वे वादे, जो दो दशक पुराने हैं
सपने हैं सपनों का क्या !
आंखें खुली सब टूट गये.
भूखे चले थे, पटरी पटरी,
हारे थके सो गये, कुचले गये.
कच्चा मांस खाते वो बच्चा,,
महामारी से नहीं, भूख से गये..
निश दिन चल , घर की ओर बढ़े..
घर से दूर ठहरे, अपने भी पराये हुए..
हिंदुओं को क्या हुआ , जिसे देखो
नजर सिक्ख भाई और मुस्लिम मिले.
ये तो ठीक वैसे हुआ दुर्घटना घटी ,
उसकी जेबें टटोली और भाग लिये.
किसान आंदोलन में मरने वालों की
संख्या, मालूम नहीं है जिन्हें उन्हें .।।
महामारी से मरने वालों की संख्या,
मालूम नहीं, पूछे तो अस्सी करोड़ मिले.
जिस मुल्क में मूलभूत मूल्य न मिले,
उस गरीब को कैसे ऑक्सीजन मुफ्त मिले.
दुपहिया चौपहिया वाहन खूब बिके,,
बताओ थे , ये कहाँ पर , खड़े हुए ..
आ गया है सबका सब कालाधन,,
अब बताओ ,, उसका क्या करें .।।
लगा दिया है गब्बर सिंह टैक्स,,
मिलजुलकर सब भुगतान करें..
उज्ज्वला नाम पर, सब्सिडी छोडे
रसोई गैस एक हजार पार मिले ..
बन कर तैयार है, भव्य राम-मंदिर,,
सेवक बने, लहसुन प्याज का त्याग करें…
एक बार जोर से जयश्रीराम का उद् घोष करें,
भारत से कह दें, वह कुछ दिन शांत रहे ।.।
पूरा देश से लोहा इकट्ठा करें चीन का विरोध करें
पर्यटन क्षेत्र के पैसे से, गुजरात उन्नति करे ।.।
परिणाम तो देखो, नोटबंदी से मंदी तक ..
जनधन योजना के तहत, भगौड़ों तक ..
पांच ट्रिलियन की सोच से बिकवाली तक,
जम्मू कश्मीर के बेहतर हालात से मणिपुर तक,