शमां के परवाने पर जलते नहीं
शमां के परवाने पर जलते नहीं
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दिल मे बसे हो निकलते नहीं,
कैसा जिगर है पिंघलते नहीं।
करते दुआ हैँ बनकर भिखारी,
कोई बात हृदय की सुनते नहीं।
दिन रात तुम्हारी अर्ज गुजारूँ,
प्रेम के भाव क्यों यूं भरते नहीं।
हो कर खफा हम तेरी वफ़ा से,
खोये जो जहां से मिलते नहीं।
तेरे हुस्न का जादू सिर चढ़ा है,
बिन पग तुम्हारे पथ चलते नहीं।
जाने जहाँ जाएं हम कहाँ पर,
शमां के परवाने पर जलते नहीं।
देखता है मनसीरत राहें तुम्हारी,
तुम्हारे बिना तो हम मरते नहीं।
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सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैंथल)