वेलकम होम
कार तेज़ी से अपने गंतव्य की ओर बढ़ रही थी। कार की पिछली सीट पर रोहन उदास बैठा था। वह अपने दादा जी के घर जा रहा था। उन दादा जी के घर जिनसे उसकी पहचान घर में रखे उनके फोटो और अपने पापा के मुख से उनके बारे में सुनी हुई बातों तक ही सीमित थी। उसके दादा जी की मर्ज़ी के खिलाफ जाकर उस के पापा ने उस की मम्मी से शादी की थी इस बात से रोहन के दादा जी उस के पापा से नाराज़ थे। यही कारण है की वो उनसे पहले कभी नहीं मिला था।
रोहन अपने बीते जीवन को याद कर रहा था। कितने सुंदर दिन थे। वो और उसे दिलोजान से चाहने वाले उस के मम्मी पापा। एक सुखी परिवार। उस के मम्मी पापा उस की हर ख्वाहिश पूरी करते थे। वह भी उन्हें सदैव खुश रखने का प्रयास करता था। किन्तु एक सड़क दुर्घटना ने उस का सब कुछ छीन लिया। उस के मम्मी पापा उस दुर्घटना में मारे गए। उसे कुछ मामूली चोटों के आलावा कुछ नहीं हुआ। अब वह इस दुनिया में अकेला था। सिवा उसके दादा जी के उसका अन्य कोई रिश्तेदार नहीं था अतः वह अपने दादा जी के पास जा रहा था।
पिछले बारह वर्षों में उसके दादा जी ने उनसे कोई सम्बन्ध नहीं रखा। जब रोहन के पिता ने उन्हें रोहन के जन्म की खबर फ़ोन पर दी तो भी उन्होंने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी। खबर सुनकर चुपचाप फ़ोन रख दिया। रोहन के मन में दुविधा थी न जाने वे उसके संग किस तरह पेश आयें। अपने मम्मी पापा का दुलारा रोहन किसी के घर भी अनचाहे मेहमान की तरह नहीं जाना चाहता था।
कार एक बड़े से बंगले के पोर्टिको में जाकर रुकी। एक बटलर ने आगे बढ़ कर उसका स्वागत किया। रोहन लंगड़ाते हुए उसके पीछे चलने लगा। बंगले में अजीब सा सन्नाटा था। बटलर के साथ चलते हुए वह एक लाइब्रेरी नुमा बड़े से कमरे में पहुंचा। वहां व्हीलचेयर पर रोहन के दादा जी बैठे कोई किताब पढ़ रहे थे। बटलर ने रोहन के आने की सूचना दी। उन्होंने किताब बंद कर दी। अपनी व्हीलचेयर को धकेल कर कुछ आगे लाये। वे बहुत कमज़ोर लग रहे थे।वे बड़े गौर से रोहन को देखने लगे । उनकी आँखों में अकेलेपन की पीड़ा साफ़ दिखाई दे रही थी।
रोहन चुपचाप एक बुत की तरह खड़ा था वह समझ नहीं पा रहा था की क्या करे। रोहन के दादा जी की आँखों से टप टप आंसू गिरने लगे. उन्होंने अपने दोनों हाथ फैला दिए। रोहन पहले तो कुछ झिझका फिर दौड़ कर उनके गले लग गया। दोनों कुछ देर यूं ही गले लगे रहे। उसके दादा जी ने भर्राई हुई आवाज़ में कहा ” वेलकम होम सन।” रोहन के दिल से उदासी के बादल छट गए। वो कोई अनचाहा मेहमान नहीं था। वह तो किसी के सूने जीवन का उजाला था।