व्याकरण जीवन का….
“संज्ञा” के” अपठित”,
“अनुच्छेद” में “उपसर्ग” सी आगे आती मुश्किलों…का.,… ‘अव्यय “सा भाव लिए
“निपात ” बन “विशेषण” रूपी “अलंकारों” से अलंकृत होकर संघर्ष हरा “काव्य “को “कारक” से ” संधि” कर जीवन ” समास “सा नया रूप देकर
“काल “को ” वचनो में परिवर्तित कर “दुर्गुणों” का “विलोम” अपना “विग्रह” करना है, “सर्वनाम” से किरदारों को “विच्छेद” करना है , “अनेकार्थी”
रिश्तों को त्याग कर” एकार्थी” वचन निभाना है,
अपनी ऊर्जा को ….संचितकर पुनः करके लिखना है इक प्रेरक” आलेख ”
अश्रु