वैवाहिक जीवन में बिस्तर की भूमिका
वैवाहिक जीवन में बिस्तर की भूमिका
अरे सुनती हो शिवानी की मम्मी आज मैं खुशखबरी लेकर आया हूँ। हाँ बताये शिवानी के पापा क्या खुशखबरी लेकर आये है। तो सुनो सुनीता आज हमारी बेटी के लिये एक बड़े घर का रिश्ता आया है। सच! यह तो बहुत ही अच्छी खबर है। वेसे लड़का करता क्या है? घर परिवार कैसा है ? कहाँ रहते है एसे ढेरों सवाल सुनीता ने अपने पति राजीव से पूछ लिये। अरे सुनीता जरा साँस तो लेलो सब बताता हूँ । तो सुनो सुनीता लड़का थानेदार है। घर वाले भी काफी प्रतिष्ठित है। सुनो शिवानी के पापा यह अच्छा है लड़का सरकारी नौकरी करता है। फिर राह किस की देख रहे हो चट मंगनी पट विवाह कर दो। अरे भाग्यवान जरा ठहर जाओ । जिसका रिश्ता होना है उससे तो पूछ लो वो खुश है की नहीं। शिवानी के पापा आप केसी बातें कर रहे हो । शिवानी को भला क्या एतराज होगा। कुछ समय बाद शिवानी और विनय की शादी हो जाती है। शिवानी शादी करके आँखो में सपने संजोय हुये अपने नये घर यानी की ससुराल प्रवेश करती है। अब वो समय आता है । जिसका इन्तज़ार हर जोड़े को होता है। प्रेम व स्नेह से दो शरीर को एक जान करने का करने की रस्म जो वैवाहिक जीवन को मजबूत बनाती है। धीमे- धीमे जीवन बीतता रहा। विनय का तबादला दूसरे शहर (उज्जैन) में हो गया । तबादले के कारण विनय और शिवानी को जाना पड़ा पर एक तरफ शिवानी के चैहरे से मुस्कान गायब होती जा रही थी। एक दिन शिवानी अचानक उज्जैन सो वो अपने पिताजी के घर आई । वो डरी सहमी सी कांपती रही थी । तब ही उसके पापा ने पूछा बेटा क्या हुआ । तब उसने आँखो में आँसू भरते हुये कहा कि वैवाहिक जीवन में बिस्तर की भूमिका इतनी महत्वपूर्ण होती है कि किसी का आत्मसम्मान को गहरी चोट पहुँचे। बेटा एसा क्यों कह रही हो? क्या हुआ तुम्हारे साथ जरा विस्तार से बताओ ? शिवानी रोते हुये बताती है कि घर में कितना ही काम न हो बेशक मेरी तबियत खराब ही न फिर भी विनय को सम्भोग करना होता था हर रात मुझे उन्हे खुश करना होता था। मुझे एसा लगने लगा था कि मैं उसकी पत्नी नही बल्की अपनी हवस मिटाने का सामान हूँ। बेमन से लगातार शारीरिक संबंध बनाते- बनाते टूट गई हूँ। शिवानी रोते हुये अपनी बात अपनी माँ को बताती है। सुनीता के आँखो में आँसू आ गया । सुनीता कहती है कि बेटा यह तो पत्नी का कर्तव्य होता है। शिवानी गुस्से में कहती है कि सारे कर्तव्य पत्नी निभाये बेशक पति नोच खाये। इसकी पतीव्रता पत्नी कहते है । सुनीता रोती हुई बोलती है बेटा यह समाज क्या कहेगा? क्या इज्जत रह जायेगी? कुछ दिन बाद शिवानी वापस अपने पति के घर उज्जैन आ जाती है। उसके चैहरे से नूर चला जाता है। एक साल बाद शिवानी मानसिक व शारीरिक शोषण बर्दाशत नही कर पाती है । वो सिर्फ जिन्दालाश बन कर रह गई थी। कुछ दिनो बाद उसने खुदखुशी कर ली सिर्फ समाज के तानो से बचने के लिये ।
अक्षय दुबे ©️