व्यंग लपट ( कुण्डलिया छन्द)
विष्णू इस संसार में, नहीं किसी का होइ।
अपने लालच के भये, मदद करे ना कोइ।
मदद करे ना कोइ, काम किसी के न आवै।
पड़ि स्वयं पर कष्ट, तभी ध्यान को भावै।
सुनिह भैया मेरे, मिल श्रम बने हे सेतू।
दौलत काम न आवै, कहता है यही विष्णू ।
– विष्णु प्रसाद’पाँचोटिया’
््््््््््््््््््््््््््््््््््््््