व्हेन आई वाज़ इन ‘ झुंगिया ‘
व्हेन आई वाज़ इन ‘ झुंगिया ‘
‘ यही कहें गे आप लोग बड़े होकर जब मेरी अवस्था में पहुंचे गे ‘
भरे व्याख्यान सभागार में बैठे हम सब विद्यार्थियों को व्यंग्य पूर्वक संम्बोधित करते हुए मुड़ कर मेज़ पर से डस्टर उठा कर पट्ट पर लिखी उन पंक्तियों को मिटाने के लिए वे फिर से मुड़ गये जहां किसी शरारती सहपाठी ने लिख दिया था
‘ when I was in England ‘
उनके इस कथन से पूरी क्लास में सुई पटक सन्नाटा छा गया , लगभग हम सभी लोग उनकी इस वयतुतपन्नयबुद्धि , हाज़िरजवाबी और उसमें छुपे व्यंग्य के मर्म को महसूस कर रहे थे ।
दरअसल अक्सर वे अपने व्याख्यानों के बीच ‘ व्हेन ई वाज़ इन इंग्लैंड ‘ कहा करते थे और शायद उनकी इस विशेषता से प्रभावित होकर हममें से ही किसी ने कुण्ठाग्रस्त हो कर या उनपर व्यंगप्रहार अथवा उनकी खिंचाई के उद्येश्य से ये पंक्तियां लिखी थीं । ( कम से कम मैं वो नहीं था और जो था वो आज भी गुप्त है ) हालांकि उस मेडिकल कालेज का नाम महान संत पूर्वांचल के गांधी माने जाने वाले स्वतंत्रता संग्राम सेनानी बाबा राघव दास के नाम पर था पर झुंगिया गांव के निकट स्थित होने के कारण जो वहाँ उससे भी काफी पूर्व समय से बसा हुआ था उस कॉलेज को स्थानीय बोल चाल की भाषा में स्थानीय लोग ‘ झुंगिया मेडिकल ‘ के नाम से ही पुकारते थे । शायद इसीलिए उन्होंने ने अपने इंग्लैंड प्रवास की तुलना हमारे सुमधुर , ध्वन्यात्मक संज्ञा वाले गांव ‘ झुंगिया ‘ से कर दी ।
पर वो उनपर सत्यापित होती उन पंक्तियों के लायक थे आखिर अपनी MRCP की योग्यता उन्होंने लन्दन में रह कर प्राप्त की थी । आकर्षक व्यक्तित्व के मालिक , हम सबके पसंदीदा , कुशल प्रवक्ता डॉ के के कपूर जी आज मेरे मन में इतने प्रासंगिक क्यूं हो गये इसके लिये मुझे आप लोगों को अपनी विस्मृत स्मृति की प्रतिगामी तरंगों के माध्यम से अतीत में मेडिसिन वार्ड में चल रही उनकी सुबह की दस से बारह वाली क्लीनिकल क्लास में भाग लेने के लिये मेरे साथ ले चलना हो गा । वे उस दिनों रोगी की हिस्ट्री लेने का महत्व समझा रहे थे और उनका मानना था कि यदि उचित एवम सही द्रष्टिकोण से रोगी से प्रश्न पूंछे जायें तो बिना रोगी को स्पर्श किये , बिना आला लगाए , बिना ठोक पीट वाले परीक्षण किये और बिना अन्य जांचों के हम रोगी का सटीक निदान ( diagnosis ) कर सकते हैं । उदाहरण स्वरूप उन्होंने हमसे वार्ड में किसी भी रोगी का चयन करने को कहा जिसपर हमलोगों ने उस दिन वार्ड में भर्ती एक युवा महिला के पास उनकी कुर्सी लगा दी और हमसब लोग वहां आस पास उत्सुकता से घेर कर खड़े हो गये । उन्होंने क्लास आरंभ करते हुए उस रोगिणी स्त्री से उसके रोग से सम्बंधित एक के बाद एक प्रश्न करते गए और वह भी धैर्यपूर्वक उनके हर प्रश्न की सही सही जानकारी देती गई , वे प्रश्न पूंछते रहे … वो उत्तर देती गयी… और हमसब ध्यान से सुनते रहे … यह सिलसिला करीब चालीस मिनट तक चला । अंत में उन्होंने हमसबके सामने उस महिला की जो तजवीज़ बना कर रखी वो थी …
युवा महिला के शरीर के दाहिने अंग का 3/5 श्रेणी का पक्षाघात जो रक्त के गाढ़ेपन से बने थक्के के मस्तिष्क के एक विशेष हिस्से में जाकर वहां के रक्त संचार को बाधित करने के फलस्वरूप मस्तिष्क के उस भाग के गल जाने से उत्पन्न हुआ था और जिसका कारण उस महिला द्वारा लम्बे समय से नियमित रूप से गर्भनिरोधक गोलियों का सेवन था ।
हमलोग उनकी इस रोगी से सिर्फ बातचीत करके निदान तक पहुँचने की इस महत्वपूर्ण चिकित्सी परीक्षण की गैर – स्पर्शीय तकनीकी ( no touch technique ) कला विधि से हैरान थे और समझ गये थे यह जिंदगी में कभी न भूल सकने वाला सबक था , जिसमें रोगी से सही ढंग से सिर्फ पूंछ कर ( history taking ) बिना भारीभरकम सी टी स्कैन आदि की जाँचे करवाये उसकी बीमारी का पता लगाया सकता था ।
आज के कोरोना कॉल में जब आये दिन बदलते दिशानिर्देशों के अनुसार जब मैं रोगियों से कम से कम दो मीटर की सामाजिक दूरी बनाये रखते हुए अपने अस्पताल के मुख्य द्वार के निकट पॉलीकार्बोनेट से बने कोने में उन्हें बैठा कर और पहले तमाम मास्क , शील्ड , दस्ताने आदि पहन कर फिर बाद में साबुन , सैनीटाइजर का उपयोग करते हुए अधिकांश रोगियों को बिना टटोले ( palpation ) , ठोके ( percussion ) , आला लगाये ( auscultation ) उन्हें परामर्श देता हूं तो लगता है जैसे विधाता ने मरीज़ों की सदा से चली आ रही शिकायत सुन ली और कहा
‘ लो कल्लो बात – डॉक्टर से , पूरी कर लो अपनी तमन्ना
अब खाली बातों – बातों से ही उपचार हो गा । ‘
यह मेरा व्यक्तिगत विश्लेषण है कि इस वाक विधि से उपचार के निष्पादन में आज कल रोगी अत्यंत सन्तुष्ट हैं कि चलो आज डॉक्टर ने कम से कम उनकी बात तो पूरी सुन कर दवा लिखी और हरबार की तरह ये नहीं घटित हुआ कि हम अपनी बात कहते ही रह गये और उन्होंने पर्चा लिख कर कमरे से बाहर कर दिया । अभी तक किसी रोगी ने यह शिकायत नहीं करी कि डॉक्टर साहब ने हमें छू कर नहीं देखा । आज की बदलती परिस्थितियों के अनुरूप डिजिटल , इन्फ्रारेड , और दूरस्त नियंत्रित उपकरणों की आसान उपलब्धता और उपयोग ने रोगीयों के महत्वपूर्ण मापकों जैसे बी पी , बुखार , ऑक्सिजन आदि के मापन का कार्य आसान कर दिया । कुछ कॅरोना केंद्रों में यांत्रिक रोबोटिक्स की मदद से रोगियों की देख भाल की जा रही है । कुछ अस्पतालों में दिशानिर्देशों के अनुसार आले का कम से कम उपयोग करते हुए उसे लगभग ताले के भीतर बन्द कर दिया है । आज जब समान्य जनता में कोरोना से मृत्यु दर 0.3% है तो चिकित्सा व्यवसाय से जुड़े लोगों में यह मृत्यु दर 15.3% है और रोगीयों से दूरी बनाए रखने पर बल दिया जा रहा है । ऐसी वैश्विक महामारी के काल में सामाजिक दूरी बनाए रखने के लिये मुझे अपने गुरु जी और उनके द्वारा प्रदत्त गैर – स्पर्शीय रोगी परीक्षण की तकनीकी शिक्षा बेसाख्ता याद आती है जो इस कोरोना काल में रोगियों से दूरी बनाये रखते हुए सिर्फ उनसे बातें करके दूर से देखते हुए ( only by well history taking & inspection ) उनके निदान में सहायक सिद्ध हो रही है । आज यदि वो दुनियाँ में होते तो पाते कि उनके द्वारा दी गई शिक्षा को आज भी मैं नहीं भूला हूं तथा पूर्ण निष्ठा से उसका उपयोग कर रहा हूं और मुझे उनकी इस बात पर गर्व है ‘ कि आप जब इंग्लैंड में थे ‘ के कारण आपकी शिक्षा एवम सानिध्य पा कर आज मैं भी गर्व से कह सकता हूं ‘ जब मैं झुंगिया में था – when I was in झुंगिया ‘ । ऐसे उच्चकोटि के गुरु जनों को जिनके आशीर्वाद से जीवन में आज मैं इस स्थान पर पहुंचा आज शिक्षक दिवस के अवसर पर मेरा श्रद्धा से नमन ।
आप सभी को शिक्षक दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं ।