“व्यालं बालमृणालतन्तुभिरसौ रोद्धुं समज्जृम्भते ।
“व्यालं बालमृणालतन्तुभिरसौ रोद्धुं समज्जृम्भते ।
छेत्तुं वज्रमणिं शिरीषकुसुमप्रान्तेन सन्नह्यति ।”
— भर्तृहरि
— जो मनुष्य सरस और मधुर सरल वचनों से दुष्ट मनुष्यों को सन्मार्ग पर लाना चाहता है वह कोमल कमलनाल के तंतुओं से पागल हाथी को बांधने की चेष्टा के समान है ,मानो शिरीष के फूल के अग्र भाग से हीरे को काटने का प्रयास कर रहा हो।