कठिन समय आत्म विश्लेषण के लिए होता है,
जन्मदिन मुबारक तुम्हें लाड़ली
हाँ देख रहा हूँ सीख रहा हूँ
23/207. *छत्तीसगढ़ी पूर्णिका*
जिन्दगी यह बता कि मेरी खता क्या है ।
लाल बहादुर
Sarla Sarla Singh "Snigdha "
*भूल कर इसकी मीठी बातों में मत आना*
नया है रंग, है नव वर्ष, जीना चाहता हूं।
जितनी स्त्री रो लेती है और हल्की हो जाती है उतना ही पुरुष भी
नई दृष्टि निर्माण किये हमने।
रामनाथ साहू 'ननकी' (छ.ग.)
" हो सके तो किसी के दामन पर दाग न लगाना ;
डॉ कुलदीपसिंह सिसोदिया कुंदन
सत्य
अनिल कुमार गुप्ता 'अंजुम'
अत्यधिक खुशी और अत्यधिक गम दोनो अवस्थाएं इंसान के नींद को भं
पलकों से रुसवा हुए, उल्फत के सब ख्वाब ।
बुंदेली दोहे- ततइया (बर्र)
राजीव नामदेव 'राना लिधौरी'