वो शख़्स
सूबह की भागती दौडती सड़कों पर से होते हुए वो मैट्रो के डिब्बे के बीच वाली सीट पर बैठ गया।पल पल में सामने आते चेहरे अब स्थिर होने लगे थे सामने की सीट पर खुले बाल में आकर्षक युवती बैठी थी उसकी बायीं पिंडली में एक काला धागा बंधा था सहसा बार बार उसका ध्यान उसी ओर जा रहा था।मैं यद्यपि भीड़ के मध्य था पर उन दोनों को साफ साफ देख पा रहा था ।दो तीन स्टेशन तक सिलसिला थम नहीं रहा था जैसे ही उस अधेड़ व्यक्ति की नज़र उसके आकर्षण में जा गिरती वो निढाल हो जाता पर दो एक बार के बाद वो युवती सचेत हो जाती और स्वयं में व्यस्त हो जाती ।मैटो के दरवाजे खुलते ही भीड़ का पहाड़ अंदर आ गया था सामने बुजुर्ग महिला थी जो अपनी गठरी को संभालते सीट के इस कोने से उस कोने तक नजर घुमा चुकी थी दो व्यक्ति बातों में मस्त थे तो दो संगीत या विडियों में कोने वाला व्यक्ति सो सहा था हडबडा कर उठा पर फिर सो गया महिला और बुढ़े जो पहले से सीट पर बैठे थे।वो एक बार उस बुढ़िया को देखते दूसरी बार उस व्यक्ति की ओर।वो उस आकर्षण में खोया था जो सामने अभी भी था पर भीड़ में बार बार व्यवधान तो आ ही रहा था मैट्रो रूककर झटके खाती फिर दोडने लगी वो बुढ़िया गिरते गिरते बची पर ये सब देखते हुए उस व्यक्ति ने बुढ़िया को सीट दे दी।अब वो व्यक्ति उस बुढ़िया के सामने था वो आकर्षक युवती अब उसकी पीठ के परे थी वो अभी भी कनखियों से नजर बचाता पीछे देख रहा था पिंडली पर बंधा काला धागा और भी आकर्षक लग रहा था वो स्वयं को व्यस्त रखकर उसे देखना चाहता था ।अचानक जेब कंपित हुई दूसरे पल वो फोन पर बातों में बहने लगा उसकी आंखे खिली थी होठ फैल रहे थे हंसी की आवाज गूंजने लगी थी मैट्रो के दो स्टेशन निकल गये वो अभ भी फोन पर लगा था अचानक कुछ याद आया तभी वो पलटकर सीट को देखा अब तक वहां कोई और बैठ चुका था पल भर में हंसी वहीं थम गयी वो गंभीर होकर फोन को कट कर दिया।मैं भी अब तक सीट पर बैठ चुका था और मजे की बात यह रही कि उसी सीट पर जहां उस युवक की पहले से नजर थी।
मनोज शर्मा