वो आठ दोहे ।
जीवन नौका जग जलधि, आशा की पतवार ।
भांप भवँर में डगमगी, ,,,,,,,चुप है खेवनहार ।1।
दिन है सच का आवरण , रजनी झूठ प्रतीक ।
सुबह शाम है दोगले ,,,, लगते सबको नीक ।।2।।
वाणी में जिनके गरल , ,,,,उर में पर सन्ताप ।।
क्रोधी, तुनकमिजाज, हम ,,दुर्जन अपनेआप ।।3
दम्भ, कुकर्मी , नीचता,,,,,,,,दुर्जन की पहचान ।।
मुख है विष की पोटली,,,अरि भुजंग सम जान ।।4
चली योजना सालभर,, हुआ अथक प्रयास ।
देख गरीबों की दशा ,,,,,रोता रहा विकास ।।5
आँख मिचौली खेलते ,,,,,,झोंक रहे है धूल ।
हुआ असर हर गाँव में ,,उन्नति के प्रतिकूल ।। 6
दुर्दिन दुःख दारुण यथा, खास एक मलमास ।।
जीवन ही उम्मीद है ,,,, ,,,होना नही उदास ।।7
प्रेम गगन बिच ढूढ़ती, आशाओं के रंग ।
जीवन डोर समेटती , उड़ती रहे पतंग ।। 8
©राम केश मिश्र