“शक्ति और सत्ता की बात”
“शक्ति और सत्ता की बात”
बंधु! लीक सेवाभावी की बिचलित हो करती जो घात।
आज सुनो उस छली वृत्ति की शक्ति और सत्ता की बात।।१।।
किस अवसान बिंदु पर पिघली,
हठी गर्व की मादक धारा।
सेवाव्रत में शोषण पलता,
जाने कब अदोष व्रत हारा।
अलसाई पंखुड़ी स्नेह की, लोभी बना मनुष्य हठात्।
आज सुनो उस छली वृत्ति की शक्ति और सत्ता की बात।।२।।
श्रम औ निष्ठा से बढ़ने की,
ऋजु परंपरा गौरवशाली।
कंकर-कंकर में शंकर हैं,
इस चिंतन ने समता पाली।
निर्विकार मानस पर ग्रह बन, वृत्ति आसुरी लायी साथ।
आज सुनो उस छली वृत्ति की शक्ति और सत्ता की बात।।३।।
लोग देश के सरल समर्पण-
लिए, सौंपते अपना भाग्य।
बलिदानी अभिलाषा देखे-
जननायक में अपना भाग्य।
यही एक नेतृत्व दिशा में कहीं सही करता अनुपात।
आज सुनो उस छली वृत्ति की शक्ति और सत्ता की बात।।४।।
लोकतंत्र का मूल यही है,
लोकरचित होगी जनसत्ता।
लाख-लाख सपने टूटें, पर-
जगे व्यक्ति की दमित महत्ता।
सत्यवीर अब बनो जागरुक, अपना भाग्य रचो निज हाथ।
आज सुनो उस छली वृत्ति की शक्ति और सत्ता की बात।।५।।
अशोक सिंह सत्यवीर
( सामाजिक चिंतक, साहित्यकार और पारिस्थितिकीविद)
उपसंपादक – भारत संवाद