शब्द
ये शब्दों के तीर हैं नश्तर बन चुभ जाएंगे
पर्दे में छिपे चेहरों को बेनकाब कर जाएंगे
गीत ग़ज़ल या कविता आईना हैं ईमान के
शोला से भड़केंगे या शबनम से पिघल जायेंगे
ये शब्दों के तीर हैं नश्तर बन चुभ जाएंगे
पर्दे में छिपे चेहरों को बेनकाब कर जाएंगे
गीत ग़ज़ल या कविता आईना हैं ईमान के
शोला से भड़केंगे या शबनम से पिघल जायेंगे