वेदना
वेदना
जब अपने
अपने न रहे
तब होती है
वेदना
जब समुन्दर की
लहरों को
ठुकरा दे किनारा
तब होती है
वेदना
जब किसी
पंछी के
घरोंदे को
उजाड़ दे कोई
तब होती है
वेदना
जब बुढापे में
माँ बाप को
ठुकरा दे कोई
तब होती है
वेदना
जब हरे भरे
पेड़ो को
काट दे कोई
तब होती है
वेदना
पति पत्नी के
अहं से होने वाले
विछोह से
जब बच्चे होते है
तिरस्कृत
तब होती है
वेदना
जब नदी तालाबों
झील झरनों में
होता है
प्रदूषण
तब होती है
वेदना
वेदना
तेरी वेदना है
असहनीय
जो जितना
इसमें तपेगा
वो उतना
निखरेगा
लेखक संतोष श्रीवास्तव भोपाल