वो दिन भी क्या दिन थे…….
वो दिन भी क्या दिन थे, हम भी क्या किसी से कम थे, 8:00 बजे था सो कर उठना, यार दोस्त सब थे अपना, लाइफ मस्त कट रही थी, दोस्तों के संग मस्ती दिन रात चल रही थी, मैं तो गुरूर में घूमा करता था,
पापा के पैसों को भूना करता था, अब यह दौर कौन सा आ गया, जीवन में कैसा बादल छा गया, दोस्तों के एक मैसेज को भी तरस जाता हूं, रहकर अपनों के बीच भी मैं खुद को अकेला पाता हूं, खर्च करने से पहले सौ बार सोचना पड़ता है, पैसा तो बहुत कम कर आता हूं, फिर भी हर बार खाली हाथ रहना पड़ता है हर बार खाली हाथ रहना पड़ता है………….
वो दिन भी क्या दिन थे हम भी क्या किसी से कम थे…..