व्यंजना
मुक्तक छंद
मापनी- 1222 1222 1222 1222
सृजन शब्द व्यंजना
हृदय की व्यंजना माता, किसे आकर सुनाऊं मै।
नहीं लगता ह्रदय मेरा ,कहां आंसू बहाऊं मैं।
जगत की बात झूठी है ,जगत की शान झूठी है।
दबी जो बात होठों में, अभी आकर बताऊं मैं।।
सजी थाली पुजारिन की, हृदय बाती बनाती हूं।
महागौरी अरज मेरी, विनय कर जोड़ आती हूं।
जले वो दीप भावों का, हुआ उजला हृदय मेरा।
खिले सर व्यंजना पंकज सजी थाली चढ़ाती हूं।।
ललिता कश्यप गांव सायर डा०डोभा जिला बिलासपुर हिमाचल प्रदेश