शब्दकोश में समाज सेवा (हास्य व्यंग्य)
शब्दकोश में समाज सेवा (हास्य व्यंग्य)
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एक दिन सहसा शब्दकोश में समाज सेवा लिखा हुई नजर आ गया । हमने सोचा चलो शब्दकोश को बंद करके अलमारी में रखते हैं और कहीं बाहर भी इस समाज सेवा को खोजने का प्रयत्न करें ।
सबसे पहले हम सत्तारूढ़ दल के नेता के पास गए । हमने कहा “भाई साहब ! समाज सेवा के बारे में आपका क्या विचार है ? ”
वह बोले “इस शब्द का तो नाम भी मत लो । अब हमें तो पाँच साल तक ज्यादा से ज्यादा अपने लिए मेवा ही इकट्ठी करनी है ताकि आने वाली सात पीढ़ियों तक समाज सेवा करने की आवश्यकता ही न पड़े।”
हमने कहा ” इसके मायने आप समाज सेवा करते हैं ?”
वह बोले “हम क्यों समाज सेवा करेंगे? जब सत्ता में आने के बाद किसी ने आज तक समाज सेवा नहीं की तो हमें भी समाज सेवा की क्या पड़ी है ! ”
इतना कहकर सत्तारूढ़ नेताजी अपनी महंगी गाड़ी में बैठ कर खिसक लिए। अब हमने सोचा कि विपक्ष के किसी नेता को पकड़ें और उसके पास जाकर समाज सेवा के बारे में पूछें । विपक्ष का नेता तो हमारा प्रश्न सुनकर ही भड़क गया। वह बोला “एक तो हम चुनाव हार गए । पाँच पैसे की कमाई नहीं हो रही । दूसरे आप समाज सेवा कहकर हमारा मजाक उड़ा रहे हैं और जले पर नमक छिड़क रहे हैं । हम क्या विपक्ष में भी बैठें और समाज सेवा भी करें ? अरे समाज सेवा ही करनी होगी तो सत्ता पक्ष में बैठेंगे ,सरकार में मंत्री बनेंगे, विधायक और सांसद बनकर समाज सेवा शायद कुछ कर देते ! अब क्या कर सकते हैं !”
इसके बाद हमें गहरी निराशा हुई क्योंकि नेतागण ही ऐसे लोग होते हैं जो समाज सेवा के बारे में जानते हैं और हमने सुना था कि वह समाज सेवा करते भी हैं। लेकिन अब क्या किया जा सकता है।
फिर हम सामाजिक संस्थाओं के पास गए । उनके पदाधिकारियों से बात की। वह बोले “अब तो सामाजिक क्षेत्र में समाज सेवा कब की समाप्त हो चुकी है । समाज की सेवा करने के लिए सामाजिक संस्थाओं में कौन आता है ? सब लोग मंत्रियों, प्रशासनिक अधिकारियों से अपना संपर्क स्थापित करने के लिए सामाजिक संस्थाओं में आते हैं।”
हमने पूछा “तो फिर क्या आप समाज सेवा के लिए चंदा नहीं देते हैं ?”
पदाधिकारी बोले “हम चंदा क्यों देंगे ? हमारा काम तो उद्योगपतियों से चंदा लाना है और उस चंदे को डकार जाना है।”
चारों तरफ घूमते हुए हम थक गए और फिर हमें यह महसूस हुआ कि अब समाज सेवा सिवाय शब्दकोश के और कहीं नहीं है । भगवान करे ,शब्दकोश में यह बनी रहे और हमें पढ़ने को मिलती रहे।
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लेखक : रवि प्रकाश ,बाजार सर्राफा
रामपुर (उत्तर प्रदेश)
मोबाइल 99976 15451