“शक” लघु कथा
“शक” लघु कथा
बदलते परिवेश में मौसम से बदलते अनगिनत रिश्ते दबे पाँव आकर दस्तक देते हैं और जीवन में कुछ पल ठहर कर मौन ही लौट जाते हैं।सच मानो तो रिश्ते काँच के मानिंद होते हैं जिनकी ज़रा सी चुभन भी मन को लहूलुहान कर देती है। झूठ की बुनियाद पर टिके दिखावटी रिश्तों का टूटना आम बात है पर सच्चे, पाक रिश्तों में आई ज़रा सी खरोंच भी कभी -कभी कितनी जानलेवा हो जाती है ये उस दिन जाना जब रात साढ़े बारह बजे मैंने रेल की पटरी पर तेज़ रफ्तार से दौड़ती मीनल को देखा था। बेहद सुंदर, सौम्य, शालीन , खूबसूरती की जीती -जागती तस्वीर मीनल को देख कर भला कौन उस पर मर मिटना नहीं चाहेगा। काले घने बादलों से झाँकते उस चाँद से मुखड़े पर एक दिन आदिल की नज़रें जा टिकीं। गुलाबी साड़ी, कजरारे नैंन और उस पर खिलखिलाती मीनल की हँसी ने आदिल को कब अपना बना लिया ये तो खुद आदिल भी नहीं जान पाया। मीनल कॉलेज में लैक्चरार थी और आदिल की बहन रुक्साना मीनल की स्टूडैंट थी। आए दिन आदिल रुक्साना के बहाने कॉलेज में आता और मीनल से घंटों बात करता। धीरे-धीरे दोनों की जान-पहचान बढ़ने लगी। अब आदिल को मीनल से मिलने के लिए किसी बहाने की ज़रूरत नहीं थी। मीनल को भी आदिल का साथ भाने लगा था। घंटों मोबाइल पर बातें करना , हँसना -हँसाना ज़िंदगी का हिस्सा बन गए थे।अक्सर मीनल अपने पति से रुखसाना की बातों के बीच आदिल का भी ज़िक्र किया करती थी। पहले तो मनु मीनल की बातों पर कम ध्यान दिया करते थे पर जब आए दिन आदिल का नाम मीनल की जुबाँ पर आने लगा तो मनु के मन में आदिल को लेकर प्रश्नों का गुबार उठने लगा। एक दिन मीनल चौंक गई जब मनु ने मीनल की बात काटते हुए कहा – “इन कूड़ा बातों के लिए मेरे पास समय नहीं। बेहतर होगा कि तुम भी अपने काम पर ध्यान दो।” मीनल सकपका गई और चुपचाप काम में लग गई। अब मनु ज्यादा समय अपने काम को देने लगे। कई बार ऐसा भी होता था कि मीनल को मनु का इंतज़ार करते हुए अकेले ही सोना पड़ता था। मीनल का अकेलापन उसे अंजाने में ही आदिल के करीब ले आया।आदिल ने मीनल को वॉट्सएप्प से जोड़ दिया। दोनों घंटों वॉट्सएप्प पर चैटिंग करने लगे। अब मोबाइल मनु और मीनल के बीच आ गया था।जब मन में शक का बीज अंकुरित हो जाता है तो रिश्तों की पौध को दीमक चाटने लगती है। आदिल और मीनल की दोस्ती को एक साल पूरा होने जा रहा था। आज रुकसाना के जन्मदिन की पार्टी थी। मीनल आईने के सामने खड़ी सज रही थी। एकाएक मीनल को तैयार होता देख मनु पूछ बैठे-“कहाँ जाने की तैयारी हो रही है?” मीनल तुरंत बोली-“आज रुकसाना की बर्थडे पार्टी है। आदिल का वायलन पर प्रोग्राम भी है। आप भी चलिए ना..रुकसाना को अच्छा लगेगा।” मनु को मीनल के मुँह से आदिल का नाम सुनना गँवारा न था। वह तपाक से बोले-” मैं चला गया तो तुम आदिल के साथ गुलछर्रे कैसे उड़ाओगी?” मीनल चुप ना रह सकी। आज मनु ने उसके पाक दामन पर कीचड़ उछाली थी। पलट कर पूछ बैठी-” क्या कहा, गुलछर्रे…आखिर आप कहना क्या चाहते हैं?” मनु ने कहा- “वही ज़हरीली हकीक़त जिसका एक-एक घूँट पीकर मैं पिछले एक साल से तिल-तिल कर मर रहा हूँ ।” मीनल इस असहनीय कठोर प्रहार को सह न सकी। रोते हुए बोली-“आज कह ही डालिए ..जो कुछ आपके मन में है। मैं भी तो जानूँ ….आख़िर क्या किया है मैंने ? मीनल का हाथ पीछे की ओर मरोड़ कर मनु ने फिर कुठाराघात करते हुए कहा– ” अब कहने को क्या छोड़ा है तुमने ..चली क्यों नहीं जातीं अपने यार के पास? कम से कम ये मनहूस चेहरा तो नहीं देखना पड़ेगा।” ठीक है अब ये मनहूस चेहरा आप फिर कभी नहीं देखेंगे कहते हुए मीनल दरवाज़ा खोलकर तेज़ कदमों से बाहर निकल पड़ी। इससे पहले कि मैं उसे रोक पाती वह सामने से आती तेज रफ़्तार गाड़ी की भेंट चढ़ गई । काश, रिश्तों में सच्चाई जानने के लिए सब्र, समझ व इंसानियत बाकी होती!!! डॉ. रजनी अग्रवाल “वाग्देवी रत्ना”
महमूरगंज, वाराणसी (मो.-9839664017)