वो नसीबों का सिकन्दर हो न हो ।
ग़ज़ल
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वो नसीबों का सिकन्दर हो न हो ।
कट रहे दिन सर पे छप्पर हो न हो।।
करके मेहनत चैन से वो सो रहे।
पास में उनके वो बिस्तर हो न हो।।
जब मिले सम्मान बाँटो प्यार तुम ।
सादगी हो, तन पे जेवर हो न हो।।
फ़र्ज़ तुम अपना निभाओ प्यार से ।
फिर तुम्हारे पास अम्बर हो न हो।।
जो है थोड़ा वो निवाला खा भी ले ।
क्या पता ये भी मयस्सर हो न हो।।
हम मुकद्दर से लड़ेंगे शान से ।
साथ मन में हौसला पर हो न हो।।
जीत लो तुम जग का दिल सद्कर्म से।
फिर ये प्यारा ज्योटी‘ मंज़र हो न हो।।
ज्योटी श्रीवास्तव (jyoti Arun Shrivastava)
अहसास ज्योटी 💞✍️