वो वक्त
वो वक्त भी कमाल का था ।
जब तुम साथ थी वो यादे भी बेहिसाब थी ।
में वही टहरा रहा ,पर तुम बदल गई , तुमने रिश्ते तक बदल दिए ।
, इल्जाम मुझपर लगा दिया ।
क्या कमी रही ,नहीं समझ पाया । ओर तुमने मुझे समझना भी ठीक नहीं समझा ।
रिश्ते नाजुक थे । टूट गए । तुम बिन कहे चले गए । इस घर को तन्हा छोड़ कर ।
एक बार भी पलट के नहीं देखा तुमने ।
में चुप था । खुद पर अफसोस था । खुद सोच में डूबा था । तुम्हरा यू चले जाना । इन 2 महीनों में भी समझ नहीं पाया । एक बार बता भी देती ,शायद रिश्ते की ये डोर टूटने से बच जाती । शायद ये तुम्हरा फैसला था । तुमने कभी अपने फैसले नहीं बदले । शुरू से ही मन मर्जी की मालकिन थी तुम । बेपरवाह लड़की । हा , यही नाम दिया था मैने तुम्हे । बैठा हु तुम्हरा खत लिए , सोच रहा हूं थोड़ा बेपरवाह में भी बन ही जाऊ कहीं दफन कर आऊ इस खत को । नहीं रखना चाहता तुम्हारी कोई निशानी में । …… ओर हा तुम्हारी पायल का एक घुघरू आज सुबह सोफे के नीचे मिला है । बस एक यही है कभी गुजरो इस शहर से तो लेकर चले जाना ।