व्यवस्था और लोकतांत्रिक सुविधाएं
व्यवस्था कई भांति की होती है.
एक सार्वजनिक व्यवस्था जिसका संबंध सीधे प्रकृति और अस्तित्व से है
उससे इंसान केवल सगज रहकर आपदाओं से बच सकता है.
लड़ नहीं सकता.
जन्म से लेकर मृत्यु पर्यन्त व्यवस्था भी किसी जाति-वर्ण-व्यवस्था को नहीं मानती,
न ही आयु ..बल ..हुनर पर किसी विशेष की व्यवस्था काबिज होती है.
भारत एक संवैधानिक लोकतांत्रिक देश हैं,
तिरंगे झंडे के तले जो समान है किसी भगवा का मोहताज़ नहीं है.
फिर राष्ट्रवाद के नाम पर कैसी व्यवस्था का अनुमोदन है.
जिससे हर नागरिक भयभीत नज़र आता है.
व्यवस्था विध्वंस को रोकती है न कि विध्वंसक रहती है.
लोकतांत्रिक व्यवस्था जनता के इर्दगिर्द घूमती हैं.
उल्टे यह चंद मनोनीत सदस्यों की होकर रह जाती है.
जनता जबतलक तमाशबीन, जादूगिरी, लॉबिंग के जरिये से दूरी नहीं बनाना सिख लेती,
उन तक मूलभूत सुविधाएं कदापि नहीं पहुंच सकती.
हमें व्यर्थ में भीड़ का हिस्सा बनना छोडना होगा.
नेताओं का भोजन वोट है तो
हमारी मूलभूत सुविधाएं मुहैया कराना उनकी जिम्मेदारी.