व्यावहारिक दोहे
संबंधों में आजकल, नहीं रही वह प्रीत।
लाभ हानि का आकलन, पहले करते मीत।।
भौतिकता की बलि चढ़ा, संबंधों का प्यार।
जिसकी जैसी हैसियत, वैसा ही व्यवहार।।
संबोधन की रीत भी, होती बड़ी विचित्रI
कल हम आदरणीय थे, आज रह गये मित्र II
संस्कारों के कृष्ण अब, बदल गये भावार्थ I
चरण वंदना में निहित, केवल कोई स्वार्थ II
अब तो चलनी चाहिए, कोई ऐसी रीत।
तज के मिथ्या दंभ को, सभी निभायें प्रीत।।
मतभेदों पर आप बस, मौन लीजिए ठान।
सबके दिल को जीत ले, छोटी सी मुस्कान।।
कृष्ण, सभी से कीजिए, प्रेम पूर्ण व्यवहार I
ढाई आखर जोड़ते, दिल से दिल के तार II