व्यवहारिकता का दौर
व्यवहारिकता का दौर
दुनिया रंग बदल रही है,व्यवहारिकता का दौर है,
प्यार-प्रीति सब पीछे छूट गए,हर रिश्ता अब स्वार्थ का मौज है।।
दोस्ती भी अब लेन-देन है,सम्मान भी अब पैसों से है,
मदद भी अब मतलब से है,दुनिया है अब फ़ायदे की रेशम है।।
रिश्ते अब बंधन नहीं,बाज़ार की दुकानें हैं,
जहाँ भावनाओं की कीमत है,और प्यार की दुकानें हैं।।
दिलों का मिलन अब दुर्लभ है,स्वार्थ की दीवारें ऊँची हैं,
हर कोई खुद में मस्त है,रिश्तों की कश्तियाँ डूबी हैं।।
क्या यही है प्रगति की दौड़?क्या यही है सभ्यता की नींव?
जहाँ रिश्तों की कीमत है पैसा,और इंसानियत हुई है गुमनाम।।सोचिये ज़रा इस बदलाव पर,कहाँ जा रहे हैं हम सब?
शायद एक दिन इंसान भी बिक जाएगा,जब भावनाओं की होगी कोई दुकान नहीं।।
आओ मिलकर करें हम प्रयास,इस व्यावहारिकता को मिटाएं,
रिश्तों में फिर से प्यार लाएं,और इंसानियत की ज्योति जलाएं।।