्कि इसलिए कि पत्नि अब सब कुछ पति पर ही छोड़ देती है कि जो कुछ होगा अच्छा या बुरा यही देखेंगे।

– सुबह हो गयी थी। प्रतिभा अपने बिस्तर मैं मुँह गड़ाए सो रही थी जबकि सोते हुए प्रतीक के दोनों पैर सोते हुए महेश की छाती पर ऐसे शोभित हो रहे थे जैसे “रक्तबीज राक्षस के ऊपर माता काली के पैर”। सीमा उठ गयी थी और महेश की बात को सोचते हुए अपनी नित्यक्रिया कर रही थी। बाहर भी इंसानों की हलचल ऐसे शुरू हो गयी थी जैसे अनाज गोदाम में चूहों की हलचल। खिड़की से डीजल के धुएं के लगातार बदबू हवा में तैरती हुई सड़क से आ रही थी,किन्तु अब तक सीमा और उसका पूरा परिवार ऐसी बदबुओं के अभ्यस्त हो चुका था । कुछ देर बाद महेश उठा और उसने अपने सीने पर रखे प्रतीक के दोनों पैरों को हटाया अंगड़ाई लेते हुए टॉयलेट करने चला गया। उसने देखा कि किचन में बल्ब जला हुआ है, और सीमा किसी गहरी सोच में चाय बना रही है। उसे लगा कि यह सोच उसकी बजह से तो नही, इसलिए उसने जल्दी से टॉयलेट किया और हाथ धोकर किचन में आकर उसे पीछे से पलड़कर खड़ा हो गया। और बच्चों की तरह उसके कंधे पर अपना सिर रखकर ऊऊऊऊऊऊऊऊऊ.. ऐसे करने लगा जैसे किसी कुतिया के नवजात बच्चे शर्दी से करते है..! किन्तु सीमा ने उसके इस रोमांस पर कोई प्रतिक्रिया नही की और इंडक्शन पर बनती हुई चाय को ही देखती रही। ऐसा लग रहा था कि सीमा अपने अंदर अपनी आत्मा की शक्ति से किसी पहाड़ जैसी चुनोती को गला रही हो। किन्तु तभी प्रतीक की आवाज़ आयी,”मम्मी.. मम्मी.. मम्मी..ऊऊऊ..”

प्रतीक की आवाज़ सुन दोनों सावधान अवस्था मे ऐसे खड़े हो गए जैसे फौज के जनरल साहब को देखकर सन्तरी खड़े हो जाते है..! सीमा ने चिपके हुए महेश से कहा,”हटो प्रतीक उठ गया है और अब प्रतिभा भी उठने बाली होगी, तुम चाय देखना में प्रतीक के पास कमरे में जा रही हूं…” महेश ने खीझते हुए बोला यार इन दोनों बच्चों ने तो हमारा जीवन ही छीन लिया है। इससे अच्छा तो हम गाँव मे अपने अम्मा-बाबू जी के साथ रहते तो अच्छा था। अपनी जिंदगी तो मौज मस्ती से जीते। महेश की बात सुन सीमा ने “सधे हुए स्वर में कहा इन बच्चों ने नही तुम्हारे इस छोटे घर ने जिंदगी खराब कर रखी है। कहती हूँ कोई बड़ा घर देख लो तो दिमाग में बात घुसती नही..” और फिर प्रतीक के पास बैठकर इसके सिर पर प्यार से हाथ फेरने लगी ,जिससे प्रतीक थोड़ा सा उठा और उसकी गोदी में पूर्ण अधिकार के साथ अपना सिर रखकर मातृत्व छांव में सोने लगा।

उधर महेश ने सीमा की बात पर खीझते हुए कहा कि “तनख्वा इतनी नही है कि 2 फुल कमरों का घर ले लूँ। और 2 फूल कमरों का घर 15-20हजार में आता है। फिर इतना किराया देकर घर खर्च, बच्चों की फीस कैसे पूरी होगी…?इसकी भी तो सोचो..”

-इसप्रकार जरूरत पूरी ना हो पाने की विवशता के कारण हल्की-फुल्की तल्खी के साथ सुबह की शुरुआत हो गयी थी। महेश इस विवशता की कश्मकश में ऑफिस के लिए तैयार हो गया था, और उधर सीमा ने भी टिफ़िन तैयार कर लंच महेश के हाथ मे पकड़ा दिया। लंच हाथ में थामते हुए महेश ने एक बार सीमा की तरफ प्रश्नात्मक नजरों से देखा और उधर सीमा ने भी अपनी विवशता भरी नजरों से अपनी अस्वीकृति जाहिर कर दी। दोनों की नजरें मिली और फिर बिना कुछ बोले ही महेश ने टिफ़िन पकड़ लिया और ऑफिस चल दिया। रास्ते भर महेश इसी बारे में सोचता रहा कि महिलाओं को किसी बात पर राजी करना आसान नही है, ये बहुत डरती है, इतना अच्छा मौका हाथ से चला गया..”। इसप्रकार महेश का मूड ऐसे ऑफ हो गया जैसे चिड़िर-चिड़िर करके बिजली का बल्ब तेज़ बिजली में काला पड़ जाता है।

– ऑफिस की छुट्टी का बाद शाम को महेश घर आ गया। चेहरा उतरा हुआ था, आँखें छोटी हो रही थी, गाल लाल हो रहे थे, जैसे उसे बुखार हो गया हो, और घर आकर मास्क और जूते बाहर उतारकर घर के अंदर बिस्तर पर थके-हारे मजदूर की तरह बैठ गया। बिस्तर पर बैठते ही बाहर बॉलकोनी में खेल रहा प्रतीक तेज़ भाग कर आया और उसकी पीठ पर चढ़ गया और उसके कान पर जोर-जोर से चिल्लाने लगा,मम्मी पापा आ गए, मम्मी पापा आ गये, जैसे पापा पहले खो गए हों और अब अचानक मिल गए हो..! उसकी इस हरकत से महेश गुस्सा गया और उसे एक हाथ से नीचे उतारते हुए उसके गालों पर जोर से दो तमाचे जड़ दिए..और चिल्लाते हुए बोला दिमाग खराब करके रख दिया है इन्होंने..! शुबह शाम ज़िर पर ही चढ़ा रहता है ना ये देखता की हारा थका है या कोई परेशानी है,वस हर दम सिर चढ़ा रहता है, दिमाग खराब करके रख दिया है इन्होंने..! तमाचे खा कर प्रतीक जितनी जोर से रो सकता था उतनी दम लगाकर रोना शुरू कर दिया। हां हनाहनाहनाहनाहन… की आवाज़ से पूरा घर ऐसे भर दिया जैसे कबाड़े बाले की फेरी की आवाज़ से पूरा गांव-मुहल्ला गूंज पड़ता है। अब महेश पहले से ही परेशान था अब प्रतीक के रोने से उसकी परेशानी और भी बढ़ गयी। प्रतीक रोते हुए किचन में मम्मी के पास जा पहुंचा और उससे चिपक कर और जोर जोर से रोने की आवाज़ निकालने लगा। उधर सीमा भी बिना किसी दोष से अपने पुत्र के ऊपर हुए अत्याचार से चंडी की तरह बिफर पड़ी, और जोर से बोली,”क्या कर दिया है इसने..? पापा आ गए पापा आ गए कहना भी कोई जुर्म है..?” और फिर उसका हाथ पकड़ कर किचन से खींच लाई और महेश के सामने खड़ा करके बोली, “ये लो मार डालो इसे” और फिर सहमी सी बैठी प्रतिभा को भी जबरदस्ती खींच लाई और उसे भी उसके सामने खड़ा कर बोली “लो इसे भी मार दो, और फिर करना अपनी मर्जी, नंगे घूमना घर में..इन्ही की बजह से तुमको दिक्कत है ना, इसलिए मार डालो दोनों को..”! और फिर गुस्से में सीमा ने दो थप्पड़ सीमा की पीठ पर और दो थप्पड़ प्रतीक में जड़ दिए। अब महेश में तो नही दे सकती थी, इसलिए कमजोर पर अपनी गुस्सा और कुंठा जाहिर कर दी और फिर दोनों को खींच कर ड्राइंग रूम में ले जाकर रोने लगी..! दो थप्पड़ खा कर प्रतिभा नही समझ पा रही थी कि उसमें ये दो थप्पड़ क्यो पड़े हैं और उधर प्रतीक जो रो कम दहाड़ ज्यादा रहा था, वह भी नही समझ पा रहा था कि वह तो मम्मी से सांत्वना पाने गया था किन्तु मम्मी ने उसे पापा के थप्पडों की ब्याज क्यों दे दी…?

“अक्सर ऐसा होता कि पति या ससुराल बालों की गुस्सा पत्नि अपने बच्चों को पीट कर निकालती है.! जिसे देखकर पति और ससुराल बाले उसकी सहनशीलता की सीमा को समझ जाते है और उसी एलओसी तक ही बहु को बेबात पर डाँटते-फटकारते हैं..”

और इस एलओसी को महेश भली भांति समझता था, इसलिए सीमा ने किचिन में खड़े होकर गैस-बर्तनों का साक्षी मानकर महेश को गोल-गोल बातें सुना दी और महेश भी शांति से चुपचाप रहा और बिल्ली के भीगे बच्चे की तरह चुपचाप खाना खा कर प्रतीक से साथ सो गया..!

– अगली शुबह उठकर महेश ऑफिस के लिए तैयार हो गया और चाय पी कर ही ऑफिस के लिए चला गया। उदय सिंह ने देखा महेश मक्के की भुट्टे की तरह भुंजा हुआ चेहरा लेकर बैठा हुआ है किंतु इसबार उसने उससे कुछ नही पूछा और ना ही कुछ कहा, क्योकि वह पति-पत्नि के बीच होने बाली टॉम एंड जैरी की कहानी से भली भांति परिचित था। महेश उसी पतिति स्थिति में काम करता रहा और जब लंच का समय आया तो उदय सिंह ने उससे पूछा,”महेश लंच करने नही चलोगे, ..” किन्तु महेश ने उसी उतरे हुए चेहरे से मना कर दिया और फिर उदय लंच करने चला गया।

-उदय लंच करके आया तो उसने देखा महेश रूम के गेट के सामने किसी से हंसते हुए बात करते हुए बड़ी बैचेनी से इधर उधर टहल रहा था। और जैसे ही उसे उदय दिख वैसे ही उसने उदय से मुस्कुराते हुए ऐसे पूछा जैसे होटल की रिसेप्शनिस्ट ग्राहक से पूछती है,” सर आपने खाना खा लिया..?” ! एक बार को तो उदय समझ ही नही पाया कि ऐसा क्या हो गया कि मक्के के भुट्टे की तरह भुंजा हुआ चेहरा एक दम पॉपकॉर्न की तरह कैसे खिल उठा..? इसी जिज्ञासा वस उदय ने महेश के प्रश्न का जबाब देते हुए प्रश्न कर लिया,” हाँ ,मैंने तो लंच कर लिया परन्तु तुम अचानक खुशी से गुब्बारे की तरह कैसे फुले जा रहे हो ,महेश..?” महेश ने हँसते हुए जबाब दिया,” कुछ नही सर ऐसी कोई बात नही है, आज वो है ना मैं घर से लंच लेकर नही आया था सो धर्मपत्नि जी लंच देने आयी है..”

-उदय ने महेश की खुशी और बैचेनी का राज सुनते ही बोला,”ओ अच्छा अच्छा समझ गया, तभी तुम पॉपकॉर्न की तरह एकदम खिल उठे हो। समझ गया, समझ गया..”

यह कहते हुए उदय अपनी कुर्सी की तरफ बढ़ने लगा, तबि महेश ने उसे रोकते हुए कहा, “सर वो ..वो..”

उदय ने कहा, ” क्या वो..वो महेश जो कहना है खुल कर कहो..”

-महेश ने अपनी मुकुराहट में गिड़गिड़ाहट की चासनी घोलते हुएे कहा,” सर वो मुझे लंच करना था, इसलिए आप मुझे वो स्टोर की चाबी दे देते तो …”

-उदय ने महेश की बात सुन जिज्ञासा से पूछा, ” क्या घरवाली आयी है..?”

-महेश ने मुस्कुराते हुए सिर हिला कर हाँ कर दी..

-महेश की गर्दन का इशारा पाकर उदय ने पहले अपने पीछे देखा फिर ऊपर से ग्राउंड फ्लोर पर देखा फिर सीढ़ियों पर देखा कि कोई है तो नही और फिर जल्दी से अपनी टेबल की दराज खोलकर उसको स्टोर की चाबी पकड़ा दी और बोला,” आराम से खाना खाना कुछ दिक्कत होगी तो में मिस कॉल कर दूंगा ठीक है..किन्तु पिरि सावधानी के साथ,किसी को पता ना चले और हां टिफ़िन को खोलकर रखना.. ठीक है..”! इसप्रकार उदय ने एक होशियार दलाल की तरह चौकस नजरों से आसपास का मुआयना करते हुए और पूर्ण सावधानी के कायदे बताते हुए महेश को चाबी थमा दी..! महेश ने भी उदय की हर बात पर एयर हिलाते हुए पिरन स्वीकृति दे दी और फिर दबे पाँव अपनी टेबल के पास बैठी सीमा के कान में जाकर बोला,” चलो खाना खाने चलते है..”।

सीमा भी महेश की बात सुन रोबोट की तरह उठी और बिना आवाज़ किए बड़ी ही सावधानी से महेश के पीछे पीछे चलते हुए स्टोर रूम तक पहुंच गई। महेश ने जल्दी से बिना कोई अतिरिक्त आवाज़ के स्टोर रूम के दरवाजे पर लगे ताले को खोला और फिर दरवाजा भी ऐसे खोल जैसे रात के सन्नाटे में चोर तिजोरी खोलये है । दरवाजा खुलते ही पहले महेश स्टोर रूम के अंदर गया और फिर उसने रूम की लाइट जलाकर सीमा को भी अंदर बुला लिया और फिर अंदर से दरवाजा बंद कर दिया। दरवाजे के पास ही लगी खिड़की पर लटके पर्दे को उसने थोड़ा सा खिसका दिया जिससे बाहर से आने जाने बालों पर वह नजर रख सके..! फिर महेश ने स्टोर के अंदर अलमारी खोली और उसमें से ऑफिस का नाम लिखा हुआ एक सफेद चादर निकाली और जमीन पर बिछा दी और पहले खुद बैठा और उसके बाद बुत बनकर खड़ी सीमा को भी हाथ पकड़कर अपनी गोदी में खींच लिया। महेश की इस जल्दवाजी से सीमा को असुविधा हुई और बोली,” अरे अरे ये क्या कर रहे हो मैं अभी गिर जाती तो चोट लग जाती, और इतनी जल्दी भी क्या है अब तो सब ठीक है इसलिए पहले खाना खाओ फिर प्रोग्राम होगा..”

-महेश ने ठंड से जमे हाथों को रगडने बाली क्रिया करते हुए कहा, “हाँ चोट तो अब लगेगी है, और मैं कितने दिनों से प्यासा बैठा हूँ, पानी देखकर जल्दी तो होगी ही..”

-सीमा ने महेश की गोदी से उतर कर उसके गालों को अपने हाथ से दबाते हुए बोली,”अच्छा बहुत प्यासे हो, तभी मुझसे बेबात लड़ते रहते हो, मेरी एक नही सुनते हो, वस अपनी अपनी ही कहते रहते हो..”

-महेश ने भी इस निराधार आरोप पर कोई प्रतिक्रिया देने उचित ही नही समझा क्योकि वह इस रोमांस के समय को कोर्ट की बहस का समय नही बनाना चाहता था भरना उसके तरकस में भी तीरों की कमी नही थी। फिर भी उसने अपने उद्देश्य पर ही ध्यान दिया और फिर सीमा को इधर उधर चूमते हुए शरीर के अंदर के सुलगे धुऐं को आग बनाने में जुट गया। इसप्रकार कुछ ही समय बाद सावन के लबालब भरे बादल बरसे,कड़के,बाढ़ लाये और फिर सामान्य हो गए। इसप्रकार महेश के अंदर की आग अभी के लिए ऐसे शांत हो गयी जैसे गर्म लोहे को पानी मे डालने पर लोहे की आग शांत होती है। अतः अब महेश ने सन्तुष्टि की एक गहरी स्वांस अपने अंदर खींची।

सामान्य होने के बाद महेश ने प्रयोग किए हुए निरोध को दरवाजे के दूसरी तरफ की खिड़की से उसे पीछे बने नाले में फेक दिया किन्तु वह नाले में ना गिरकर खिड़की से लगे पेड़ की डालों में अटक गया, जिसपर महेश का और सीमा का ध्यान नही गया। इसके बाद बड़ी फुर्सत और चैन से महेश ने खाना खाया और फिर पर्दे से झांक कर इधर उधर देखा कोई बाहर नही दिखा तो उसने दरवाजा खोला और पहले, खुद बाहर निकला और फिर सीमा को बाहर निकाल दिया। किन्तु रूम का ताला लगाने से पहले उसने पुनः दरवाजा खोला और एकबार फिर सीमा को जबरदस्ती रम के अंदर खींच कर एकबार फिर से सन्तुष्टि पा ली। इसप्रकार महेश नई नई शादी हुए जोड़े की तरह मजे लेकर बाहर निकला और इधर उधर देखकर ताला लगाकर सीमा को हाथ मे टिफ़िन पकड़ाकर वहीं से घर भेज दिया और खुद अपनी ऑफिस की टेबल पर जाकर बैठ गया।

उसे कुर्सी पर बैठा देख उदय बोला,” क्या बाबू ..दिल को चैन मिला या नही..?

-महेश ने गहरी सांस भरते हुए और हंसते हुए जबाब दिया,” बहुत बहुत धन्यवाद सर, आप मेरे लिए भगवान की तरह हो गए हो..आज आपने जो मेरी सहायता की है उसे मैं जिंदगीभर नही भूल सकता..”

– उदय ने गम्भीर होकर कहा, “वो सब तो ठीक है पर तुम्हारा हिसाब ठीक से बैठ गया..? कोई परेशानी तो नही हुई..?..”

-महेश ने उसी मुस्कान के साथ जबाब दिया,” नही सर, सब एकदम बढ़िया रहा..”

-उदय ने गहरी साँस लेते हुए कहा “चलो ठीक है..अब तुम्हारा भूंजे भुट्टे की तरह मुँह तो नही बनेगा..”

-उदय की बात सुन महेश जोर जोर से हँसने लगा और ऑफिस के काम ऑफिस की फाइलो के बारे में बढ़-चढ़ कर बताने लगा। वास्तव में महेश उस सहायता को अपने काम से बराबर करने की कोशिश करने लगा। साथ ही उसे भविष्य के लिए भी इसप्रकार की सहायता और सुरक्षा की भी जरूरत थी। अतः महेश का आधा दिन खराब होने के बाद आधा दिन 5-6 महीने की सन्तुष्टि एकसाथ मिलने से बहुत उत्साह से गुजरा। शाम के 5 बज गए थे ऑफिस बंद हो गयी, महेश ने उदय के प्रति आज कुछ ज्यादा कृतज्ञता दिखाते हुए ज्यादा सिर झुकाकर नमस्कार कर ऑफिस से घर के लिए पैदल-पैदल चल दिया। रास्ते भर महेश, सीमा की उदारशीलता, पति के प्रति समर्पण, और ख़ूबसूरति के बारे में सोचता रहा और उसके इस समर्पण को देखकर आस्था से लबालब भर गया। वस आँसू निकलने की ही देरी बची थी, बाक़ीक़ सब हो गया था।

“मर्दो के यही सबसे बड़ी नादानी होती है कि उसको लगता है कि केवल उसी ने पाया है और बेचारी स्त्री ने तो वस खोया है या उसके लिए खुद को समर्पित कर दिया है, किंतु पुरुष यह नही सोचता कि महाभारत काल मे ही भीष्म, धर्मराज युधिष्ठिर को समझा चुके थे कि रमण लीला में स्त्री पुरुष से ज्यादा पाती है और पुरुष बर्फ की तरह पिघल कर अपना आकार खो देता है..” फिर भी जो भी हो ईस्वर ने पुरुष की इसी मानसिकता से इसी सोच से स्त्री को उसके हृदय की साम्राज्ञी बनाया है।

-महेश घर पहुंच गया था,लोकडौन की बजह से बाजार खुला नही था भरना आज वह सीमा और बच्चों के लिए उनकी मनपसंद राजिस्थानी मिठाई कलाकंद जरूर लेकर जाता है। किंतु आज वह स्वयं को इतना हल्का महसूस कर रहा था जैसे पानी का बुलबुला नो हवा में हर तरफ प्रकाश से भिन्न भिन्न रंग प्राप्त करता हुआ तैरता रहता है। उसने घर पहुँचकर दोनों बच्चों को खूब प्यार किया और उनके साथ जाते ही खेलने लगा। बच्चों से पूछा ” प्रतिभा तुम्हारी मम्मी कहाँ है..?

-प्रतिभा जबाब देती उससे पहले ही प्रतीक बोला,”पाप मम्मी आपको लंच देकरआयी है तभी से सो रही है..”। महेश ने चौंकते हुए पूछा “क्या सच मे, तभी से सो रही है..?

-इसबार जबाब प्रतिभा ने दिया प्रतीक ने तो वस प्रतिभा के जबाब को दोहराया,”हाँ पापा तभी से सो रही है, उसी साड़ी में..”

-महेश प्रतिभा का जबाब सुन दिल ही दिल खुश हो गया उसे लगा कि आज उसे भी कई महीनों की शांति मिली है। इसलिए उसके मन की बैचेनी भी आज नींद में घुल रही है। वैसे भी लोकोक्ति में कहते है कि,” सुख का सोवे और दुख का रोवे..”

-महेश ने जल्दी से कपड़े उतारकर हाथ-मुँह धोकर दोनों के लिए चाय बनाने लगा और बच्चों के लिए मैगी..! प्रतीक-प्रतिभा दोनों मैगी की खुशबू सूंघकर किचन में चले आये और बोले, “पापा मैगी किसके लिए बना रहे हो..?”

-महेश ने कमर से झुक कर और बन्दर की तरह थोड़ा कमर को इधर उधर करते हुए कहा,”आज मैं अपने दोनों बच्चों के लिए यमी-यमी मैगी बना रहा हूँ..ये ये ये..”

पापा के बचपन को देखकर दोनों बच्चे भी उज़के साथ खुशी से जोर जोर से ये..ये..ये करने लगे । सभी का यह शोर सुनकर सीमा उठ गयी और बोली “प्रतिभा बेटा क्या हो गया..?

-मम्मी की आवाज़ सुन प्रतीक जल्दी से उसके पास गया और बोला “मम्मी मम्मी पापा हमारे लिए यमी मैगी बना रहे हैं..”

-सीमा ने उससे पूछा,”पापा आ गए क्या..?

-प्रतीक ने कहा “हाँ बहुत देर के आ गए हैं..”! प्रतीक की बात सुन सीमा ने कमरे में टँगी घड़ी को देखा उसमे घड़ी की सुइयाँ 6 बजे का समय दिख रही थी और बालकनी से सूरज का ढला हुआ प्रकास उसे शाम का समय बता रहा था। इसप्रकार घड़ी देखकर सीमा उठती उससे पहले ही एक ट्रे में महेश चार प्लेट में मैगी और दो कप में चाय लेकर आ गया और बोला,”बच्चो ये लो आज पापा के हाथ की यमी-यमी मैगी खाओ..”! दोनों बच्चों ने जल्दी से अपनी-अपनी मैगी उठाई गर्म गर्म भवकती हुए खाने लगे। फिर महेश ने मैगी की एक अन्य प्लेट सीमा को दी और अपने लिए ली और फिर चाय हाथ मे लेकर पहले तो सन्तुष्टि बाली हंसी से मुस्कुराए और फिर मैगी खाने लगे। उन दोनों की मुस्कुराहट को केबल वो दोनों ही नही बल्कि प्रतीक भी देख रहा था, अतः उससे आगे वो दोनों कुछ बात छेड़ते प्रतीक ने कहा,”मम्मी-मम्मी कल से मैं भी आपके साथ पापा की ऑफिस चलूंगा पापा को खाना देने..”! प्रतीक की बात सुन महेश और सीमा हँसने लगे…!!!!

Language: Hindi
496 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
Books from सोलंकी प्रशांत (An Explorer Of Life)
View all
You may also like:
एक ग़ज़ल
एक ग़ज़ल
Kshma Urmila
हर मुश्किल का
हर मुश्किल का
surenderpal vaidya
सांसों के सितार पर
सांसों के सितार पर
Dr. Ramesh Kumar Nirmesh
नर से नारायण
नर से नारायण
Pratibha Pandey
लफ़्ज़ों में आप जो
लफ़्ज़ों में आप जो
Dr fauzia Naseem shad
बदल सकता हूँ मैं......
बदल सकता हूँ मैं......
दीपक श्रीवास्तव
**** फागुन के दिन आ गईल ****
**** फागुन के दिन आ गईल ****
Chunnu Lal Gupta
*
*"परिजात /हरसिंगार"*
Shashi kala vyas
नहीं समझता पुत्र पिता माता की अपने पीर जमाना बदल गया है।
नहीं समझता पुत्र पिता माता की अपने पीर जमाना बदल गया है।
सत्य कुमार प्रेमी
शुभ प्रभात मित्रो !
शुभ प्रभात मित्रो !
Mahesh Jain 'Jyoti'
बेटियाँ
बेटियाँ
Raju Gajbhiye
"रंग अनोखा पानी का"
Dr. Kishan tandon kranti
बिन बोले सब बयान हो जाता है
बिन बोले सब बयान हो जाता है
रुचि शर्मा
24/231. *छत्तीसगढ़ी पूर्णिका*
24/231. *छत्तीसगढ़ी पूर्णिका*
Dr.Khedu Bharti
दाता
दाता
शालिनी राय 'डिम्पल'✍️
किस तिजोरी की चाबी चाहिए
किस तिजोरी की चाबी चाहिए
भरत कुमार सोलंकी
तुमने मेरा कहा सुना ही नहीं
तुमने मेरा कहा सुना ही नहीं
Dr Archana Gupta
डॉ अरुण कुमार शास्त्री
डॉ अरुण कुमार शास्त्री
DR ARUN KUMAR SHASTRI
हटा लो नजरे तुम
हटा लो नजरे तुम
शेखर सिंह
पिता के बिना सन्तान की, होती नहीं पहचान है
पिता के बिना सन्तान की, होती नहीं पहचान है
gurudeenverma198
यह रात का अंधेरा भी, हर एक  के जीवन में अलग-अलग महत्व रखता ह
यह रात का अंधेरा भी, हर एक के जीवन में अलग-अलग महत्व रखता ह
Annu Gurjar
मेरे पास फ़ुरसत ही नहीं है.... नफरत करने की..
मेरे पास फ़ुरसत ही नहीं है.... नफरत करने की..
shabina. Naaz
गंगा ....
गंगा ....
sushil sarna
4. गुलिस्तान
4. गुलिस्तान
Rajeev Dutta
भगवा रंग में रंगें सभी,
भगवा रंग में रंगें सभी,
Neelam Sharma
*करिएगा सब प्रार्थना, हिंदीमय हो देश (कुंडलिया)*
*करिएगा सब प्रार्थना, हिंदीमय हो देश (कुंडलिया)*
Ravi Prakash
ग़ज़ल
ग़ज़ल
ईश्वर दयाल गोस्वामी
कहमुकरी (मुकरिया) छंद विधान (सउदाहरण)
कहमुकरी (मुकरिया) छंद विधान (सउदाहरण)
Subhash Singhai
चेहरे पर लिए तेज निकला है मेरा यार
चेहरे पर लिए तेज निकला है मेरा यार
इंजी. संजय श्रीवास्तव
" समय बना हरकारा "
भगवती प्रसाद व्यास " नीरद "
Loading...