शब्द खो गए…..
मन शिखर पर बैठे
परिंदे की भाँति
कूक रहा था
शब्द मौन
चांदनी से
झांक रहे थे
भावों के शज़र पर
मन के परिंदे पर
गीतों की नज़र पड़ी
राग को ढूंढ़ने के लिए
परिंदा उड़ा
कि सवेरा हो गया
चांदनी में लिपटे शब्द
उसकी अणिमाओं के संग ही खो गए
ढूंढ रहा वो परिंदा
लेकिन
शब्द नहीं मिल रहे
जाने कहाँ अदृश्य हो गए
अक्षर जमा किए
पर शब्द खो गए
वो शब्द खो गए!……
संतोष सोनी “तोषी”
जोधपुर ( राज.)