आदमी परिचय का मोहताज़ है
*लोग यानि भीड़
*आदमी यानि बोझ तले दबा हुआ,
*मनुष्य मतलब मन-अनुकूल
*व्यक्ति यानि एकल
*इंसान मतलब प्रकृति
पर्सनैलिटी के दायरे सेहत से
चरित्र के सिर्फ़ कामवासनाओं से
कहीं ज्यादा हैं.
मनुष्य किसी की विचारधारा को पकड़ लेते हैं.
उसकी वह मानसिकता आसक्ति बन जाती है.
लड़ता है झगड़ता है श्रेष्ठ की सिद्धी में
सत्य के साक्षात्कार से चुक जाता है.
वैसे तो प्रवाह एवं लय के अनुसार
दो छोर/सिरे/मत ही मूल है.
फिर भी अनंत संभावनाओं के कारण.
मानसिकता को चार श्रेणी में बाँटा जा सकता है.
उनका जिक्र
*आदमी
*मनुष्य
*व्यक्ति
*इंसान
मैं आरंभ में ही कर चुका हूँ
आदमी परिचय का मोहताज़ हैं.
मनुष्य चाहे तो अंदर विद्यमान
व्यक्ति को खोजता.
और इंसान हो जाता.
पहुंच गये जिसकी तलाश थी.
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