(शराब)
देखो शराब की तड़प ।
करा रही यहाँ वहाँ झड़प ।
नशा जब जब चढ़ता सिर,
सब कुछ लेता हमसे हड़प ।।
चाहे भूखे रहे उनके बच्चे ।
सब कहे न उनको अच्छे ।
फिर भी पीना शराब है,
चाहे पहन न पाए कच्छे ।।
चाहे देर से हो भौर ।
चाहे मचे खूब शोर ।
फिर भी पीना शराब है,
चाहे बन जाए हम चोर ।।
पी पीकर करते हुड़दंग ।
परिवार की शांति भंग ।
कौन इनको समझाए,
सबको करते है तंग ।।
घर परिवार इनका टूटता ।
मान सम्मान भी छूटता ।
अनेक रोग द्वार आते,
भाग्य भी। इनका रूठता ।।
क्यो लोग इतना पीते है ।
फिर कैसे यह जी लेते है ।
क्या अब हम इनसे कहे ,
परिवार जन कितना सहते है ।।
।।।जेपीएल।।।