शब्दों की होली!
हे आर्य पुत्र जागो,
स्वयं को पहचानो,
अपने दायित्वों को मानो,
एक बार हिन्दू बन कर जानों,
कहां रोजगार पर अटक रहे हो,
दर दर को भटक रहे हो।
हे आर्य पुत्र जागो,
क्या भूख प्यास की रट लगाते,
आते जाते नहीं अघाते,
थोड़ी तो शर्म हया दिखाते,
मुफ्त अनाज भी गटक रहे हो,
और भूख प्यास पर अटक गये हो,
हिंदू रंग में रंग जाना सिखो,
कभी हिन्दू बन कर मर मीटना सिखो।
हे आर्य पुत्र,
जीवन मरण तो चला आ रहा है,
कहां स्वास्थ्य व्यवस्था पर तैस खा रहा है,
व्यर्थ की चिताओं से हटकर देखो,
ये रोना धोना अब खटक रहा है,
तू हिन्दू होकर भी भटक रहा है।
हे आर्य पुत्र,
कहां शिक्षा दिक्षा की रट लगाते,
क्या शिक्षित होकर ही सब कुछ पा जाते,
ना धर्म कर्म की बात हो करते,
एक बार हिन्दू बन कर तो देखो,
इन सब झंझटों से मुक्त रहोगे,
फिर ना इन सबकी तब बात करोगे,
ना फिर कोई भ्रम करोगे।
हे आर्य पुत्र,
यह सही समय है इसे व्यक्त करने का,
हिन्दू होने को अभिव्यक्त करने का,
हे आर्य पुत्र जागो,
स्वयं को पहचानो,
इस बार हिन्दू बन कर जानो,
हिन्दू होने का मर्म पहिचानो।
होली है भाई होली है,
यह शब्दों की रंगोली है।