व्यंजन की कविता
कबुतर गुटर गु करता हैं, खरगोश दौडता रहता है| गमले में तुलसी का पौधा, घर आंगन को सजाता रहता| चश्मा लगाकर निकली धूप मैं, छत्री लेकर मेरे हाथ मैं| जग मैं पानी भर के रखा, झरनें का मीठा मीठा| टमटम में लेकर सोना निकला हैं व्यापारी, ठग ना ले कोई उसकी सवारी| डमरू बोले डम डम, ढम ढम बाजे हैं ढोल, तबला बोले ताक धिना धिन, थक गए हम सुनकर शोर| दरवाजें मैं सजाओं रंगोली, धन लेकरं आयेगी लक्ष्मी मां|
नदी के पार पेंड हैं खडे, पत्ते पेंड पर हरे हरे| फल भी हैं मीठे मीठे प्यारे,बच्चों ने पेड से निकाले सारे| भवरा फुलों से शहद चुसंता हैं,मछली पानी मैं तैंरती हैं| यज्ञ कराके खुशियां पाओ, रसगुल्ला खाके त्योहार मनाओ| लड्डू खाओ मीठा मीठा, वजन न बढेगा खाकर मीठा| शतरंज खेलो दिमाग बढाओ, षड़यंत्रो से बचके रहो| सब्जी लाओ हरी हरी, हल्दी होती पीली पीली| क्षण जियो तुम मजेसे, त्रस्त न रखो मन को गम से| ज्ञानी यही सिखातें हैं, पढों, पढाओं, और ज्ञान बढाओं|