शब्द सुनता हूं मगर मन को कोई भाता नहीं है।
शब्द सुनता हूं मगर मन को कोई भाता नहीं है।
दिल को छू ले गीत ऐसा अब कोई गाता नहीं है।।
बंदिशे चारो तरफ है घुट रही है जिंदगी क्यों।
दूर से आवाज देकर पास कोई आता नहीं है।।
है खुली आंखें मगर मैं सो गया हूं।
पत्थरों के बीच पत्थर हो गया हूं।।
“कश्यप”