वो भी क्या दिन थे
वो भी क्या दिन थे
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बात उन दिनों की है जब मैं घर से पाँच किमी.दूर 6 से 10 तक की पढ़ाई करने इंटल कालेज में जाते थे।
घर से सड़क की दूरी करीब एक किमी. थी।जहाँ से हमारा आना जाना बस से होता था।हमारी यात्रा अधिकांशतः मुफ्त ही होती थी।वाले भी हमारी रोज की यात्रा से परिचित थे।इसलिए किराया कभी दिया,कभी दायें बायें होकर मुफ्त बस यात्रा चलती रही।इतना ही नहीं हमारी लगभग रोज की यात्रा पीछे सीढ़ियों पर लटककर या छत पर बैठकर ही होती थी।
आज जब उन दिनों को सोचता हू्ँ तो सिहरन सी होने लगती है और सहसा खुद पर विश्वास नहीं होता कि हमनें कभी ऐसा भी सफर किया होगा।पर सच तो यह है कि ये पूरे पाँंच साल चला, जब तक हम हाई स्कूल पास नहीं कर लिए।
©सुधीर श्रीवास्तव