वो कौन है
जब लफ्ज़ सभी खो जाते हैं
चेहरे माटी हो जाते हैं
जब साँसें साथ नहीं देतीं
दिल भी पत्थर हो जाते हैं
जब लहू जिगर से बहता है
जीवन मृत्यु को सहता है
जब मन उलझा हो प्रश्नों में
वक़्त ही सब कुछ कहता है
जब आस के मोती टूटें हैं
आँखों से सपने छूटें हैं
जब उम्मीदों के लश्कर को
अज्ञात के साये लूटें हैं
जब भाग्य हमारा सो जाये
और सब बेमानी हो जाये
जब लगे कि दुनिया फ़ानी है
जाने किस पल क्या खो जाये
तब कौन है वो जो आता है
दुःख- सुख के पार दिखाता है
बिन बोले पल भर में ही जो
सब प्रश्नों को सुलझाता है
वो कौन है जो है कहीं नहीं
फिर भी है वो ही हर कहीं
जहाँ आकर उसको खो देते
पा भी सकते हैं उसे वहीं
जो संबल है हर हारे का
जो आसमां हर तारे का
हर भटकन की जो मंज़िल है
जो अमृत जीवन खारे का
ये उसकी दुनिया जिसमें हम
देखो तो खेल- खिलौने हैं
उसकी मर्ज़ी है पल-पल में
सच में हम कितने बौने हैं
सुरेखा कादियान ‘सृजना’