Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
11 Oct 2024 · 7 min read

शकुन सतसई ( दोहा संग्रह) समीक्षा

समीक्ष्य कृति : शकुन सतसई ( दोहा संग्रह)
कवयित्री : शकुंतला अग्रवाल ‘शकुन’
प्रकाशक: साहित्यागार, जयपुर
प्रकाशन वर्ष: 2023 ( प्रथम संस्करण)
मूल्य : ₹ 225/ (सजिल्द)
शकुन सतसई: अनुभूतियों एवं संवेदनाओं का दस्तावेज
दोहा एक ऐसा छंद है जो हिंदी साहित्य में आदिकाल से ही कवियों एवं साहित्यानुरागियों को अपनी मारक क्षमता से प्रभावित करता रहा है। कबीरदास, रहीम, तुलसीदास, बिहारी लाल ,वृंद आदि कवियों के दोहे जिस प्रकार जन-मन को अनुरंजित तथा अनुप्राणित करते आ रहे हैं तथा वर्तमान में जिस तरह अनेकानेक कवि दोहा-प्रणयन में प्रवृत्त हैं, उससे यह बात प्रमाणित हो जाती है कि काल कोई भी रहा हो, दोहा सभी छंदों का सरताज है और रहेगा भी। शकुंतला अग्रवाल ‘शकुन’ का तीसरा सद्यः प्रकाशित दोहा संग्रह ‘ शकुन सतसई ‘ एक नए कलेवर और नए तेवर के साथ साहित्य जगत में आ चुका है। इससे पूर्व आपके दो दोहा संग्रह- बाकी रहे निशान(2019) और काँच के रिश्ते ( 2020) प्रकाशित हो चुके हैं। आपने अपनी कृति में बेबाकी से अपनी भावनाओं को अभिव्यक्ति दी है। कवयित्री ने जहाँ सामाजिक विडंबना और विद्रूपता को अपना वर्ण्य-विषय बनाते हुए अपने हृदय की पीड़ा और आक्रोश व्यक्त किया है तो वहीं भक्ति,अध्यात्म और नीति की त्रिवेणी में भी निमज्जित कराया है। प्रेम और श्रृंगार का बहुत ही सरस,हृदयग्राही एवं रमणीक चित्रण दोहों के माध्यम से किया गया है। ‘शकुन सतसई’ के काव्य-सौष्ठव युक्त एवं भावप्रवण दोहे बरबस ही पाठकों को अवगाहन करने के लिए लालायित करते हैं।
इस सतसई की विस्तृत भूमिकाएँ ‘शकुन सतसई शब्दों की गागर में भावों का सागर’ शीर्षक से कवि, समीक्षक एवं साहित्यकार श्री वेद प्रकाश शर्मा ‘वेद’ ,भरतपुर ,राजस्थान; सृजन की तूलिका के सुहाने रंग’ शीर्षक से शैलेन्द्र खरे ‘सोम’ ,छतरपुर ( म प्र) तथा ‘शकुन सतसई का भाव मकरंद’ शीर्षक से श्री बिजेंद्र सिंह ‘सरल’,मैनपुरी ( उ प्र) ने लिखी हैं। इसके अतिरिक्त इस कृति के संबंध में श्री वसंत जमशेदपुरी एवं श्री त्रिलोक सिंह ठकुरेला के मंतव्य एवं शुभकामना संदेश भी हैं।
मुझे यह कृति शकुन जी द्वारा कई माह पूर्व प्रेषित की गई थी किन्तु व्यस्तता और समयाभाव के कारण कुछ भी लिख पाना संभव नहीं हो पाया। जबकि शकुन जी द्वारा कई बार मुझे संदेश के माध्यम से सतसई के दोहों के विषय में अपनी पाठकीय प्रतिक्रिया प्रेषित करने का आग्रह भी किया गया।
ईश्वर के प्रति प्रेम और समर्पण प्रत्येक व्यक्ति का संस्कार होता है।शकुन जी भी उससे अछूती नहीं हैं। कवयित्री मात्र अपने लिए ही ईश्वर से प्रार्थना नहीं करती है अपितु ‘सर्वे भवन्तु सुखिनः’ का मूलमंत्र लेकर चलती है। समाज से अन्याय और अत्याचार को मिटाने के लिए वह ईश्वर से शक्ति प्रदान करने के लिए निवेदन करती है।
लेकर आहत मन प्रभो,कैसे करती भक्ति?
रोक सकूँ उत्पात को,इतनी दे दो शक्ति।।247 ( पृष्ठ-53)
लोक-मंगल की इस कामना के साथ कवयित्री ने देवाधिदेव महादेव के प्रति अपने भक्तिभाव को प्रदर्शित करते हुए दोहों की सर्जना की है। इन दोहों में भक्त का भगवान के प्रति अनुराग ही नहीं है,भक्ति की पराकाष्ठा भी परिलक्षित होती है।
शिव के पावन रूप से,जिसको है अनुराग।
उसको डस पाता नहीं,माया रूपी नाग।।6 ( पृष्ठ-23)
मिला न तीनों लोक में,शिव-सा कोई और।
जग रूठे शिव ठौर है,शिव रूठे शिव ठौर।।119 (पृष्ठ-37)
देशभक्ति का जुनून व्यक्ति को अपनी सुख-सुविधाओं से विमुख कर देता है। देशभक्त यदि कुछ सोचता है तो सदैव देश और देशवासियों के विषय में। जाड़ा, गर्मी और बरसात उसे अपने पथ से डिगा नहीं पाते। वे अहर्निश देश-सेवा में ही तत्पर रहते हैं।
अगहन हो या जेठ हो, नहीं उन्हें परवाह।
जिसने जीवन में चुनी, देशभक्ति की राह।।15 ( पृष्ठ- 24)
मातृभूमि के लिए अपना सर्वस्व बलिदान कर देने वाले सपूत कभी मरते नहीं हैं। लोगों के अंतस में उनका नाम सदैव अंकित रहता है। बहुत ही आदर और सम्मान के साथ उन वीर सपूतों को कृतज्ञ राष्ट्र स्मरण करता है, जो देश के लिए अपने जान की बाजी लगा देते हैं।
जिसका जीवन आ गया, मातृभूमि के काम।
अंतस में अंकित रहे,उसका स्वर्णिम नाम।। 237 ( पृष्ठ-52)
प्रेम और श्रृंगार का चित्रण यदि उदात्त रूप में किया जाता है तो बरबस ही पाठक को आकर्षित कर लेता है। प्रायः श्रृंगार ऐहिकता और स्थूलता के कारण अश्लील महसूस होने लगता है और कुंठित मन का चित्रण लगने लगता है। शकुन जी ने प्रेम और श्रृंगार का चित्रण अत्यंत सूझ-बूझ और सावधानीपूर्वक किया है।
गदराया मौसम सखी,फागुन बाँटे नेह।
केसर क्यारी सी खिली,आज कुँआरी देह।।610 ( पृष्ठ-99)
अलकें चूमें वक्ष को,गाल शर्म से लाल।
प्रेममयी मनुहार पा, गोरी मालामाल।।550 ( पृष्ठ 91)
अधर धरे है मौन जब,नयन करे संवाद।
मन से मन की तब ‘शकुन’,तुरत सुने फरियाद।।205 ( पृष्ठ 48)
परिवर्तन प्रकृति का नियम है। इस नियम से देश,समाज, परिवार एवं व्यक्ति कोई भी अछूता नहीं रह पाता। सभी पर इसका प्रभाव पड़ता है किन्तु कई बार ये परिवर्तन भारतीय सभ्यता और संस्कृति पर चोट से करके प्रतीत होने लगते हैं। जब-जब ऐसा होता है तो एक संवेदनशील कवि मन का मर्माहत होना स्वाभाविक है। नारी परिधान में हो रहा परिवर्तन कवयित्री को कचोटता है। पहले महिलाएँ साड़ी पहनती थीं और आँचल उसकी पहचान होती थी। अब साड़ी की जगह कुर्ती और सलवार ने ली है।
साड़ी का पत्ता कटा, संग कटे संस्कार।
आँचल पर भारी पड़ी, कुर्ती औ सलवार।। 8 ( पृष्ठ 23)
कुर्ती की होने लगी,साड़ी से तकरार।
देखो किसकी जीत हो,होगी किसकी हार।। 235 ( पृष्ठ-52)
तन-दर्शन फैशन हुआ, बिसर गए संस्कार।
पग-पग पर होने लगी, मर्यादा की हार।।348 ( पृष्ठ-66)
एक समय था जब देश में संयुक्त परिवार का प्रचलन था परंतु समय की क्रूर मार के चलते परिवार एकाकी हो गए। लोगों ने अपने बीवी -बच्चों को ही परिवार मान लिया। बड़े-बुजुर्ग उपेक्षित एवं आदर-सम्मान विहीन हो गए। यह स्थिति किसी समाज के लिए पीड़ादायक होती है। शकुन जी का एक दोहा द्रष्टव्य है-
अस्ताचल के सूर्य को करता कौन प्रणाम।
आज बुजुर्गों का नहीं,घर में कोई काम।।471( पृष्ठ-81)
मात-पिता आफत लगे,चिक-चिक होती रोज।
बेटे ने कर ली तभी,वृद्धाश्रम की खोज।।697 ( पृष्ठ-110)
ऋतुराज वसंत और फागुन माह की मादकता से मनुष्य तो क्या प्रकृति भी अछूती नहीं रह पाती। यत्र-तत्र सर्वत्र उसका प्रभाव परिलक्षित होने लगता है। ‘शकुन सतसई’ में बसंत की मादक बयार का जादू अपने चरम पर दिखाई देता है। उदाहरणस्वरूप कुछ दोहे अवलोकनीय हैं –
पवन नशीली हो गई, मिल ऋतुपति के संग।
टेसू पर यौवन चढ़ा, महुआ आम मलंग।।619 ( पृष्ठ-100)
खन-खन खनकेगा चना,गेहूँ झूमे संग।
आएगा नववर्ष तब, फाग बिखेरे रंग।। 669 ( पृष्ठ 106)
नयन मिलाकर फाग से,महक रहा कचनार।
खुशियों के टेसू खिले,आई मस्त बहार।।127 ( पृष्ठ-38)
प्रेम और श्रृंगार तथा फागुन एवं ऋतुराज के मोहक चित्रण के साथ-साथ कवयित्री ने समसामयिक विषयों को भी अपना वर्ण्य-विषय बनाया है। समाज में हो रहे बदलाव से किसी का भी अछूता रहना संभव भी नहीं होता। विज्ञान और प्रौद्योगिक विकास हमारे लिए आवश्यक है। इसके बिना जीवन की कल्पना ही असंभव है। पर जब यही तकनीकी अपना दुष्प्रभाव दिखाती है तो चिंता बढ़ जाना स्वाभाविक है। स्वस्थ शारीरिक और मानसिक विकास के लिए बच्चों का खेलकूद के प्रति रुचि दिखाना आवश्यक है। परंतु आज के बच्चे मोबाइल और कम्प्यूटर पर ही गेम खेलने में व्यस्त रहते हैं। यह उनके लिए घातक सिद्ध हो रहा है-
मोबाइल के फेर में, भूल गए सब खेल।
काया का होने लगा,नित रोगों से मेल।। 35 ( पृष्ठ-27)
राजनीति और राजनेता एक ऐसा विषय है जो लेखन को प्रभावित करता ही है। क्योंकि राजनीतिक निर्णय देश और समाज को प्रभावित करते हैं। व्यक्ति समाज की अभिन्न इकाई है। वह जब प्रभावित होगा तो निश्चय ही नीति और निर्णयों की चीर-फाड़ करेगा और कार्य-शैली पर उँगली भी उठाएगा। वैसे राजनीति और अपराधियों का गठजोड़ और नेताओं की स्वार्थपरता कोई नई बात नहीं है। शकुन जी ने अपने दोहों में बखूबी इसको जगह दी है-
दिल पर चलती आरियाँ,देख देश का हाल।
वीर लगे हैं दाँव पर, नेता चाहे माल।।88 ( पृष्ठ-33)
राजनीति के मंच पर, कठपुतली का खेल।
भोली जनता का यहाँ, निकल रहा है तेल।।422 ( पृष्ठ-75)
भारत देश महान है,लगे छलावा मात्र।
चोर उचक्के ही जहाँ, संसद के हैं पात्र।। 661( पृष्ठ-105)
नीति-न्याय, दर्शन, भक्ति और धर्म के साथ-साथ समसामयिक विषयों को; यथा – मोबाइल का दुष्प्रभाव, नारी अपराध, फैशन की प्रति नारी आसक्ति, प्रकृति और पर्यावरण, राजनीति और अपराधियों का गठजोड़ आदि विभिन्न पहलुओं को विषय बनाकर दोहों को एक विस्तृत फलक प्रदान करती ‘शकुन सतसई’ भावप्रवण दोहों से युक्त है। भावपक्ष के साथ ही कलापक्ष का भी विशेष ध्यान रखा गया है। सभी दोहे सुगठित और विधान पर पूर्णतः खरे उतरते हैं।
भाषा को लेकर किसी तरह का दुराग्रह नहीं है । जब, जहाँ जैसी आवश्यकता हुई है ,उस भाषा के शब्दों का प्रयोग किया गया है। अधिकांशतः परिष्कृत और परिमार्जित हिंदी भाषा की शब्दावली के माध्यम से ही भावाभिव्यक्ति कवयित्री का हिंदी भाषा के प्रति अनुराग प्रदर्शित करता है। दोहों में यथास्थान अलंकारों का प्रयोग न केवल काव्य-सौष्ठव में अभिवृद्धि करता है वरन भावों की सटीक अभिव्यक्ति में सहायक सिद्ध हुआ है। उपमा ,रूपक, अनुप्रास और दृष्टांत अलंकार का भरपूर उपयोग किया गया है। इतना ही नहीं छोटे से दोहे में जहाँ भी संभव हुआ है मुहावरों और कहावतों का प्रयोग रोचक बन पड़ा है। भावपक्ष एवं कलापक्ष से समृद्ध इस इस सतसई में कवयित्री की कल्पना और यथार्थ का अद्भुत समाहार दिखाई देता है। निश्चित रूप से हिंदी साहित्य जगत में ‘शकुन सतसई’ अपना यथेष्ट स्थान प्राप्त करने में सफल होगी। इस महत्त्वपूर्ण कृति के प्रणयन के लिए शकुन जी को अशेष बधाई और शुभकामनाएँ। माँ वीणापाणि की कृपा आप पर सदैव बनी रहे और आप इसी तरह अपनी कृतियों से हिंदी साहित्य को समृद्ध करती रहें।
समीक्षक
डाॅ बिपिन पाण्डेय

24 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
You may also like:
3486.🌷 *पूर्णिका* 🌷
3486.🌷 *पूर्णिका* 🌷
Dr.Khedu Bharti
स्वयं में ईश्वर को देखना ध्यान है,
स्वयं में ईश्वर को देखना ध्यान है,
Suneel Pushkarna
#संवाद (#नेपाली_लघुकथा)
#संवाद (#नेपाली_लघुकथा)
Dinesh Yadav (दिनेश यादव)
Lately, what weighs more to me is being understood. To be se
Lately, what weighs more to me is being understood. To be se
पूर्वार्थ
अन्तर्राष्टीय मज़दूर दिवस
अन्तर्राष्टीय मज़दूर दिवस
सत्य कुमार प्रेमी
वो नए सफर, वो अनजान मुलाकात- इंटरनेट लव
वो नए सफर, वो अनजान मुलाकात- इंटरनेट लव
अमित
मोहब्बत में मोहब्बत से नजर फेरा,
मोहब्बत में मोहब्बत से नजर फेरा,
goutam shaw
किसने यहाँ
किसने यहाँ
Dr fauzia Naseem shad
आओ लौट चले
आओ लौट चले
Dr. Mahesh Kumawat
*कितनी बार कैलेंडर बदले, साल नए आए हैं (हिंदी गजल)*
*कितनी बार कैलेंडर बदले, साल नए आए हैं (हिंदी गजल)*
Ravi Prakash
सफर जब रूहाना होता है
सफर जब रूहाना होता है
Seema gupta,Alwar
वक़्त बदल रहा है, कायनात में आती जाती हसीनाएँ बदल रही हैं पर
वक़्त बदल रहा है, कायनात में आती जाती हसीनाएँ बदल रही हैं पर
Chaahat
वातायन के खोलती,
वातायन के खोलती,
sushil sarna
मैं चाहता हूं इस बड़ी सी जिन्दगानी में,
मैं चाहता हूं इस बड़ी सी जिन्दगानी में,
डॉ. शशांक शर्मा "रईस"
** अरमान से पहले **
** अरमान से पहले **
surenderpal vaidya
Dr. Arun Kumar Shastri - Ek Abodh Balak - Arun Atript
Dr. Arun Kumar Shastri - Ek Abodh Balak - Arun Atript
DR ARUN KUMAR SHASTRI
वसंत के दोहे।
वसंत के दोहे।
Anil Mishra Prahari
मंजिल न मिले
मंजिल न मिले
Meera Thakur
"गिरना, हारना नहीं है"
Dr. Kishan tandon kranti
व्यक्ति के शब्द ही उसके सोच को परिलक्षित कर देते है शब्द आपक
व्यक्ति के शब्द ही उसके सोच को परिलक्षित कर देते है शब्द आपक
Rj Anand Prajapati
😢गुस्ताख़ कौन?
😢गुस्ताख़ कौन?
*प्रणय प्रभात*
जज्बात लिख रहा हूॅ॑
जज्बात लिख रहा हूॅ॑
VINOD CHAUHAN
मोहब्बत और मयकशी में
मोहब्बत और मयकशी में
शेखर सिंह
क्या लिखूं ?
क्या लिखूं ?
Rachana
हवेली का दर्द
हवेली का दर्द
Atul "Krishn"
Under this naked sky, I wish to hold you in my arms tight.
Under this naked sky, I wish to hold you in my arms tight.
Manisha Manjari
क्यों दोष देते हो
क्यों दोष देते हो
Suryakant Dwivedi
#शीर्षक- नर से नारायण |
#शीर्षक- नर से नारायण |
Pratibha Pandey
ट्रेन संख्या १२४२४
ट्रेन संख्या १२४२४
Shashi Dhar Kumar
घमंड
घमंड
Adha Deshwal
Loading...