वोटर नही है कम, वोटर में है दम – एक चुनावी रचना
वोटर नही है कम, वोटर में है दम
राजनीति के गलियारों में, फिर से बिछी बिसात है।
नहीं है इनका कोई मजहब, न ही इनकी जात है।।
भोली भली इस जनता को, फिर सपने दिखलाएंगे।
ढोल नगाड़े बंदर भालू, संग में अपने लाएंगे।।
चाय से लेकर रसगुल्ले का, आज स्वाद चखवायेंगे।
बड़े-बड़े वादों से फिर, जनता का मन भरमायेंगे।।
काका बाबा मामा मौसा, फिर पप्पू बन आएंगे।
जुमलों के बल-बूतों, वो अपनी सरकार बनाएंगे।।
भ्रष्टाचार के जनक बने, क्या भ्रष्टाचार मिटाएंगे।
एक बार जो जीत गए तो, सदियों बैठ के खाएंगे।।
भाई भतीजा वाद चलाते, जब तक इनकी चलती है।
जातिवाद के बल पर देखो, राजनीति ये फलती है।।
जागो हे मतदाता, इनका मत से अब संहार करो।
कुटिल-कुचालों से बच कर, सत्ता का फिर श्रृंगार करो।।
चुनो उसी को जो सेवा कर, देश का मान बढ़ा पाये।
व्यभिचार और भ्रष्टाचार पर, जो अंकुश लगवा पाये।।
करे सभी सँग न्याय यथोचित, ऐसा शासक चुन लेना।
समरसता समभाव हो जिसका, ऐसा याचक चुन लेना।।
दारू पैसा लोभ की खातिर, वोट नही बेकार करो।
प्रजातंत्र के पुण्य यज्ञ का, आमंत्रण स्वीकार करो।
शासक हो तुम शासन तुमसे, खुद की कीमत पहचानो।
प्रजातंत्र के शिल्पकार हो, वोट की कीमत पहचानो।।
✍? अरविंद राजपूत ‘कल्प’