शरीर
काया को छतरी समझ, प्राण शक्ति को ओम ।
जिसकी धड़कन नाद बन, विचरण करती व्योम ।।
विचरण करती व्योम, जहाँ अक्षर की छाया
कोई न जाने वहाँ, कौन ने किसे बसाया
वर्षा, सर्दी, धूप, साधती छतरी छाया
दस इन्द्रियाँ से, सुसज्जित अपनी काया ।।
काया को छतरी समझ, प्राण शक्ति को ओम ।
जिसकी धड़कन नाद बन, विचरण करती व्योम ।।
विचरण करती व्योम, जहाँ अक्षर की छाया
कोई न जाने वहाँ, कौन ने किसे बसाया
वर्षा, सर्दी, धूप, साधती छतरी छाया
दस इन्द्रियाँ से, सुसज्जित अपनी काया ।।