वो मधुर स्मृति
खोना और पाना
नहीं हमारे हाथ
यह सब ईश की मर्जी
बस जुड़ जाते अहसास।
कभी कभी यूं ही सफर में
अनायास जुड़ जाता है कोई तार
बन जाता है एक सम्बन्ध
जिसका कोई नहीं होता नाम
पर उसकी मधुरता, अपनापन
लाती है चेहरे पर मुस्कान,
मन की वीणा पर बजने लगती
एक नैसर्गिक सुंदर तान।
जो भर देती है एक अनूठी ऊर्जा
हो जैसे सम्बन्ध पुराना जान,
सुनने लगता अंतर्मन के भीतर
बिना शब्दों का गान,
शायद ऐसा होता हो सबके साथ
इसलिए मधुर मिलन के स्मरण से
नहीं होती कदापि परेशान,
सदैव बनी रहेगी वो मधुर स्मृति
बिन बतलाए भी रहेगा ध्यान,
– सीमा गुप्ता अलवर राजस्थान