शकेबा
तुझे मालूम क्या तुझको मैं कितना याद करता हूँ,
तेरा दीदार हो जल्दी यही फरियाद करता हूँ।
मेरे दिलदार तूं नादान है जमाने के उसूलों से
शकेबा टूटता जा रहा तेरी यादों के शूलों से।।
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रचना- पूर्णतः मौलिक एवं स्वरचित
निकेश कुमार ठाकुर
गृहजिला- सुपौल
संप्रति- कटिहार (बिहार)